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ललित बाबू ने नापी शून्य से शिखर की दूरी

डॉ जगन्नाथ मिश्र पूर्व रेल मंत्री ललित बाबू हत्याकांड के दोषियों को लगभग 40 साल बाद निचली अदालत ने आजीवन कैद की सजा सुनायी है. दो जनवरी, 1975 को समस्तीपुर रेलवे स्टेशन पर रेलवे लाइन के उद्घाटन समारोह के दौरान लगभग 5.30 बजे जबरदस्त बम धमाका हुआ, जिसमें वह घायल हो गये. उन्हें चिकित्सा के […]

डॉ जगन्नाथ मिश्र

पूर्व रेल मंत्री ललित बाबू हत्याकांड के दोषियों को लगभग 40 साल बाद निचली अदालत ने आजीवन कैद की सजा सुनायी है. दो जनवरी, 1975 को समस्तीपुर रेलवे स्टेशन पर रेलवे लाइन के उद्घाटन समारोह के दौरान लगभग 5.30 बजे जबरदस्त बम धमाका हुआ, जिसमें वह घायल हो गये.

उन्हें चिकित्सा के लिए एक विशेष ट्रेन से लगभग 8.30 बजे दानापुर के लिए भेजा गया, जहां चिकित्सा में विलंब होने के कारण तीन जनवरी, 1975 को निधन हो गया. ललित बाबू उस दौर में बिहार में कांग्रेस के सबसे लोकप्रिय नेता बन गये थे.

आजादी के कुछ वर्षो के बाद सन 1952 में वह सांसद और सन 1957 में पर्लियामेंटरी सेक्रेटरी बने. फिर डिप्टी मिनिस्टर, स्टेट मिनिस्टर और कैबिनेट मिनिस्टर. शून्य से शिखर तक दूरी नापी. मृदुभाषी, मिलनसार और सबकी मदद करना उनकी विशेषता थी. उन्होंने केंद्र में कई मंत्रालय संभाले. पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह भी उनके सलाहकार रह चुके हैं. ललित बाबू इंदिरा गांधी मंत्रिमंडल के बहुत शक्तिशाली मंत्री थे.

1962 में चीन आक्रमण और 1965 में पाकिस्तान के आक्रमण के बाद पंडित नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी ने रक्षा उत्पादन मंत्रालय का दायित्व अपने विश्वासयोग्य मंत्री ललित बाबू पर सौंपा था. उनकी सूझबूझ एवं गहन चिंतन से भारत के निर्यात में विस्तार एवं आयात में कटौती हुई और भारत का विदेशी मुद्रा संकट समाप्त हुआ. ललित बाबू में संगठन को अद्भुत क्षमता थी. इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हमें उस समय देखने को मिला, जब इंदिरा गांधी ने 1969 में बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया. राष्ट्रपति के चुनाव में कांग्रेस संसदीय बोर्ड ने बेंगलुरु कांग्रेस अधिवेशन के समय जुलाई, 1969 में नीलम संजीवा रेड्डी को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सहमति के बगैर राष्ट्रपति पद के लिए कांग्रेस का अधिकृत उम्मीदवार मनोनीत किया. श्री रेड्डी तथाकथित कांग्रेस के सिडिंकेट के उम्मीदवार के रूप में चर्चित रहे. श्रीमती गांधी के विरुद्ध चले गये. इस अवसर पर ललित बाबू की भूमिका महत्वपूर्ण रही. जब उन्होंने तत्कालीन उपराष्ट्रपति वीवी गिरि को निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में राष्ट्रपति के चुनाव के लिए राजी कराया.

उन्होंने ही श्रीमती गांधी को वीवी गिरि को समर्थन देने के लिए राजी कराया और उस ऐतिहासिक राष्ट्रपति चुनाव में ललित बाबू की महत्वपूर्ण भूमिका थी. उसी चुनाव में श्रीमती गांधी के आदेश से अंत:करण की आवाज पर मत देने की अपील की गयी. संसदीय दल और विधानसभा सदस्यों और वामपंथी दलों से समर्थन जुटाने में ललित बाबू की अहम भूमिका रही और उस चुनाव में वीवी गिरि राष्ट्रपति चुने गये, जिसके परिणामस्वरूप कांग्रेस का विभाजन हुआ. कांग्रेस विभाजन में श्रीमती गांधी के साथ ललित बाबू की महत्वपूर्ण भूमिका थी. बिहार के सभी शीर्षस्थ नेता सिडिंकेट के पक्ष में थे.

अकेले ललित बाबू ने इंदिरा जी समर्थित कांग्रेस की नैया की पतवार थामी थी. उन्होंने 1971 और 1972 के चुनावों में इस निष्ठा और कर्मठता के साथ काम किया कि कांग्रेस को अजेय बहुमत प्राप्त हुआ तथा देश में इंदिरा जी द्वारा आशीर्वाद प्राप्त कांग्रेस का झंडा बुलंद हुआ. प्रत्येक वर्ष तीन जनवरी एक ऐसा दिन है, जो मेरे लिए मार्मिक वेदना और पीड़ा के साथ पुरानी स्मृतियों को ताजा करते हुए आता है, साथ ही बिहार और भारत की निरंतर सेवा में लगे रहने की प्रेरणा भी दे जाता है. ललित बाबू के इस बलिदान दिवस पर सहसा याद आ जाती है उनकी वह उक्ति-‘मैं रहूं न रहूं बिहार आगे बढ़ कर रहेगा.’

(लेखक पूर्व मुख्यमंत्री व ललित बाबू के अनुज हैं)

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