।। दक्षा वैदकर ।।
आज स्कूटी से ऑफिस आ रही थी, तो एक मजेदार वाकया हुआ. ट्रैफिक जाम में जब गाड़ियां धीरे–धीरे आगे बढ़ रही थीं, मेरे बाजू में चल रहे मोटरसाइकिल सवार युवक को किसी ने पीछे से टक्कर मार दी. वह युवक पीछे मुड़ा और उसने टक्कर मारनेवाले को कहा, ‘‘दिखता नहीं है क्या, भांग पीकर गाड़ी चला रहा है क्या?’’ पीछेवाले आदमी ने उस युवक से माफी मांगी और गाड़ियां फिर आगे बढ़ना शुरू हो गयीं. अब आगे जाकर उस युवक ने किसी को पीछे से टक्कर मार दी. उसे भी सामनेवाले ने खूब सुनाया, ‘‘अंधा है क्या, गाड़ी चलाना नहीं आता क्या?’’ इस युवक को गुस्सा आ गया. उसने बाइक से उतर कर सुनानेवाले का कॉलर पकड़ लिया. इस वाकये को देख मैं अपनी हंसी रोक नहीं पायी.
सोचनेवाली बात है कि हम दूसरों के साथ तो बहुत बुरा व्यवहार करते हैं, लेकिन अगर वैसा ही व्यवहार कोई हमारे साथ करे, तो हम आगबबूला हो उठते हैं. ऐसा क्यों? यहां बात केवल बुरे व्यवहार की नहीं, बल्कि किसी के लिए कुछ अच्छा करने की भी है. अक्सर हम अपने सीनियरों को कहते सुनते हैं, ‘‘आज मैं जो कुछ भी हूं, अपने फलां बॉस की वजह से हूं. उन्होंने मुझे यह काम सिखाया. उन्होंने मेरी गलतियों पर चिल्लाने की बजाय उन्हें सुधारा. एक बार तो मैंने फलां–फलां गलती कर दी थी.
मैं तनाव में था. मैं सोचता था कि मुझे कुछ नहीं आता, लेकिन मेरे बॉस ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और प्रेरणास्पद वाक्य कहे. उन्होंने मेरे काम की तारीफ की. मेरे घर–परिवार के बारे में पूछा. उस दिन अगर उन्होंने ऐसा नहीं किया होता, तो शायद मैं टूट चुका होता और जॉब ही छोड़ चुका होता.’’
जो भी सीनियर इस तरह के किस्से सुनाते हैं, उनसे कुछ सवाल– क्या आप भी अपने जूनियरों के साथ ऐसा ही व्यवहार करते हैं? क्या आपने भी ऐसा कुछ किया है, जिससे वे आपको जिंदगी भर याद रख सकें? क्या आपने कभी अपने किसी जूनियर की गलती को खुला दिल रख कर माफ किया है? क्या आपने किसी के कंधे पर हाथ रख कर उसकी तारीफ में कोई शब्द कहा है, ताकि वह उत्साह से भर जाये? अगर नहीं, तो आज से शुरू कर दें.
– बात पते की
* जब भी आप किसी के साथ कोई बुरा बरताव करें, दो मिनट रुक कर खुद से पूछें कि अगर कोई मेरे साथ ऐसा बरताव करे, तो मुझे कैसा लगेगा.
* अपने जूनियरों को ऐसे पल जरूर दें, जिसे वे जिंदगीभर याद रख सकें. कभी–कभी उनकी तारीफ करें, उनके परिवार के बारे पूछें