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न्याय के प्रप्रतिनिधियों को न्याय नहीं

गांवों में आम आदमी को सस्ता, सुलभ न्याय दिलाने के उद्देश्य से 73 वां संविधान संशोधन विधेयक के तहत बिहार में ग्राम कचहरी को भी कानूनी मान्यता दी गयी. छोटे-मोटे विवादों का निबटारा गांवों में हो, ताकि बड़ी अदालतों पर बोझ कम हो. इसी मकसद से ग्राम कचहरी का गठन किया गया. राज्य में इसके […]

गांवों में आम आदमी को सस्ता, सुलभ न्याय दिलाने के उद्देश्य से 73 वां संविधान संशोधन विधेयक के तहत बिहार में ग्राम कचहरी को भी कानूनी मान्यता दी गयी. छोटे-मोटे विवादों का निबटारा गांवों में हो, ताकि बड़ी अदालतों पर बोझ कम हो. इसी मकसद से ग्राम कचहरी का गठन किया गया. राज्य में इसके प्रप्रतिनिधि भी हजारों की संख्या में चुने गये. पंच-सरपंच संघ बिहार प्रदेश के अध्यक्ष आमोद कुमार निराला का मानना है कि राज्य सरकार ग्राम कचहरी की उपेक्षा कर रही है. वे पूछते हैं कि प्रदेश में ‘न्याय के साथ विकास’ के नारे में ‘न्याय’ कहां है. बातचीत के क्रम में उन्होंने बिहार में पंच-सरपंचों की स्थिति से अवगत कराया. बातचीत की सुशील ने.

73 वां संविधान संशोधन विधेयक के तहत बिहार में ग्राम कचहरी को भी कानूनी मान्यता मिली. मकसद था ग्रामकचहरी के जरिये गांव की जनता को सस्ता व सुलभ न्याय दिलाने का. आज ग्रामकचहरी की उपयोगिता गांव में नजर नहीं आती. छोटे-छोटे मामले भी थानों तक चले जाते हैं. इसके क्या कारण हैं?

ग्राम कचहरी का मुख्य उद्देश्य गांव के लोगों के बीच सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाये रखना है. गांवों में आये दिन आपसी विवाद होते रहते हैं. ग्रामीण कोर्ट-कचहरी की जटिल कानूनी प्रक्रि या के चक्कर में फंस जाते हैं. बाद में चाहते हुए भी वे आपस में समझौता नहीं कर पाते हैं. इसलिए इन मुद्दों को ध्यान में रख कर यह प्रावधान किया गया कि किसी भी विवाद के सामने आने पर ग्राम कचहरी का दायित्व होगा कि दोनों पक्षों के बीच समझौता कराये, ताकि ग्राम वासियों की मेहनत की कमाई कोर्ट-कचहरी के चक्कर में खर्च न हो जाये. राज्य की जनता ने गांव के झगड़ों के निबटारे के लिए लोकतांत्रिक तरीके से अन्य प्रप्रतिनिधियों की तरह पंच-सरपंच का भी चुनाव किया. लेकिन,सात वर्ष बीत जाने पर भी ग्राम कचहरियों को कोई सुविधा व सहयोग बिहार सरकार ने मुहैया नहीं कराया है. आम आदमी के बीच विवादों की परंपरा पाषाण काल से लेकर अब तक सभी कालों में रही है. पंच परमेश्‍वर ब.डे-से-ब.डे विवाद का भी आपसी समझौता एवं सामाजिक बंधनों के आधार पर स्थायी निबटारा करते रहे हैं. लेकिन, वर्तमान में हम ग्राम कचहरी के प्रप्रतिनिधियों की स्थिति बद से बदतर होती चली जा रही है. सरकार के उदासीन रवैये के कारण ग्राम कचहरी नाम की रह गयी है. ग्राम कचहरी के लिए भवन तक नहीं है.

ग्राम कचहरी को सशक्त करने के लिए क्या किया जाना चाहिए?

ग्राम कचहरी तभी सशक्त होगी, जब सरकार चाहेगी. समय और परिस्थितियां बदलीं. लेकिन, ग्राम कचहरी के पंच परमेश्‍वर आज भी वृक्ष के नीचे बैठने को विवश हैं. ग्राम न्यायालय का नाम दिया गया, पर सुविधाएं नदारद. सरकार के मुलाजिम पंच-सरपंच की उपेक्षा करते हैं. बिहार प्रदेश पंच-सरपंच संघ बिहार सरकार को याद दिलाना चाहता है कि न्याय के साथ विकास का वादा क्या हुआ. सरकार क्या न्याय शब्द केवल कहने के लिए उपयोग में लाती है. अगर न्याय करना चाहते हैं, तो सूबे के मुख्यमंत्री ग्राम कचहरियों को सर्वसुविधा संपत्र बनाये. पुलिस, प्रशासन शक्ति से निर्देश दे कि ग्राम कचहरी न्यायपीठ द्वारा लिये गये निर्णय के आलोक में अन्य माननीय न्यायालयों की तरह अनुपालन कराना सुनिश्‍चित करें. पंच, सरपंच, उप सरपंचों पर हो रहे कातिलाना हमलों, झूठा मुकदमा, गाली-गलौज, मारपीट एवं हत्या, लूट के विरुद्ध सरकार सख्ती से पेश आये. अपराधी व असामाजिक तत्वों पर तुरंत कार्रवाई हो. ग्राम कचहरी भवन का निर्माण हो, समानता का अधिकार देते हुए अन्य प्रप्रतिनिधियों की तरह हमें भी अपना प्रप्रतिनिधि चुनने का हक मिले.

