दिलीप एम चिनॉय राष्ट्रीय स्किल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन के मैनेजिंग डॉयरेक्टर और चीफ एक्जक्यूटिव ऑफिसर हैं. देश में युवाओं के कौशल विकास की स्थिति, बिहार-झारखंड में कौशल विकास के कार्यक्रम, पंचायत की भागीदारी आदि बिंदुओं पर पेश है पंचायतनामा के लिए संतोष कुमार सिंह से उनकी बातचीत के प्रमुख अंश :
किसी भी युवा की जिंदगी में कौशल का क्या योगदान है? राष्ट्रीय कौशल विकास संस्थान किस तरह से युवाओं के कौशल विकास में मदद करता है?
प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन की जरूरतों को पूरा करने के लिए रोजगार की आवश्यकता होती है. और जब आप रोजगार की तलाश में जाते हैं तो बाजार अप्रशिक्षित कामगार की बजाय प्रशिक्षित कामगार की मांग करता है. बाजार की इसी जरूरत को समझते हुए वर्ष 2008-09 में तात्कालिन वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने राष्ट्रीय कौशल विकास निगम के गठन की घोषणा की. उसी समय से यह संस्थान देश के विभिन्न इलाकों में कौशल विकास के लिए काम कर रहा है, ताकि हमारे युवा बाजार की जरूरतों के अनुरूप विविध प्रकार के कौशल ग्रहण कर बेहतर रोजगार पा सकें. संस्थान द्वारा कराये गये एक अध्ययन के अनुसार 20 ऐसे प्रमुख क्षेत्र हैं, जिनमें 2022 तक कुशल श्रमिकों की मांग तथा उपलब्धि में भारी अंतर होने की संभावना है. संस्था इसी अंतर को पाटने की कोशिश कर रही है. विगत तीन वर्षों से हमारी संस्था लगातार इस काम में लगी हुई है.
अब तक कितने युवाओं का कौशल विकास संस्थान द्वारा किया गया है. कौशल विकास कार्यक्रम के तहत किन-किन कार्यक्रमों को प्राथमिकता दी गयी है?
संस्थान के द्वारा पिछले वर्ष तक देश के अलग-अलग हिस्सों में लगभग 60 लाख युवाओं के कौशल विकास किया गया था. वर्ष 2013-14 तक यह संख्या बढ़ कर 90 लाख हो जाएगी. देश के 325 जिलों में 1500 स्किल डेवलपमेंट सेंटर चल रहे हैं, जिनमें चार लाख युवाओं का कौशल विकास किया जा रहा है.
हम कौशल विकास कार्यक्रम के तहत विविध क्षेत्रों का चयन करते हैं जैसे वाहन तथा उससे जुड़े पुर्जे का काम, इलेक्ट्रॉनिक्स, वस्त्र उद्योग, चमड़ा तथा चमड़े से बनी सामग्री, रसायन तथा औषधि से जुड़ा काम, जवाहरात तथा कीमती पत्थर, निर्माण उद्योग, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग, हथकरघा तथा हस्तशिल्प उद्योग, गृहनिर्माण तथा गृहसज्जा की वस्तुओं का उद्योग के संबंध में प्रशिक्षण देते हैं. इसके अलावा बीपीओ, कंप्यूटर, पर्यटन तथा होटल उद्योग, स्वास्थ्य सेवा, बैंकिंग, बीमा आदि क्षेत्रों के लिए भी युवाओं को प्रशिक्षण दिया जाता है. सबसे बड़ी बात है कि निजी क्षेत्र में हम अपनी संस्था के सहयोग से चलाये जा रहे संस्थानों के 75 फीसदी छात्रों को रोजगार दिलाने में कामयाब हुए हैं.
किस इलाके में किस तरह के कौशल की जरूरत है, रोजगार की क्या संभावनाएं हैं. इसका चयन किस तरह से किया जाता है?
हमने इसके लिए पूरा मैकेनिज्म विकसित किया है. सेक्टर स्किल काउंसिल के द्वारा जिले में उद्योग की जरूरत, उपलब्ध कौशल की कमी (स्किल गैप एनालिसिस), युवाओं की इच्छा, उनकी अपेक्षा को ध्यान में रखकर अलग-अलग इलाकों के मद्देनजर पाठ्यक्रम का निर्धारण किया जाता है. इतना ही नहीं युवाओं को प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में दाखिला देते समय उनकी कैरियर काउंसेलिंग की भी व्यवस्था है. इतना ही नहीं हम कैरियर कांउसेलिंग के समय यह ध्यान रखते हैं कि जो युवा जिस कार्य के लायक हैं, उन्हें उसी तरह का प्रशिक्षण दिया जाये. हमारी कोशिश होती है कि उन्हें बेहतर प्रशिक्षण मिले और अब तक का रिकार्ड रहा है कि जिन युवाओं ने कौशल विकास संस्थान से प्रशिक्षण लिया है, उसमें से लगभग 75 फीसदी लोगों को प्लेसमेंट दी गयी है. इसके लिए हमारे संस्थान ने निजी संस्थानों के साथ मिलकर इस काम को बढ़ाया है.
कौशल विकास के लिए युवाओं को तैयार करने में शिक्षा प्रणाली का क्या महत्व है? स्कूली शिक्षा का कौशल विकास पर कितना प्रभाव पड़ता है?
