टूट गया सुरक्षा कवच
।। मिथिलेश झा ।।भ्रष्ट और आपराधिक जनप्रतिनिधियों का सबसे बड़ा सुरक्षा कवच टूट गया है. सुप्रीम कोर्ट ने जनप्रतिनिधि कानून की धारा 8(4) को निरस्त कर दिया है. इसे ‘विभाजनकारी’ और ‘राजनीति के अपराधीकरण’ को बढ़ावा देनेवाला करार दिया है. यही वह कानून है, जो भ्रष्ट और आपराधिक मामलों में सजा पाये सांसदों व विधायकों […]
।। मिथिलेश झा ।।
भ्रष्ट और आपराधिक जनप्रतिनिधियों का सबसे बड़ा सुरक्षा कवच टूट गया है. सुप्रीम कोर्ट ने जनप्रतिनिधि कानून की धारा 8(4) को निरस्त कर दिया है. इसे ‘विभाजनकारी’ और ‘राजनीति के अपराधीकरण’ को बढ़ावा देनेवाला करार दिया है. यही वह कानून है, जो भ्रष्ट और आपराधिक मामलों में सजा पाये सांसदों व विधायकों को संरक्षण प्रदान करता था.
शीर्ष कोर्ट के इस फैसले से उनका विशेषाधिकार खत्म हो गया. अब सजा मिलते ही, माननीय माननीय नहीं रह जायेंगे. उनकी सदस्यता रद्द हो जायेगी. हालांकि, यह व्यवस्था पुराने मामलों पर लागू नहीं होगा. नेताओं के इस सबसे बड़े सुरक्षा कवच को पहले से लागू कर दिया जाता, तो लोकसभा की करीब एक तिहाई (162) सीटें अभी खाली हो जातीं.
जनप्रतिनिधि कानून, 1951 की धारा 8(4), जो चुनाव कानून के तहत जनप्रतिनिधियों को सजा सुनाये जाने के तीन महीने तक अपील करने और गिरफ्तारी से बचे रहने का अधिकार देता है, लंबी बहस हुई. कहा गया कि भ्रष्ट सांसदों को संसद से संरक्षण मिलना असंवैधानिक है. यह समानता के अधिकार का हनन है.
देश भर में 4835 सांसद और विधायक हैं. इनमें 1448 पर आपराधिक मामले चल रहे हैं. इनमें से 641 पर गंभीर आपराधिक मुकदमे (हत्या, बलात्कार, लूट, अपहरण, फिरौती मांगना) हैं. छह लोग जो सांसद, विधायक या एमएलसी हैं, ने खुद लिख कर दिया है कि उनके खिलाफ बलात्कार के मामले कोर्ट में लंबित हैं.
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने संविधान की धारा 14 में वर्णित समानता के अधिकार से इतर चुनाव कानून के प्रावधान, जिसके तहत जनप्रतिनिधियों को विशेषाधिकार प्राप्त है, पर केंद्र से स्पष्टीकरण मांगा था. पूछा था कि सजा मिलने के बाद भी जनप्रतिनिधि कार्यकाल पूरा करते हैं, पर आम लोगों को तत्काल सजा भुगतनी पड़ती है. एक देश में
कानून के दो प्रावधान क्यों?
जनप्रतिनिधियों के सबसे बड़े सुरक्षा कवच पर पहला प्रहार वर्ष 2005 में एडवोकेट लिली थॉमस ने किया. सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर लिली ने अपील की कि जनप्रतिनिधि कानून की इस धारा को असंवैधानिक ठहराते हुए निरस्त कर दिया जाये. गैर सरकारी संस्थान ‘लोक प्रहरी’ ने भी ऐसी ही दलील देते हुए जनहित याचिका दायर की. इन याचिकाओं में कहा गया कि आज राजनीति में निजी हित सर्वोपरि हो गया है. इसलिए राजनीतिक संस्था में लोगों का भरोसा नहीं रहा. राजनीतिक संस्थानों ने उन्हें निराश किया है.
* संविधान का माखौल उड़ानेवालों पर कड़ा प्रहार
* 4835 सांसद, विधायक देश में
* 1448 पर दर्ज हैं मुकदमे
* 641 के खिलाफ गंभीर केस
* 641 पर गंभीर आपराधिक केस
* 162 सांसद पर क्रिमिनल केस
* 39 रास सदस्यों पर भी केस
* 06 सांसद, विधायक व एमएलसी ने खुद अपने शपथ पत्र में लिखा है कि उनके खिलाफ बलात्कार के मामले कोर्ट में लंबित है