संसाधन से ज्यादा आबादी!
26 साल पहले आज ही के दिन पृथ्वी की आबादी पांच अरब हो गयी थी. बढ़ती आबादी से चिंतित होकर संयुक्त राष्ट्र ने 1989 से हर साल 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस के तौर पर मनाने का फैसला किया था. इस बीच दुनिया की आबादी 7 अरब को पार कर चुकी है और 21वीं […]
26 साल पहले आज ही के दिन पृथ्वी की आबादी पांच अरब हो गयी थी. बढ़ती आबादी से चिंतित होकर संयुक्त राष्ट्र ने 1989 से हर साल 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस के तौर पर मनाने का फैसला किया था.
इस बीच दुनिया की आबादी 7 अरब को पार कर चुकी है और 21वीं सदी में भी इस पर लगाम लगता नजर नहीं आता. बढ़ती जनसंख्या की प्रवृत्ति और उससे जुड़ी चिंताओं के बीच ले जाता आज का नॉलेज..
ज नसंख्या विशेषज्ञ यह बात लंबे अरसे से कहते रहे हैं कि भारत की जनसंख्या आज नहीं तो कल चीन की जनसंख्या को पार कर जायेगी. विशेषज्ञ की उत्सुकता का विषय वास्तव में यह रहा है कि आखिर यह क्षण कब आयेगा? पिछले कुछ वर्षो से इस संबंध में लगातार अलग–अलग अनुमान सामने आते रहे हैं.
करीब तीन साल पहले अमेरिकी जनगणना ब्यूरो ने अनुमान लगाया था कि भारत की जनसंख्या 2025 तक चीन की जनसंख्या को पार कर जायेगी. अमेरिकी जनगणना ब्यूरो के 2010 के अनुमान में कहा गया था कि 2025 में भारत की जनसंख्या 1.396 अरब हो जायेगी, जबकि इसी समय चीन की जनसंख्या 1.394 अरब रहेगी.
इन अनुमानों में कहा गया था कि वर्ष 2050 तक भारत दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाले देश के तौर पर चीन से मीलों आगे निकल जायेगा, जब भारत की जनसंख्या बढ़ कर 1.656 अरब हो जायेगी, जबकि चीन की जनसंख्या और बढ़ने की जगह घटते हुए 1.303 अरब ही रह जायेगी.
हालांकि हाल में संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट को इस लिहाज से थोड़ी राहत देनेवाला कहा जा सकता है कि इसमें जनसंख्या के मामले में चीन को पछाड़ने की तारीख को तीन साल आगे कर दिया है.
लेकिन वास्तव में यह राहत नहीं हद से हद पल भर की खुशी ही कही जा सकती है, क्योंकि यह रिपोर्ट हमें यह बता रही है कि भारत में संसाधनों पर जनसंख्या का दबाव तेज गति से बढ़ रहा है और तमाम कोशिशाों के बावजूद हम इस पर नियंत्रण लगाने मे कामयाब नहीं हुए हैं.
हाल ही में जनसंख्या से संबंधित संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट ‘द वर्ल्ड पॉपुलेशन प्रॉस्पेक्ट’ में कहा गया है कि वर्ष 2028 तक भारत की आबादी चीन को पार कर जायेगी. फिलहाल चीन की आबादी तकरीबन एक अरब 30 करोड़ है जबकि भारत की आबादी एक अरब 22 करोड़ के आसपास है.
इस रिपोर्ट के मुताबिक 2028 में भारत की आबादी बढ़ कर 1.4 अरब हो जायेगी. चिंता की बात यह है कि भारत की आबादी में स्थिर होने के तुरंत कोई लक्षण नजर नहीं आ रहे हैं और यह तेजी से बढ़ते हुए 2050 तक 1.6 अरब हो जायेगी. हालांकि इसके बाद इसमें गिरावट का दौर शुरू होगा.
यह रिपोर्ट दुनिया पर बढ़ रहे जनसंख्या के बोझ को लेकर एक बड़ी चेतावनी की तरह है. इस रिपोर्ट का कहना है कि विश्व की आबादी का तेजी से बढ़ना जारी रहेगा और फिलहाल करीब 7.2 लोगों को पनाह दे रही धरती पर वर्ष 2025 तक 8.1 अरब लोग जीवन बसर कर रहे होंगे. जाहिर है, जो धरती 7.2 अरब लोगों को गरिमापूर्ण जीवन देने में असमर्थ साबित हो रही है, वह 8.1 अरब लोगों का लालन–पालन किस तरह कर पायेगी, इस बात को लेकर चिंतित होना स्वाभाविक है.
