जब छोटे सपनों के पर निकलने लगें

* कभी भी उन पर हाथ न उठाएं. * दोस्तों के सामने न डांटें और न ही पूछताछ करें. * एकदम से किसी बदलाव की अपेक्षा न करें. * अगर कभी वे बहुत गुस्से में हों, तो आप शांत हो जाएं. * समझाएं पर बच्चों की किसी से तुलना न करें. * पूरी बात सुने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 18, 2013 11:20 AM

* कभी भी उन पर हाथ न उठाएं.

* दोस्तों के सामने न डांटें और न ही पूछताछ करें.

* एकदम से किसी बदलाव की अपेक्षा न करें.

* अगर कभी वे बहुत गुस्से में हों, तो आप शांत हो जाएं.

* समझाएं पर बच्चों की किसी से तुलना न करें.

* पूरी बात सुने बिना किसी काम के लिए मना न करें.

ऐन वक्त पर उनका कोई प्रोग्राम खराब न करें, लेकिन आगे से किसी भी प्लानिंग को लेकर उसके बारे में आपको पहले ही बताने को कहें.रांची का सत्रह साल का राहुल अकसर अपने माता-पिता के सवालों से परेशान रहता है. इतनी रात में कहां जा रहे हो? कितनी देर में आओगे? गाड़ी तेज क्यों चलाते हो? अभी तक जाग रहे हो! हर वक्त फोन पर किससे बात करते हो? ये कैसे कपडे. पहने हैं? अभी तो पैसे दिये थे, कैसे खत्म हो गये? इतने कम नंबर क्यों आये हैं? वगैरह-वगैरह. कुछ यही हाल बोकारो की अठारह साल की काव्या के घर का भी है. सच तो यह है कि अधिकतर घरों में युवावस्था में कदम रख रहे बच्चों से माता-पिता ऐसे ही सवाल पूछते हैं. बच्चों को लगता है कि उनके माता-पिता हर बात पर रोक-टोक करते हैं. दूसरी ओर अभिभावकों को लगता है उनका बच्चा बिगड.ता जा रहा है. जबकि सच यह है कि आज के समय में घर-घर की कुछ ऐसी ही कहानी है. आइए देखते हैं आज के बच्चों से ज्यादातर अभिभावकों को किस प्रकार की शिकायतें रहती हैं और उनके संभावित हल क्या हो सकते हैं.

चिंता बढ़ाती है अलग-सी दिनचर्या

सेलफोन, लैपटॉप, वीडियो गेम और इनसे टाइम मिला तो टीवी. आजकल के बच्चे पूरे समय किसी-न-किसी गैजेट से ही चिपके रहते हैं. देर रात तक इनके मोबाइल में मैसेज टोन बजती है और आधी रात के बाद फेसबुक अपडेट होता है. इसके अलावा स्कूल और कोचिंग के लिए वे घर से थोड़ा पहले ही निकल जाते हैं और कोचिंग खत्म होने के बाद अकसर देर से घर वापस आते हैं. कभी एक्सट्रा क्लास का बहाना, तो कभी किसी दोस्त या सहेली का जन्मदिन. परिवार के साथ वक्त बिताना या मेहमानों के साथ घुलना-मिलना तो उन्हें जरा भी पसंद नहीं होता. छुट्टी के दिन भी वे घर पर नहीं रहना चाहते.

अजीब कपडे., बेढंगा बोलचाल

कपड़ों के मामले में भी इनकी अलग ही पसंद है. कमर से नीचे खिसकती जीन्स, छोटे और शरीर से चिपके कपडे., हाथ में ब्रेसलेट, लाल-हरे रंगों में रंगे बाल, महंगे परफ्यूम, घड़ी, जूते, बैग और जहां तक संभव हो सब कुछ ब्रांडेड. फैशन के नाम पर अजीब कपडे. पहनना आज युवा होते बच्चों का शौक होता है, तो बेढंगी भाषा के प्रयोग को वे अपना स्टाइल समझते हैं. माता-पिता से तो उन्हें ज्यादा बातें करना अच्छा ही नहीं लगता और कुछ समझाने की कोशिश करो, तो टका-सा जवाब देने में उन्हें दो पल भी नहीं लगता.

