हिम युग के बाद घास के निशान
अंतिम हिम युग के आखिरी काल में जैसे–जैसे यह धरती गर्म होती गयी, उत्तरी पेसिफिक महासागर में घास की मौजूदगी के तौर पर जीवन का अस्तित्व सामने आया. जैविक उत्पादों के उस दौर में तकरीबन 14,000 वर्ष पूर्व, समुद्र में इस इलाके में फाइटोप्लेंकटॉन और अमीबा की तरह के कुछ छोटे जीव देखने को मिले, […]
अंतिम हिम युग के आखिरी काल में जैसे–जैसे यह धरती गर्म होती गयी, उत्तरी पेसिफिक महासागर में घास की मौजूदगी के तौर पर जीवन का अस्तित्व सामने आया. जैविक उत्पादों के उस दौर में तकरीबन 14,000 वर्ष पूर्व, समुद्र में इस इलाके में फाइटोप्लेंकटॉन और अमीबा की तरह के कुछ छोटे जीव देखने को मिले, जो शायद कुछ हद तक अपना अस्तित्व बचाये रखने में कामयाब हुए थे.
इन जीवों ने चमत्कारिक रूप से सौ वर्षो के बाद अपने अस्तित्व को फिर से कायम करने में कामयाबी हासिल की थी. शोधकर्ताओं का अब तक यह मानना रहा है कि सागरीय जीवन के इस अस्तित्व की वजह लोहे में स्पार्क होना हो सकता है. लेकिन ‘साइंस डेली’ में छपी एक खबर में बताया गया है कि इसमें लोहे की ज्यादा भूमिका नहीं रही होगी.
इस हालिया अध्ययन में वुड होल ओसिनोग्राफिक इंस्टीट्यूशन, यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल, (यूके) यूनिवर्सिटी ऑफ बेर्गेन (नॉर्वे), विलियम्स कॉलेज और कोलंबिया यूनिवर्सिटी की लेमोंट डोहेर्टी अर्थ ऑब्जर्वेटरी के कई वैज्ञानिक समेत अन्य सहयोगी शामिल थे. इस अध्ययन में हिम युग के बाद की प्रकाश आधारित पोषकता एवं जीवन की अवधारणा को शामिल किया गया.
इस नये शोध में उत्तरी पेसिफिक में उस दौरान हुई जैविक उत्पादकता और लोहे के बीच संबंधों के विरोधाभासी विचारों का समाधान किया गया है. इसके लिए जीयो–इंजीनियरिंग (भू–अभियांत्रिकी) का इस्तेमाल करते हुए समुद्र में लोहे के साथ हुए मौसम में बदलाव की घटना की सक्षमता का आंकलन किया गया.