लेकिन चिंता यहीं खत्म नहीं होती. ज्यादा चिंतित होनेवाली बात यह है कि वर्ष 2050 तक दुनिया की आबादी और तेजी से बढ़ते हुए 9.6 अरब हो जायेगी और सदी के अंत तक धरती पर 10.9 अरब लोग जगह, पानी, भोजन और हवा के लिए मारामारी कर रहे होंगे.
कहां बढ़ेगी आबादी
‘द वर्ल्ड पॉपुलेशन प्रॉस्पेक्ट्स’ का कहना है कि दुनिया की आबादी में होनेवाली बढ़ोतरी का आधा से ज्यादा हिस्सा कुछ गिने देशों से आयेगा. इस अनुमान के मुताबिक 2100 तक जनसंख्या में होनेवाले इजाफे में आधा योगदान नाइजीरिया, भारत, तंजानिया, डेमोक्रैटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, नाइजर, यूगांडा, इथोपिया और संयुक्त राष्ट्र अमेरिका का होगा.
इस रिपोर्ट का कहना है कि अभी से लेकर 2100 तक दुनिया की आबादी में होनेवाली वृद्धि का लगभग सारा हिस्सा विकासशील देशों से आयेगा. इस दौरान विश्व की जनसंख्या में करीब 3.7 अरब लोग जुड़ेंगे जो 2050 तक विकासशील देशों की जनसंख्या को 8 अरब पर पहुंचा देंगे. 2100 तक यह आबादी और बढ़ते हुए 9.6 अरब हो जायेगी.
कम विकसित देशों में बढ़ेगा आबादी का बोझ
इन अनुमानों का कहना है कि आबादी में होनेवाली वृद्धि मुख्य रूप से पिछड़े हुए देशों में होगी. जिनके बारे में अनुमान लगाया गया है कि इनकी आबादी वर्तमान के करीब 90 करोड़ से बढ़ कर 1.8 अरब के स्तर पर पहुंच जायेगी. जो और बढ़ते हुए 2100 में तीन अरब हो जायेगी.
रिपोर्ट का कहना है कि आगामी दशकों में होनेवाली जनसंख्या में वृद्धि 15-59 आयु वर्ग की आबादी में 1.6 अरब और 60 से अधिक वर्ष वालों की आबादी में 1.99 अरब लोगों को जोड़ेगी. 60 से ज्यादा उम्र की बड़ी जनसंख्या सामाजिक बोझ को बढ़ायेगा.
आबादी नियंत्रण का मॉडल चीन!
चीन ने दुनियाभर में अपनी पहचान जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण करनेवाले एक मॉडल देश के तौर पर बनायी है. हालांकि यह सवाल दूसरा है कि चीन के मॉडल को भारत जैसे देश अपना सकते हैं या नहीं, क्योंकि वहां जनसंख्या पर नियंत्रण के लिए कठोर दमनात्मक नीतियों का अनुसरण किया गया है, लेकिन इस तथ्य से कोई इनकार नहीं कर सकता कि चीन ने खुद को जनसंख्या के कुचक्र से खुद को बचा लिया है.
द वर्ल्ड पॉपुलेशन प्रॉस्पेक्ट्स के अनुमानों में भी कहा गया है कि चीन की वर्तमान में जनसंख्या 1.3 अरब है. यह 2025 में बढ़ कर 1.4 अरब हो जायेगी. लेकिन इस बिंदु से चीनी की आबादी में गिरावट का दौर शुरू हो जायेगा, और यह 2050 में घट कर 1.3 अरब हो जायेगी. सदी के अंत तक इसमें और कमी आयेगी और यह महज 1.03 अरब रह जायेगी.
भारत का निराशाजनक प्रदर्शन
जनसंख्या के विभिन्न मोर्चे पर भारत का प्रदर्शन निराशाजनक कहा जा सकता है. भारत सरकार के जनगणना विभाग की वेबसाइट के 2009-2011 के आंकड़ों के मुताबिक, जन्म दर और मृत्यु दर समेत नवजात मृत्यु दर में सबसे खराब दशा मध्य प्रदेश की बतायी गयी है. इस राज्य में सबसे अधिक जन्म दर(32.2) है, जबकि मृत्यु दर 11.6 है. साथ ही, नवजात मृत्यु दर भी 75 है.