ग्राम कचहरी को किन सुविधाओं की दरकार है?

पंचायत स्तर पर कहीं भी ग्राम कचहरी भवन नहीं है. वर्तमान समय में ग्राम न्यायालय किराये के मकान, सामुदायिक भवन, जर्जर पंचायतों की अन्य तंग गलियों में चल रहे हैं, जहां शौचालय, चापाकल, यातायात की सुविधा बिजली आदि कुछ भी नहीं है. सभी ग्राम कचहरी स्थलों तक पक्की सड़क का निर्माण, शौचालय, चापाकल, सोलर लाइट लगना प्राथमिक आवश्यकता है. ग्राम न्यायालयों में स्थायी विधि सहायक, लेखा सहायक, आदेशापाल, चौकीदार भू-मापक अमीन की नियुक्ति/प्रतिनियुक्ति करायी जाये. सुनवाई तिथि पर स्थानीय पुलिस, अन्य संबंधित अधिकारी-कर्मचारी उपस्थित होकर न्याय कायरें में सहयोग प्रदान करें. सरकार अगर ग्राम कचहरी को सुविधा संपत्र बनाती है, तो गांव की जनता को सस्ता-सुलभ न्याय का सपना साकार हो सकेगा.

अधिकार मिलने पर आप क्या करेंगे?

सरपंचों को सरकार प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट का पावर दे और अन्य प्रप्रतिनिधियों की तरह अपना प्रप्रतिनिधि चुनने का अधिकार मिले. इससे ग्राम कचहरी के सदस्यों में उत्साह आयेगा. काम करने में उन्हें सकारात्मक ऊर्जा मिलेगी. एमएलसी के चुनाव में मतदान का अधिकार के साथ-साथ जनसंख्या के आधार पर बिहार विधानसभा एवं परिषद सदस्यों की तरह वेतन भत्ता, पेंशन, सुरक्षा, स्वास्थ्य, बीमा आदि सुविधाएं मिलना चाहिए. सरकार अगर ग्राम कचहरियों एवं प्रप्रतिनिधियों को सर्वसुविधा संपत्र बनाती है, तो हम सरकार के न्याय के साथ विकास कार्यक्रम की महत्वपूर्ण कड़ी बन सकते हैं.

सरकार से क्या हैं आपकी शिकायतें?


ग्रामकचहरी प्रप्रतिनिधि किस प्रकार के निर्वाचित प्रप्रतिनिधि हैं. कार्यपालिका व न्यायपालिका इसकी कोई भूमिका नहीं है.

सरकार स्पष्ट करे कि ग्राम कचहरी प्रप्रतिनिधि किस प्रकार के निर्वाचित प्रप्रतिनिधि हैं ? सरपंचों को प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट का दर्जा दिया जाये.

ग्राम कचहरी का निर्वाचन जब समय से हो रहा है तो इसे पूर्ण सुविधा संपत्र क्यों नहीं बनाया जा रहा है, इसके पीछे क्या सोच है सरकार की कृपया स्पष्ट करें.

60 से 70 प्रतिशत आबादी ने अपना न्याय प्रप्रतिनिधि चुना आपसी विवाद-वाद सुलझाने को पर सरकार व प्रशासन इन्हें सहयोग नहीं कर रही. इसके पीछे क्या सोच है.

ग्राम कचहरी और इसके निर्वाचित प्रप्रतिनिधि सर्व सुविधा संपत्र बने और आम जनता को सुरक्षा एवं सुलभ न्याय, स्थायी समस्याओं का निदान वादी. प्रतिवादी के घर में ही समस्या का निदान हो जाये. इसमें क्या आपत्ति है.

सरकार एवं न्यायालय क्या अपना मुकदमा का बोझ कम नहीं करना चाहते. कब तक ग्राम कचहरी सर्व सुविधा संपत्र बनेगी. जो आम चर्चा का विषय बना हुआ है.

कब तक पंच, उपसरपंच, सरपंचों पर झूठे मुकदमे, जानलेवा हमला, आपराधिक घटना, मारपीट व उनकी हत्या होती रहेगी

क्या सरकार ग्राम कचहरी के माध्यम से आम जनमानस को न्याय में सहयोग प्रदान नहीं कराना चाहती. क्या न्याय की बात दिखावा है.

बिहार पंचायती राज अधिनियम, 2006 के तहत ग्राम कचहरी के निर्वाचित प्रप्रतिनिधिगण समानता के अधिकार से वंचित है. स्थानीय निकाय विधान परिषद के चुनाव में मतदान करने का अधिकार नहीं दिया गया है.

ग्राम सभा के मतदाताओं द्वारा पंचायत के सभी प्रप्रतिनिधि निर्वाचित होते हैं, जिसमें 8442 ग्राम कचहरी के सदस्यों की संख्या भी 1,23,984 है. सामान्य विधि से हम सभी निर्वाचित होते हैं.

विधान परिषद सदस्य के रूप में हमें भी प्रप्रतिनिधित्व करने के लिए मनोनीत किया जाये.

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