हार के आगे है जीत की कहानी
हम जरा सी असफलता पाते ही निराश हो जाते हैं. यह नहीं समझ पाते कि एक असफलता का मतलब जीवन भर की हार नहीं है. असफलता केवल एक कॉमा है, फुल स्टॉप नहीं. हम फिर से शुरु आत कर सकते हैं. फिर यह जरूरी भी नहीं है कि सफलता को नंबरों से या संस्थान विशेष […]
हम जरा सी असफलता पाते ही निराश हो जाते हैं. यह नहीं समझ पाते कि एक असफलता का मतलब जीवन भर की हार नहीं है. असफलता केवल एक कॉमा है, फुल स्टॉप नहीं. हम फिर से शुरु आत कर सकते हैं. फिर यह जरूरी भी नहीं है कि सफलता को नंबरों से या संस्थान विशेष में दाखिले जैसी कार्य प्रणाली से आंका जाये. जरूरी है, ईमानदारी से अपने पसंद के क्षेत्र में सफलता के प्रयास करना. ऐसे महान लोगों की कमी नहीं जो बुरी तरह असफल हुए. कई तो बार-बार असफल हुए, लेकिन उन्होंने हर हार से सीख ली. असफलता को हमेशा अर्धविराम की तरह समझा और फिर उन्होंने वह मुकाम हासिल किया कि दुनिया आज भी उन्हें याद करती है. इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है.
इंटरव्यू में फेल हुए थे होंडा
होंडा कंपनी के संस्थापक सोइचिरो होंडा ने कई मोड़ पर असफलता देखी. उन्होंने जब टोयोटा कंपनी में नौकरी के लिए इंटरव्यू दिया, तो उन्हें असफल घोषित किया गया. वे घोर गरीबी में पले-बढ़े. पिता की साइकिल रिपेयर की छोटी-सी दु कान थी. उन्हें कोई औपचारिक शिक्षा नहीं मिली थी. 16 वर्ष की उम्र में वे टोकियो पहुंचे. वहां एक कंपनी में अप्रेंटिसशिप के लिए आवेदन दिया. उम्र एक वर्ष कम थी.
इसलिए कंपनी मालिक के घर में एक साल काम किया. बाद में अप्रेंटिसशिप भी न मिली. फिर निराश हो कर वह गांव पहुंचे. जल्द ही उन्होंने निराशा छोड़ स्कूटर रिपेयरिंग की छोटी दुकान खोली. आगे कुछ ही दिनों में कई पार्ट्स जोड़ कर मोटरसाइकिल बना दी. यह मोटरसाइकिल उस समय की सबसे उम्दा वाहन मानी गयी. इसके बाद तो उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा.
न्यूटन : बीए में औसत नंबर
किसी भी स्कूली छात्र के मुंह में पहले वैज्ञानिक के तौर पर न्यूटन का ही नाम होता है. न्यूटन बचपन में ठीक से पढ़ नहीं पाये थे. उनकी मां ने दूसरी शादी की थी. इसलिए वे अकेलापन महसूस करते थे. किसी तरह बीए पढ़ने मशहूर ट्रिनिटी कॉलेज पहुंचे. काफी कोशिश की, लेकिन औसत नंबर ही आये. पास में पैसे भी नहीं थे. हॉस्टल में दूसरे छात्रों के लिए चाय-पानी पहुंचाने का भी काम किया. पहले लॉ करना चाहा, फिर दर्शन पढ़ने लगे. बीए के बाद दो साल तक घर में ही गणित पढ़ा. इसी बीच, बगीचे में सेब गिरते देखा और दिमाग में गुरु त्वाकर्षण की बात आयी, लेकिन इसे सिद्धांत का रूप देने में उन्हें 20 साल लग गये. न्यूटन ने अपने जीवन में अनेक वैज्ञानिक खोजें की.
12वीं में दो बार फेल हुए रामानुजम
रामानुजम पहली श्रेणी से मैट्रिक पास हुए. इसके बाद बारहवीं की परीक्षा में दो-दो बार फेल हुए. फेल होने के कारण स्कॉलरशिप बंद हो गयी. पास में पैसे नहीं थे कि पढ़ते इसलिए क्लर्क की नौकरी कर ली. घर में अध्ययन करना नहीं छोड़ा. कुछ ही दिनों बाद उन्होंने तब के महान गणितज्ञ जीएच हार्डी को पेपर भेजा. पेपर में 120 थ्योरम थे. इन्हें देख कैंब्रिज विश्वविद्यालय से बुलावा आया. इंग्लैंड में उन्हें फेलो ऑफ रॉयल सोसायटी से सम्मानित किया गया. आगे उनके थ्योरम कई खोजों के लिए आधार बनें. जिस स्कूल में वे दो-दो बार फेल हुए थे, उसी स्कूल का नाम रामानुजम के नाम पर रखा गया है.
