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संतुलित मात्रा में करें पोटाश का उपयोग

झारखंड का सब्जी उत्पादन में अग्रणी स्थान है. यहां की जलवायु सालों भर सब्जियों के उत्पादन के लिए उपयुक्त है. प्रदेश के किसानों द्वारा उपजायी गयी विभिन्न सब्जी फसलें अन्य प्रदेशों में भी भेजी जाती है. पूर्वी भारत के राज्यों की तुलना में सब्जी उत्पादन में झारखंड का 49.5 प्रतिशत का योगदान है. नवीनतम मिट्टी […]

झारखंड का सब्जी उत्पादन में अग्रणी स्थान है. यहां की जलवायु सालों भर सब्जियों के उत्पादन के लिए उपयुक्त है. प्रदेश के किसानों द्वारा उपजायी गयी विभिन्न सब्जी फसलें अन्य प्रदेशों में भी भेजी जाती है. पूर्वी भारत के राज्यों की तुलना में सब्जी उत्पादन में झारखंड का 49.5 प्रतिशत का योगदान है.

नवीनतम मिट्टी जांच सर्वे में झारखंड राज्य की अधिकतर भूमि में पोटाश की उर्वरता निम्न से मध्यम स्तर की पायी जाती है. राज्य का पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम, सरायकेला, लोहरदगा, गोड्डा, साहिबगंज, पाकुड़ एवं धनबाद जिले की लगभग 25 प्रतिशत से अधिक भूमि में पोटाश की उपलब्धता निम्न स्तर की पायी गयी है. जबकि पश्चिमी सिंहभूम, सरायकेला, रांची, गुमला, पलामू, चतरा, गोड्डा, जामताड़ा एवं बोकारो जिले के भौगोलिक क्षेत्र की लगभग 50 प्रतिशत से अधिक भूमि में पोटाश की उपलब्धता मध्यम स्तर की पायी गयी है. इन जिलों में पोटाश उपलब्धता चिंताजनक विषय है और ऐसी भूमि में सब्जी खेती के लिए पोटाशधारी उर्वरकों का प्रयोग अत्यंत लाभकारी होता है.

हाल के मृदा सर्वे शोध में पाया गया है कि झारखंड प्रदेश में फसलोत्पादन में विशेषकर सब्जी की फसल की खेती के लिए पोटाश की भूमिका एवं उसके महत्व पर बराबर बल देने की आवश्यकता है. संतुलित उर्वरक उपयोग के तीन स्तंभों में नाइट्रोजन एवं फास्फोरस के साथ-साथ पोटाश प्रमुख स्तंभ है. फसल नाइट्रोजन की तुलना में अधिक मात्र में पोटाश का अवशोषण करती है. आज फसलोत्पादन में उर्वरकों के असंतुलित प्रयोग से भूमि की पोटाश भंडार में लगातार कमी हो रही है और भूमि में पौधों के विकास के लिए आवश्यक पोषक तत्व पोटाश की उर्वरता स्थिति घटती जा रही है. पोटाश की आवश्यकता सभी प्रकार की भूमि में फसलोत्पादन के लिए होती है. फसलों की गुणवत्ता एवं उच्च उत्पादन में पोटाश की अहम भूमिका की व्यावहारिक जानकारी प्रत्येक किसानों को होना नितांत आवश्यक है.

पोटाश फसलों की वृद्वि में अन्य पोषक तत्वों की दक्षता भी बढ़ाता है. देश में विभन्न स्थानों में किये गये शोध से पता चला है कि पोटाश के प्रयोग से पौधों के विकास में नाइट्रोजन, फास्फोरस और जिंक की उपयोग दक्षता में वृद्धि होती है. पोटाश फसलों को मौसम प्रतिकूल स्थिति जैसे – सूखा, ओला, पाला व कीट व्याधि आदि से बचाव में मदद करता है. यह पौधों की जड़ों की समुचित वृद्धि करके फसलों को भूमि से उखड़ने से बचाता है. इसके उपयोग से पौधों की कोशिका दीवारें मोटी होती हैं और फसलें असमय गिरने से बच जाती हैं. पोटाश के प्रयोग से फसलोत्पादन में जल उपयोग क्षमता बेहतर बनी रहती है. पोटाश के प्रयोग से फसल की गुणवत्ता पर भी लाभकारी प्रभाव पाये गये हैं. इससे पौधों द्वारा नाइट्रोजन के उपयोग एवं प्रोटीन निर्माण में वृद्धि होती है. फल की आकृति एवं उसके आकार में वृद्धि होती है. इसके व्यवहार से काबरेहाइड्रेड के स्थानांतरण में मदद मिलती है़, जो कंद वाली फसलों के लिए विशेष लाभकारी होता है़ फलों एवं गन्‍ने के रस में वृद्वि के साथ-साथ फलों में विटामिन-सी की मात्र में वृद्धि देखी जा सकती है. इसके उपयोग से फलों, सब्जियों एवं अन्य की परिपक्वता अवधि एवं एक साथ पकाव में मदद मिलती है.

खड़ी फसलों के पौधे में पोटाश की कमी से पौधों की पत्तियों का किनारा कटा-फटा और उनका अग्र भाग भूरा हो जाता है. पत्तियां आकार में छोटी हो जाती हैं और उनकी वृद्धि रुक जाती है. पुरानी पत्तियों का अग्र भाग नुकिला और पत्तियां किनारे से पीली पड़ने लगती हैं और बाद में पत्तियों का उत्तक मुरझाने लगती है, जिससे पत्तियां सूखने लगती हैं. खड़ी फसलों में एक से दो प्रतिशत पोटिशियम सल्फेट के घोल का पौधों पर छिड़काव करने से पोटाश के कमी का उपचार किया जा सकता है.

सब्जी की खेती में पोटाश की आवश्यकता का निर्धारण मिट्टी की जांच के आधार पर किया जाना जरूरी है. खेती वाली भूमि में उपलब्ध पोटाश का उर्वरता स्तर जितनी कम होगी, वांछित उपज की प्राप्ति के लिए उतना ही अधिक पोटाश की मात्र का उपयोग करना आवश्यक होता है. मिट्टी की पोटाश उर्वरता स्तर उच्च होने पर भी अल्प मात्र में पोटाश की जरूरत होती है. खेतों में उच्च दर पर सब्जी की फसलों की लगातार खेती से अच्छा लाभ प्राप्त किया जा सकता है. पोटाश की मात्र को अगर दो भागों में बांटकर बोआई से पूर्व तथा कल्ले निकलने से पूर्व आधी-आधी मात्र का व्यवहार किया जाय तो सब्जी फसलों के उत्पादन में 20-35 प्रतिशत तक की वृद्वि संभव है. इससे सब्जी की गुणवत्ता भी बढ़ जाती है. फसलोत्पादन में पोटाश उर्वरक के महत्व एवं इनके प्रयोग से होने वाले लाभ को ध्यान में रख कर झारखंड प्रदेश में खेती के लिए सब्जी फसलों के लिए अनुशंसित पोटाश उर्वरक की मात्र जरूरी है. किसानों को सुझाव होगा कि फसलोत्पादन विशेषकर सब्जी की खेती में मिट्टी जांच के आधार पर पोटाश की अनुशंसित मात्र का प्रयोग करें, ताकि अधिक उपज एवं आर्थिक लाभ प्राप्त कर सकें.

(मुकेश रंजन से बातचीत पर आधारित)

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