अदालत का काम कर रही है ग्राम पंचायतें
झारखंड की पंचायतें अभी ढाई साल की ही हुई हैं. लेकिन, न्यायिक मामलों को सुलझाने की उनकी गति एवं तौर-तरीके से यह बात साबित हो गयी है कि गांव में अब भी पंच परमेश्वर की व्यवस्था विद्यमान है. राज्य की पंचायतों को न्यायिक अधिकार नहीं दिया गया है. इसके बाद भी पंचायतें गांव के सिविल […]
By Prabhat Khabar Digital Desk |
July 14, 2013 3:52 PM
झारखंड की पंचायतें अभी ढाई साल की ही हुई हैं. लेकिन, न्यायिक मामलों को सुलझाने की उनकी गति एवं तौर-तरीके से यह बात साबित हो गयी है कि गांव में अब भी पंच परमेश्वर की व्यवस्था विद्यमान है. राज्य की पंचायतों को न्यायिक अधिकार नहीं दिया गया है. इसके बाद भी पंचायतें गांव के सिविल एवं फौजदारी मामलों को सुलझा रही हैं. बिलकुल अदालत की तरह. वह भी बिना किसी शुल्क के. यहां पर मामले की सुनवाई इस प्रकार होती है कि इसमें जिला एवं हाइकोर्ट की तरह तारीख पर तारीख का चक्कर नहीं होता है. और न ही कोर्ट फी देनी पड़ती है. वकील के फीस और गवाहों के आने-जाने एवं खाने-पीने का खर्च भी नहीं लगता है. इसके साथ ही यह कोर्ट ऐसा है जहां तक हर कोई कभी भी अपनी बात पहुंचा सकता है. पढ़िये नि:शुल्क, सुलभ एवं त्वरित गांव की अदालत पर.उमेश यादव की रिर्पोट
रांची के रातू थाना अंतर्गत काठीटांड़ की गुड़िया देवी की शादी हिंदू रीति-रिवाज के साथ ओरमांझी थाना अंतर्गत जिराबाइर गांव के मुकेश कुमार से हुई थी. यह शादी गुड़िया के माता-पिता ने समझ बूझ कर अपनी बिरादरी में करवाई थी. लेकिन, गुड़िया को यह शादी मंजूर नहीं थी. वह पतरातू थाना अंतर्गत लबगा गांव के विक्रम साहू से प्रेम करती थी और उन्हीं से शादी करना चाहती थी. 13 मई 2011 को शादी के बाद जब गुड़िया ससुराल गयी तो उनका मन वहां नहीं लगा. इसके बाद 29 मई को वह ससुराल वाले को बिना बताये अपने प्रेमी के साथ चली गयी.
फिर क्या था मुकेश कुमार के घर कोहराम मच गया. अब तो यह शादी नहीं चल सकती थी. लिहाजा मुकेश कुमार ने काठीटांड़ के ग्राम पंचायत रातू पूर्वी के मुखिया के पास पंचायती के लिए आवेदन दिया. मुखिया जितेश्वर मुंडा की पहल पर रातू के चिंताहरण शिव मंदिर परिसर में ही पंचायत हुई. इसमें 31 मई को मुखिया, वार्ड सदस्य एवं अन्य गणमान्य लोगों की एक कमेटी बैठी. गुड़िया एवं उनके प्रेमी को बुलाया गया.
पंचों के सामने मुकेश कुमार ने यह सबूत पेश किया कि उनकी पत्नी उन्हें बिना बताये अपने प्रेमी के साथ चली गयी है. इसके बाद पंचों ने सभी की उपस्थिति में बारी-बारी से तीनों पक्षों की राय ली. इस अवसर पर गुड़िया के प्रेमी विक्रम साहू ने भी कहा कि वे एक-दूसरे से प्रेम करते हैं और उन्हें जीवन साथी बनाने के लिए तैयार है. इसके लिए पंचायत उन्हें जो फैसला देगी वह मान्य होगा. मुकेश कुमार ने भी कहा कि चूंकि गुड़िया देवी अपने प्रेमी के साथ ही खुश रह सकती है, इसलिए उनकी शादी का विच्छेदनामा पत्र बना दिया जाय. सभी पक्षों की बात सुनने के बाद पंचों ने भी यही राय दी कि विक्रम साहू गुड़िया से शादी कर ले और उसे अपने साथ रखे. इसके साथ ही विक्रम साहू पर 51 हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया और कहा गया कि यह राशि लड़की के पिता को दी जानी चाहिए ताकि शादी के आयोजन में हुए खर्च की भरपाई हो.
