एक गांव, जहां बोरिंग करना मना है
पुष्यमित्र सिंचाई हो या पीने के पानी का इंतजाम. हाल के दिनों में हर समस्या का समाधान भूमिगत जल के दोहन के जरिये करने की परंपरा चल पड़ी है. लोग एक झटके में बोरिंग करवा लेते हैं और भूमिगत जल का दोहन करते रहते हैं. इसका नतीजा यह निकला कि हर इलाके में भूमिगत जल […]
पुष्यमित्र
सिंचाई हो या पीने के पानी का इंतजाम. हाल के दिनों में हर समस्या का समाधान भूमिगत जल के दोहन के जरिये करने की परंपरा चल पड़ी है. लोग एक झटके में बोरिंग करवा लेते हैं और भूमिगत जल का दोहन करते रहते हैं. इसका नतीजा यह निकला कि हर इलाके में भूमिगत जल का स्तर तेजी से नीचे चला जा रहा है. कल तक जहां 50 से 60 फीट की गहराई में पानी मिल जाता था वहां आज सौ डेढ़ सौ फीट तक की खुदाई करवा लेना आम बात हो गयी है. हालांकि इसके बावजूद लोग चेतते नहीं हैं. पानी का काम पड़ता है तो बोरिंग को ही प्राथमिकता देते हैं. मगर इस बीच एक ऐसा गांव भी है जिसने इस समस्या को उसके शुरुआत में ही पकड़ लिया है. इस गांव के लोग शहरीकरण के शुरुआती दौर में ही संभल गये हैं. यहां की महिलाओं ने गांव में बोरिंग पर प्रतिबंध लगा दिया है. वे बोरिंग के बदले कुआं खुदवाने के विकल्प को अपनाने की सलाह देती हैं और इसमें लोगों की मदद भी करती हैं. इसी का नतीजा है कि 50 घरों वाले इस छोटे से गांव में इक्का-दुक्का घरों में ही बोरिंग है जो पहले खुदवाये गये हैं. शेष सभी घरों में कुएं हैं.
बाहर के लोग बस रहे हैं गांव में
यह कहानी रांची के नामकुम प्रखंड के आरा पंचायत के बेहरागढ़ा गांव की है. रांची शहर के करीब होने के कारण अब शहर का प्रसार इस गांव तक होने लगा है और रांची में काम करने वाले कई परिवार इस गांव में बसने के लिए पिछले कुछ सालों से जमीन खरीदने लगे हैं. जाहिर है कि ये लोग पानी के लिए अपनी जमीन पर बोरिंग करवाने को ही प्राथमिकता देते हैं. गांव में ऐसे तकरीबन 25-30 परिवार हैं. मगर गांव की महिलाओं ने इस समस्या को शुरुआत में ही पकड़ लिया. वे पिछले दो सालों से सक्रिय हैं और अपने गांव में किसी व्यक्ति को बोरिंग करवाने नहीं दे रही हैं. गांव में रहने वाली वार्ड-8 की वार्ड सदस्य रीता भुटकुमार कहती हैं कि हमने अपने आस–पड़ोस के गांवों में देख लिया है कि एक बार कहीं बोरिंग हुआ तो बगल के कुएं का जलस्तर खुद–बखुद नीचे चला जाता है. इसी वजह से हम लोग किसी को बोरिंग करवाने की इजाजत नहीं दे रहे. हमने सरकारी संस्थानों में भी चापाकल लगने नहीं दिया है. गांव में तो खैर चापाकल नहीं ही है. हमलोग अपना सारा काम कुओं के सहारे ही करते हैं. आप गांव घूमकर देख लीजिये हर घर में कुआं मिलेगा. एक–आध लोग जिन्होंने पहले बोरिंग करवा लिया था केवल उन्हीं के घर में बोरिंग है.
25-30 फीट पर मिलता है पानी
गांव घूमने पर रीता भुटकुमार की बात सौ फीसदी सही साबित होती है. गांव की ही लगन देवी और सोहबत देवी उनकी बातों की तसदीक करती हैं. वे कहती हैं कि इसी वजह से आपको हमारे गांव में 25-30 फीट की गहराई में ही पानी मिल जायेगा. पड़ोस में बड़काटोली के दूसरे मुहल्लों में जाकर देखिये कि पानी का लेवल कितना नीचे चला गया है.
जरूरत पड़ने पर दबाव भी बनाते हैं
गांव में रहने वाली आरा पंचायत की पंचायत समिति सदस्य सोफिया टोप्पो इस काम की अगुआ मानी जाती हैं. काफी पहले से स्वयं सहायता समूह से जुड़ीं सोफिया कहती हैं कि हमारे समूह उज्जवल महिला समिति ने इस काम का बीड़ा उठाया है. पिछले दो सालों से हम लगातार लोगों को कुआं खुदवाने के लिए प्रोत्साहित करते रहे हैं और बोरिंग करवाने के लिए मना करते हैं. जरूरत पड़ने पर हम ऐसे लोगों पर दबाव भी बनाते हैं जो हमारी सलाह के बावजूद बोरिंग करवाने पर अड़ जाते हैं. हमारी सलाह के कारण बाहर से आकर बसने वाले अधिकांश लोगों ने बोरिंग के बदले अपने घर में कुआं खुदवाया है.
समिति बनाकर चला रहे अभियान
हाल ही में हमने इस काम को व्यवस्थित रूप देने के लिए एक समिति का गठन किया है और कार्रवाही पंजी पर गांव के सभी लोगों के हस्ताक्षर करवाये हैं कि वे किसी सूरत में बोरिंग नहीं करवायेंगे. अप्रैल महीने में यह बैठक हुई जिसमें आरा पंचायत की मुखिया दयामनी डोरोथिया एक्का भी शामिल हुई थीं. इसके बाद से हम समिति की बैठक हर महीने करते हैं और अपने काम–काज पर विचार विमर्श करते हैं.
विधवा मंजू का उदाहरण
सोफिया बताती हैं कि हाल के ही दिन में एक व्यक्ति यह कहते हुए बोरिंग करवाने की इजाजत मांगने लगे कि उन्होंने इसके लिए दो साल पहले एडवांस कर दिया है तो उन्होंने उन्हें उनके हस्ताक्षर वाली पंजी दिखायी और उन्हें गांव की एक विधवा महिला का उदाहरण बताया. सोफिया ने कहा कि गांव की एक औरत मंजू जो विधवा है और गरीब भी है का कुआं भर गया था. उसके पास इतने पैसे नहीं थे कि वह दूसरा कुआं खुदवा सके. मगर उसने गांव की रीत का सम्मान करते हुए कहीं से पैसों का इंतजाम कर दूसरा कुआं ही खुदवाया. इस महिला का उदाहरण सुनकर वे व्यक्ति भी कुआं खुदवाने पर सहमत हो गये.
पड़ोसी गांव भी अपना रहे
पड़ोस के गांवों में इस सकारात्मक कदम का असर पड़ने लगा है. सोफिया बताती हैं कि बेहरागढ़ा के अलावा आरा नया टोली में तो पहले से ही इस परंपरा को आगे बढ़ाया जा रहा था. अब बड़ाम पंचायत के एक गांव में भी लोगों ने इस सकारात्मक कदम को अपना लिया है. वहां भी बोरिंग पर रोक लगाया जा रहा है.