एक चित्र बनाने में लगे 17 साल
लियोनाडरे द विंची ने ‘मोनालिसा’ बनाने में 17 साल लगाये. ऐसा नहीं कि उन्होंने ऐसा जान- बूझ कर किया. वे डिस्लेक्सिया और एडीडी यानी अटेंशन डेफिसिट डिसऑर्डर से पीड़ित थे. डिस्लेक्सिया के कारण वे पढ़ने-लिखने में कमजोर थे और एडीडी के कारण उनका ध्यान किसी एक चीज पर केंद्रित नहीं हो पाता था. इसी कारण वे अपनी 30 पेंटिंग पूरी नहीं कर पाये. शिक्षा केंद्र में उन्हें बुद्धू छात्र माना गया. सब उन्हें सुस्त और कामचोर समझते थे. उन्हें क्लास में सबसे पीछे बैठना होता, लेकिन उन्होंने ठान रखी थी कि चीजों को समझने में अपनी पूरी शक्ति लगायेंगे. बाद में, वे चित्रकार, मूर्तिकार और इंजीनियर ही नहीं- शरीर विज्ञान के भी मास्टर बने. यहां तक कि उन्होंने आज के हेलीकॉप्टर की पहली डिजाइन भी तैयार की.
टॉम क्रूज ने 14 साल में बदले 15 स्कूल
टॉम क्रूज, मतलब हॉलीवुड का ऐसा हीरो, जिसकी फिल्में फ्लॉप हो नहीं सकती. लेकिन खुद टॉम क्रूज हालात के हाथों काफी पिटे. माता-पिता नौकरी के सिलसिले में शहर बदलते रहते. इसलिए टॉम ने कई स्कूल बदले. 14 साल में 15 स्कूल. पिता बहुत सख्ती बरतते. बात-बात पर पिटाई खानी पड़ती. पढ़ने में फिसड्डी थे और विषय को लेकर स्थिर सोच भी नहीं रखते थे. उन्होंने सामान्य पढ़ाई छोड़, फिर पादरी बनने की पढ़ाई शुरू की. मन नहीं लगा तो पहले साइंस फिर आर्ट्स में दाखिला लिया. पढ़ाई समझ में नहीं आती. गुमशुम रहते, लेकिन फिल्में खूब देखते. ऐसा भी समय आया जब उन्होंने मुक्केबाजी और आइस हॉकी में हाथ आजमाया. खेल के दौरान घुटने में चोट लगी और फिर एक्टिंग करना शुरू किया. हॉलीवुड में संघर्ष के दौरान खलासी बने, होटलों में पोंछा लगाया और कुली का भी काम किया. आखिर फिल्म एंडलेस लव के ऑडीशन में सफल हुए. इस फिल्म ने सफलता के नये कीर्तिमान बनाये. इसके बाद टॉम ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा.
आइआइटी फेल बना नोबेल विजेता
2009 में रसायन- शास्त्र के लिए वेंकटरमण रामाकृष्णन को नोबेल पुरस्कार मिला. वे पढ़ाई में औसत ही माने जाते थे. बड़ौदा से फिजिक्स में स्नातक किया. इंटर के बाद उन्होंने आइआइटी और मेडिकल, दोनों के लिए प्रयास किया किंतु फेल हुए. नौकरी के लिए उन्होंने 50 से अधिक आवेदन दिये, किंतु किसी में कॉल लेटर नहीं आया. नौकरी नहीं मिलने की निराशा के बीच वे अमेरिका चले गये. पहले की सारी असफलता भूल उन्होंने फिजिक्स से पीएचडी की. इसके बाद वे बायोलॉजी में काम करने लगे. उन्होंने साइंस की तीनों शाखाओं पर समान पकड़ बनायी. उन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में नये विचार सामने रखे. आज वे रॉयल फेलो सोसायटी के अध्यक्ष हैं और अब भी रिसर्च में जुटे हैं.
पिता की नजर में डार्विन थे आलसी
चार्ल्स डार्विन बचपन में बहुत शरारती और बेशऊर किस्म के बालक थे. पढ़ने में जरा भी मन नहीं लगा. बस, पास भर हो जाते. उन्हें पिता ने जबरन मेडिकल कॉलेज भेजा. पर वे दूसरे ही साल पढ़ाई छोड़ कर भाग खड़े हुए. दरअसल, मेडिकल में प्रैक्टिस के दौरान खून देख कर उनका सिर चकराने लगता. इसके बाद वे समुद्री जीवों और वनस्पतियों की तलाश में निकले. इस काम में उनका मन लगा. उन्होंने हजारों जीव-जंतुओं पर गहन शोध किया और फिर विकासवाद का सिद्धांत दिया.
मिस्टर बीन को सब कहते थे एलियन
हम सबका चहेता कैरेक्टर मिस्टर बीन जब हंसे, तब भी हंसी आती है और रोये तब भी! मिस्टर बीन का असली नाम रोवान एटकिंसन है. स्कूल में उन्हें मूर्ख समझा जाता था. पढ़ने में मन नहीं लगता था. बस केवल उटपटांग हरकतें करते थे. बच्चे ही नहीं, टीर्चस भी उनकी हंसी उड़ाते थे. वे पढ़ाई के दौरान भी अपनी दुनिया में खोये रहते. दोस्त उनकी शक्ल और हरकतों को देख कर एलियन कहते थे. बाद में वे ऑक्सफोर्ड पढ़ने गये, लेकिन मजाक उड़ाने का सिलिसला वहां भी जारी रहा. वहां उन्होंने थियेटर ज्वॉइन किया. पहली ही बार शानदार एक्टिंग कर तालियां बटोरीं. इसके बाद उन्होंने एक्टिंग की दुनिया में पीछे मुड़ कर नहीं देखा.