मुकेश कुमार से कहा गया कि शादी में उन्हें उपहार स्वरूप जो सामग्री दी गयी है वह उसे लड़की के पिता को लौटा दे. इस फैसले को तीनों पक्षों ने सहर्ष स्वीकार किया. मुकेश कुमार ने वे सारे सामान लौटा दिये जो उन्हें उपहार में दिया गया था. विक्रम साहू ने जुर्माने की रकम 12 महीने में किस्त पर लौटाने का वादा किया. इसके बाद सभी की सहमति से चिंताहरण शिव मंदिर में ही गुड़िया की शादी उनके प्रेमी विक्रम साहू से करा दी गयी. इस तरह विवाह से जुड़ा यह विवादित मामला तीन दिन में निबट गया. पंचों ने एक दिन में फैसला सुना दिया. फैसला ऐसा हुआ जिसे सभी पक्षों को स्वीकार हुआ. इसके एवज में किसी पक्ष को किसी को कोई फीस नहीं चुकानी पड़ी. हां, पंचायती के दौरान थोड़ी चाय-वाय की व्यवस्था में कुछ राशि खर्च जरूर हुई. लेकिन, इस प्रकार के मामले जो सरकारी अदालतों में निबटाये जाते हैं, उसकी तुलना में देखें तो यह खर्च नगण्य था.
कानून के जानकारों की माने तो ऐसे मामले जो फैमिली कोर्ट में दायर होते हैं की त्वरित गति से सुनवाई पूरी करने पर भी कम से कम एक साल का समय जरूर लगता. इसके बाद कोर्ट एवं वकील फीस और तारीख पर आने-जाने का खर्च मिलाकर दोनों पक्षों का 20 से 25 हजार रुपये आराम से खर्च हो जाता है. लेकिन, क्या झारखंड की ग्राम पंचायतें केवल इसी प्रकार के मामले का निबटारा करती हैं. जी नहीं, यहां की पंचायतें हर प्रकार के मामले को संबंधित पक्षों की आपसी सहमति से सुलझा रही हैं. रातू पूर्वी ग्राम पंचायत के मुखिया श्री मुंडा के अनुसार केवल उन्होंने ही ढाई साल में लगभग 50 मामलों का निबटारा किया है और 15 मामले उनके पास विचारधीन हैं. विचाराधीन मामलों में इस महीने के अंत तक निर्णय ले लिया जायेगा. उनके मुताबिक वे सभी मामलों की सुनवाई कागज पर करते हैं और उसकी एक कॉपी सहेज कर रखते हैं. जिन मामलों को सुलझाया गया है उसमें मारपीट, दुर्घटना, जमीन संबंधी विवाद, शादी-विवाह आदि के मामले शामिल हैं. मुखिया श्री मुंडा के मुताबिक कई मामले ऐसे हैं जिसका निबटारा एक ही दिन की पंचायती में हो जाती है. लेकिन, कई मामले ऐसे होते हैं जो एक दिन में खत्म नहीं होते.
कुछ मामलों में जब देखा जाता है कि पंचायती से बात नहीं बन रही है तो संबंधित पक्षों को सोचने एवं विचारने के लिए कुछ दिन का वक्त दिया जाता है. कुछ मामलों में ऐसा भी हुआ है कि एक दिन की पंचायती में बात नहीं बनी और सभी वापस घर चले गये. लेकिन, एक महीने बाद पुन: वही आदमी आया और बोला कि पंचगण की बात उन्हें मंजूर है. पेंडिंग मामलों में ऐसे भी मामले हैं.
ढाई साल में सुलझाये गये दो लाख से अधिक मामले
झारखंड की पंचायतों ने न्यायिक मामलों को सुलझाने में एक रिकॉर्ड कायम किया है. 50 मामले सुलझाने का रिकॉर्ड केवल रातू पूर्वी पंचायत का ही नहीं है. बल्कि राज्य के सभी पांच प्रमंडलों की 4423 ग्राम पंचायतों में इस प्रकार विभिन्न फौजदारी एवं सिविल मामले सुलझाये गये हैं. कुछ पंचायतों ने अपने यहां सुलझाये गये मामलों की संचिका बनाकर रखी है तो कुछ इसका रिकॉर्ड बनाना उचित नहीं समझते. देवघर जिले के मुखिया संघ के अध्यक्ष एवं मानिकपुर ग्राम पंचायत के मुखिया संजय शर्मा कहते हैं कि पंचायत चुनाव के बाद सरकार ने कोई अधिकार नहीं दिया है. उन लोगों को समझ में भी नहीं आ रहा है कि बिना पैसा एवं पावर के गांव एवं पंचायत का विकास कैसे करें. लेकिन, हर सुबह की शुरुआत पंचायती से ही होती है. हर सुबह द्वार पर दो चार व्यक्ति कोई न कोई मामला लेकर आ ही जाता है. ऐसे में कितने का रिकॉर्ड रखें. यही बात देवघर जिले के ही मुखिया दिनेश मंडल भी कहते हैं. रांची के ओरमांझी प्रखंड के जयडीहा ग्राम पंचायत के पंचायत समिति सदस्य बिनोद बेदिया के अनुसार वे लोग ग्राम पंचायत के लिए नहीं है. उनका चुनाव पंचायत समिति (प्रखंड) के लिए हुआ है. लेकिन, वे भी हर महीने औसतन दो चार मामलों की सुनवाई करते ही हैं. इसमें पत्नी-पत्नी, पिता-पुत्र, भाई – बहन, जमीन-जायदाद एवं शराब पीकर गाली-गलौज करने से भी संबंधित मामले होते हैं. कई मामले ऐसे होते हैं जिसे रास्ते चलते निबटाना पड़ता है. ऐसे में सभी का रिकॉर्ड रखना संभव नहीं है.