रोजगार परक शिक्षा देश में बेरोजगारी को दूर करने के लिए और उद्योग की जरूरत के मुताबिक कुशल श्रमिक तैयार करने के लिए बहुत ही जरूरी है. लेकिन रोजगार परक शिक्षा की बुनियाद तभी बेहतर ढंग से तैयार होती है जब स्कूली शिक्षा के सभी स्तर में सुधार हो. चाहे वो प्राथमिक शिक्षा हो, माध्यमिक हो या फिर उच्च शिक्षा. स्कूली शिक्षा के दौरान ही बच्चों के रुझान का पता चलता है. इसलिए स्कूली शिक्षा के दौरान ही कौशल विकास से जुड़े विभिन्न आयामों पर काम किये जाने की जरूरत है तभी हम वर्ष 2022 तक 50 करोड़ लोगों को कुशल श्रमिकों की श्रेणी में लाने तथा पहले से कुशल श्रमिकों की कुशलता में वृद्धि करने का लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं.
झारखंड-बिहार के इलाके में कौशल विकास संस्थान द्वारा किस तरह के पाठ्यक्रम संचालित किया जा रहा है?
झारखंड-बिहार के इलाके में कौशल विकास की अपार संभावनाएं उपलब्ध हैं. झारखंड की बात करें तो प्रदेश में नेश्नल स्किल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन ने डिलॉयटे डॉचे तोमाश्तु इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को राज्य में जिला स्तर पर स्किल गैप एनालिसिस का काम सौंपा. इसके द्वारा कराये गये अध्ययन के आधार पर राज्य के अलग-अलग जिलों में किस तरह के कुशल श्रमिक की जरूरत है, इसकी संभावनाओं को टटोला गया है. इस रिपोर्ट के अनुसार राज्य में धनबाद, रांची, पश्चिमी सिंहभूम, हजारीबाग और पूर्वी सिंहभूम आदि जिलों में रोजगार की संभावनाएं बहुत हैं. यहां लौह अयस्क के खान होने के कारण कुशल मजदूरों की आवश्यकता है. साथ ही साथ रांची जैसे जिले में सर्विस इंडस्ट्री में, रिटेल में, अस्पतालों में रोजगार है. अशोका होटल रांची के साथ मिल कर होटल उद्योग के लिए जरूरी कुशल श्रमिक तैयार करने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. इसी तरह प्रदेश में बैंकिग कॉरसपोंडेंट की मांग को देखते हुए इसका प्रशिक्षणा भी दिया जा रहा है.
बिहार के भागलपुर में बेंगलुरु की कंपनी कैरेबेन और इंडस्ट्री ने सर्वे कराया है कि कैसे यहां की परंपरागत सिल्क इंडस्ट्री में नये-नये डिजाइन का उपयोग करते हुए घाटे में चल रहे इस व्यापार को देशव्यापी पहचान दिला कर अधिक से अधिक लोगों को रोजगार से जोड़ा जा सके, इस दिशा में पहल की जा रही है. इसके अलावा बिहार के मधुबनी पेंटिग और झारखंड के परंपरागत आर्ट एवं क्रॉफ्ट को प्रोत्साहित करने की दिशा में भी पहल की जाएगी और इसे रिटेल सेंटर के साथ जोड़ा जाएगा, ताकि स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिले और परंपरागत कलाओं का संवर्द्धन हो.
अक्सर कौशल विकास के कार्यक्रमों के बारे में ऐसा कहा जाता है कि गांव में जिस तरह के कौशल की जरूरत है, उस तरह के पाठ्यक्रमों को शामिल नहीं किया जाता है. इसके कारण ग्रामीण इलाकों से प्रशिक्षित मजदूर शहरों में जाकर रोजगार प्राप्त करते हैं और गांवों में बेरोजगारी जैसी की तस बनी रहती है. क्या कहेंगे आप?
देखिए इसमें सच्चाई है. लेकिन हमें यह भी ध्यान रखने की जरूरत है कि युवाओं के कौशल विकास के बाद रोजगार की जरूरत होती है. लेकिन देश में दो किस्म के प्रांत हैं. एक ओर ऐसे राज्य हैं जहां कि रोजगार है, उद्योग है, और दूसरे ऐसे राज्य हैं जहां युवाशक्ति है और वह सस्ता श्रमिक उपलब्ध कराने में सक्षम है. देश में 80 शहर ऐसे हैं जहां 65- 75 फीसदी तक आर्थिक गतिविधियां संचालित की जाती हैं. ये रोजगार प्रदान करने वाले शहर हैं. इसलिए कुशल श्रमिक रोजगार की तलाश में इन शहरों में जाते हैं.
कौशल विकास के कार्यक्रमों में पंचायत का कितना महत्व है? किसी भी कार्यक्रम को शुरू करने से पहले क्या पंचायतों की राय ली जाती है, या उनकी भागीदारी होती है?
निश्चित रूप से पंचायतों की काफी अहम भूमिका है. किसी भी कार्यक्रम में इनकी भागीदारी से कई तरह के लाभ हैं. कुछ जगहों पर हमने इस दिशा में काम करना शुरू किया है. जैसे अभी हाल ही में हरियाणा में चलाये जा रहे कौशल विकास कार्यक्रम के तहत जो बैच निकला है, हमने इसमें पंचायत प्रतिनिधियों, बच्चों के माता-पिता सबसे मिलकर स्किल सेंटर शुरू किया. पंचायतें हमारे लिए स्थानीय जरूरतों के मुताबिक कार्यक्रम चलाने, स्किल डेवलपमेंट सेंटर शुरू करने में काफी मददगार साबित हो सकती हैं. सिटिजन सर्विस सेंटर और स्किल डेवलपमेंट सेंटर शुरू करने से पहले पंचायतों की भागीदारी सुनिश्चित करना काफी अहम है.