आंकड़ों के अनुसार भारत में अशोधित मृत्यु दर 7.1 है, जबकि कुल मृत्यु की संख्या में नवजातों की मृत्यु का प्रतिशत 13.6 फीसदी है. नवजातों की कुल मृत्यु की तुलना में एक सप्ताह से कम उम्र वाले नवजात की मृत्यु का प्रतिशत 54.1 है. पांच वर्ष से कम में मृत्यु दर 55, जो विश्व में संभवत: सर्वाधिक है. भारत में शिशु मृत्यु दर 44 है, तो नव–प्रसव मृत्यु दर 31 है.
प्रारंभिक नव प्रसव मृत्यु दर 24 है, तो प्रसव पश्चात मृत्यु दर 7 है. देश के गरीब तबकों में अभी भी शिशु एवं बाल मृत्यु की दर सबसे ज्यादा है. यूनिसेफ भी इस मामले में कई बार अपनी चिंताओं से भारत को अवगत करा चुका है. हमारे देश में पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधायें मुहैया नहीं होने की वजह से लोग अधिक संतान चाहने की हसरत रखते हैं.
उपचार किये जा सकनेवाले रोगों से असमय होनेवाली मृत्यु के आंकड़े इसे और बढ़ावा देते हैं. लगातार बनी हुई गरीबी और अशिक्षा भी जनसंख्या नियंत्रण के प्रयासों पर पानी फेर रही है. गरीबों के लिए घर का हर सदस्य काम करनेवाला हाथ होता है. स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव और गरीबी के कारण समाज में अभी भी जनसंख्या नियंत्रण को लेकर जागरूकता पैदा नहीं की जा सकी है.
हमारी आबादी बढ़ रही है, लेकिन हमारे संसाधन सीमित हैं. खासकर ग्लोबल वार्मिग क मद्देनजर जब यह बताया जा रहा है कि भारत में पैदावार कम हो सकती है, बढ़ती हुई आबादी पर लगाम लगाना देश और समाज की खुशहाली ही नहीं शांति के लिए भी जरूरी है.
भारत की जनसंख्या
– 2028 तक कर जायेगी चीन की जनसंख्या को पार.
– 1.4 अरब हो जायेगी भारत की आबादी 2025 में.
– 1.6 अरब हो जायेगी 2050 तक.
– 2050 से आबादी में होने लगेगी गिरावट
– 1.4 अरब होगी भारत की आबादी 2100 में.
चीन की जनसंख्या
– 1.3 अरब है चीन की जनसंख्या वर्तमान में.
– 1.4 अरब हो जायेगी चीन की आबादी 2025 में. यानी इस वक्त भारत और चीन की आबादी बराबर होगी.
– 1.3 अरब हो जायेगी 2050 तक.
– 2050 से आबादी में होने लगेगी गिरावट
– 1.03 अरब होगी चीन की आबादी 2100 में.
विश्व जनसंख्या में मील के पत्थर
आबादी : वर्ष
1 अरब : 1805
2 अरब : 1927
3 अरब : 1959
4 अरब : 1974
5 अरब : 1987
6 अरब : 1999
7 अरब : 2011
लगे कितने वर्ष
1 से 2 अरब : 122
2 से 3 अरब : 32
3 से 4 अरब : 15
4 से 5 अरब : 13
5 से 6 अरब : 12
6 से 7 अरब : 12
स्नेत : लाइव साइंसडॉटकॉम
चिंता की वजह
भारत की जनसंख्या अमेरिका, इंडोनेशिया, ब्राजील, पाकिस्तान और बांग्लादेश की कुल आबादी से भी ज्यादा है. दुनिया के महज 2.4 फीसदी स्थलीय क्षेत्र वाले भारत पर विश्व की तकरीबन 17 फीसदी जनसंख्या का बोझ है. तथ्य यह है कि हमारे पास संसाधन और खेती लायक जमीन सीमित हैं और इसमें बढ़ोतरी नहीं की जा सकती. जनसंख्या पर नियंत्रण किये बगैर भारत की आबादी के लिए खुशहाली और शांति का सपना देखना आसान नहीं है.
भारत में दशकवार जनसंख्या (करोड़ में)
वर्ष आबादी
1951 : 36.10
1961 : 43.92
1971 : 54.81
1981 : 68.63
1991 : 84.39
2001 : 102.70
2011 : 121.05