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मेरी आवाज ही पहचान है..

6 फरवरी 1940 को अमृतसर में जन्मे भूपिंदर सिंह को संगीत विरासत में मिला. गजल सहित पार्श्‍व गायक, गिटारिस्ट और कंपोजर जैसी कई उपलब्धियां उनके साथजुड़ीहैं. लेकिन प्रशंसकों के लिए वह खालिस गजल गायक ही हैं. वक्त-ए-सफर थोड़ी सी रूमानी, मुलायमत में पगी, सर्दीले मौसम सी, कभी गुनगुनी धूप की तरह वह आवाज बार-बार मिली. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 15, 2013 11:53 AM

6 फरवरी 1940 को अमृतसर में जन्मे भूपिंदर सिंह को संगीत विरासत में मिला. गजल सहित पार्श्‍व गायक, गिटारिस्ट और कंपोजर जैसी कई उपलब्धियां उनके साथजुड़ीहैं. लेकिन प्रशंसकों के लिए वह खालिस गजल गायक ही हैं.

वक्त-ए-सफर

थोड़ी सी रूमानी, मुलायमत में पगी, सर्दीले मौसम सी, कभी गुनगुनी धूप की तरह वह आवाज बार-बार मिली. सूने दिनों में कांधे पर हाथ रखा, मीलों लंबे रास्तों पर उंगली थाम साथ चली. उस आवाज का सिरा पकडकर रूमानियत के आसमान को छूते हुए एक ही ख्वाब कई बार देखा है मैंने’. भीड. भरे चौराहों की भटकन में एक अकेला इस शहर में, रात में दोपहर में, आब ओ दाना ढूंढ.ता हैगुनगुनाते हुए वह आवाज मिल ही जाती किसी मोड. पर. अकसर उसके पीछे चलते हुए दिल ढूंढ.ता है फिर वही फुरसत के रात दिन’. उस आवाज ने नासाज दिल को कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलताऔर किसी नजर को तेरा इंतजार आज भी हैकी तसल्ली का मरहम दिया है. यह आवाज मशहूर गजल गायक भूपिंदर सिंह की है. लेकिन क्या भूपिंदर सिंह की प्रतिभा को गजल गायकी की दायरे में समेटा जा सकता है!

उनकी आवाज ने हुजूर इस कदर भी न इतरा के चलिएजैसे शोखी से भरे फिल्मी गीत दिये हैं, तो उनकी उंगलियां दम मारो दमजैसे कई गीतों में जादू की तरह गिटार पर चली हैं. गुलजार साहब की कई खूबसूरत नज्में भूपिंदर सिंह की गायकी से सजी हैं. अपने एलबम वो जो शायर थामें गुलजार उनके लिए कहते भी हैं जैसे कोई ख्याल अपनी आवाज के पास आकर बैठ गया हो. आवाज और ख्याल एक हो गये. इन नज्मों में भूपी शायर भी है और गायक भी’. गजल गायक के साथ पार्श्‍व गायक , गिटारिस्ट और कंपोजर जैसी कई उपलब्धियां उनके साथ जुड़ी हैं. लेकिन प्रशंसकों के लिए वह खालिस गजल गायक ही हैं, जो अपनी गायिकी से र्शोताओं को बांध लेने का हुनर रखते हैं.

6 फरवरी 1940 को अमृतसर में जन्मे भूपिंदर सिंह को संगीत विरासत में मिला. पिता नाथा सिंह एक प्रशिक्षित गायक थे और उनके शुरुआती गुरु भी, जिनसे उन्हें संगीत की प्रारंभिक शिक्षा मिली. गायिकी के साथ उन्होंने गिटार और वॉयलिन में भी महारत हासिल की. भूपिंदर सिंह की पहली प्रस्तुति कहें या संगीत कैरियर की शुरुआत, ऑल इंडिया रेडियो, दिल्ली से हुई. वह दिल्ली दूरदर्शन से भी जुडे.. एक रेडियो प्रस्तुति के दौरान प्रसिद्ध संगीतकार मदनमोहन ने भूपिंदर सिंह को सुना और फिल्म हकीकतमें उन्हें तलत महमूद, मोहम्मद रफी और मत्रा डे जैसे उस दौर के शीर्षस्थ गायकों के साथ गाने का मौका दिया. उनकी गायिकी को सराहा गया लेकिन किसी मुकाम तक पहुंचने का रास्ता धुंधला ही रहा. वह बतौर गिटारिस्ट राहुल देव बर्मन के आरकेस्ट्रा से जुडे. और यह साथ गहरी दोस्ती में कायम रहा.

आरडी के संगीत, गुलजार के गीत और भूपिंदर सिंह की आवाज के संगम से गिनती के ही सही, यादगार गाने निकले. इनमें परियचका बीती न बितायी रैना, बिरहा की जाई रैना और मितवा बोले मीठे बैन’,‘मासूमका हूजूर इस कदर भी’, और किनाराका नाम गुम जायेगा’,‘एक ही ख्वाब’,‘कोई नहीं है कहींगीत देखने को मिलते हैं. कम लोग जानते होंगे ज्वेलथीफफिल्म के गीत होठों में ऐसी बातमें हो शालूवाली पुकार भूपिंदर सिंह की आवाज में है. गजल गायिका मिताली, जो भूपिंदर सिंह की जीवन संगिनी भी हैं, के साथ में कई एलबम आये. यह जोडी गजल प्रेमियों के बीच आज भी खूब लोकप्रिय है.गुलमोहरऔर चांद परोसा हैजैसे एलबम इसकी मिसाल है. ऐसे में शम्मा जलाये रखनाको कैसे भूला जा सकता है!

उम्र के 74 वें साल से गुजर रहे भूपिंदर सिंह अब फिल्मों के लिए नहीं गाते. 1998 में सत्याफिल्म के लिए उन्होंने बादलों से काट काट केगीत को आवाज दी थी, इसके बाद किसी फिल्म में उन्हें शायद ही सुना गया. लेकिन गजल गायिकी में उनकी सक्रियता पहले की मानिंद बरकरार है. भूपिंदर पर बात उनकी नशीली आवाज के जादू से शुरू हुईथी, अंत में फिर इस आवाज के असर का जिक्र जरूरी लगने लगा है.

बाजारफिल्म में बशर नवाज की लिखी और खय्याम के संगीत से सजी गजल करोगे याद, तो हर बात याद आयेगीको जब भी सुनो तो लगता है कि इसे अगर भूपिंदर सिंह की आवाज न मिलती, तो क्या हम इसकी शिद्दत को छू पाते? इसके अंतरे गली के मोड. पे, सूना सा कोईदरवाजा, तरसती आंखों से रस्ता किसी का देखगातक पहुंचते हुए गला इसी तरह रुंध जाता? शायद नहीं, क्योंकि भूपिंदर सिंह की आवाज में एक लौ हैजो उदासी के अंधेरों में भी साथ चलती है पहचान बनकर.

प्रीति सिंह परिहारवक्त-ए-सफर6 फरवरी 1940 को अमृतसर में जन्मे भूपिंदर सिंह को संगीत विरासत में मिला. गजल सहित पार्श्‍व गायक, गिटारिस्ट और कंपोजर जैसी कई उपलब्धियां उनके साथ जुडी हैं. लेकिन प्रशंसकों के लिए वह खालिस गजल गायक ही हैं.

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