आज इस दोस्त का जन्मदिन है, आज उसे ट्रीट देनी है, गाड.ी में पेट्रोल डलवाना है, मोबाइल रिचार्ज कराना है, नोट्स की फोटोकॉपी करानी है, मैसेज कार्ड डलवाना है.. ऐसे न जाने कितने बहाने बना आये दिन पैसों की मांग रहती है और हर महीने दी जानेवाली पॉकेट मनी उन्हें हमेशा कम ही लगती है. अकसर यही तर्क कि उनके दोस्तों को मिलनेवाली पॉकेटमनी के सामने, तो उन्हें कुछ भी नहीं मिलता.

उनके जैसा बन कर समझें उन्हें

पढ़ाई से लेकर, सही संगत और सही कैरियर किसी भी विषय में बच्चों को कोई सलाह देने या समझाने की कोशिश की जाये, तो ज्यादातर जवाब मिलता है,‘ये मेरी जिंदगी है, मुझे मेरे तरीके से जीने दो.ज्यादा कुछ बोलो तो एक शिगूफा कि मुझे यहां कोई नहीं समझता.कुछ पूछताछ करो तो मेरी पर्सनल स्पेस खत्म कर देना चाहते हैंजैसे न जाने कितने डायलॉग्स सुनने को मिलते हैं. ये तो थीं वे आम शिकायतें, जो ज्यादातर टीनेज बच्चों के अभिभावकों को उनसे होती हैं. अब सवाल ये उठता है कि ऐसे में अभिभावकों को क्या करना चाहिए. सबसे पहले ये जान लीजिए कि वर्तमान पीढ़ी ऐसी ही है और अगर आपका बच्चा ऐसा कर रहा है, तो परेशान होने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि इसमें कुछ भी अनोखा नहीं है. उम्र के जिस पड़ाव पर वे हैं, वहां ज्यादा समझदारी और संयम आपको ही दिखाना होगा.

अपने बच्चे के इस बदलाव को जानने और समझने के लिए उन्हें उनकी नजर से देखना शुरू करें. उनके जैसा बन कर और उनके करीब जाकर जानिये कि इस समय उनकी जिंदगी, उनके मन और उनके विचारों में क्या चल रहा है. यही सही समय है कि माता-पिता में से कोई एक अब उनका दोस्त बन जाये. उन्हें ऐसा माहौल दे, ऐसा महसूस कराये कि वे बेझिझक अपने दिल की बात आपसे शेयर कर सकें. डांट कर, गुस्सा दिखा कर, जोर जबरदस्ती करके इस उम्र के बच्चों के बीच कुछ भी बदलना बहुत मुश्किल होता है. वह करते वही हैं, जो करना चाहते हैं, बस आपके डर से उसे छिपाने लगते हैं.

सीमित सुविधाएं दें


मोबाइल, लैपटॉप, इंटरनेट कनेक्शन, बाइक या ऐसी कोई भी सुविधा देने से पहले ये जांच लें कि उन्हें वाकई किन चीजों की जरूरत है और किस स्तर तक ये जरूरत पूरी की जा सकती है. मोबाइल दीजिए, लेकिन मल्टीमीडिया सेट नहीं. फोन का मुख्य काम बातचीत है, वह हो जाना चाहिए. इंटरनेट कनेक्शन अनलिमिटेड मत लीजिए. समय निकाल कर नेट की हिस्ट्री से देखिये कि आपका बच्चा क्या सर्च कर रहा है. उसकी सोशल साइट पर खुद को भी जोड़िए और देखिए उसके किस प्रकार के दोस्त हैं. एक सीमित मात्रा में पैसा दीजिए. समय और मूड देख कर पूछते रहिए कि वह कहां और किस प्रकार से खर्च हो रहा है. उन्हें समझाने के दौरान आप अपना आपा न खोयें. उन्हें कोई भी बात प्यार से समझाएं.

रैना त्रिपाठी

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