गांव के हुनर को ऊंची उड़ान

सिरचन के नखरे भी गांव के लोग खुशी-खुशी उठाते थे. उसकी झोपड़ी के आगे ब.डे-ब.डे लोगों की सवारी बंधी रहती थी. लोग उसकी खुशामद करते थे. उसकी इज्जत करते थे. वह न तो साधु था, न साहूकार. न ऊंचे पद पर था, न ऊंजी जाति का. उसकी जाति तो कारीगर की थी. ऐसा कारीगर, जो […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 22, 2013 8:37 AM

सिरचन के नखरे भी गांव के लोग खुशी-खुशी उठाते थे. उसकी झोपड़ी के आगे ब.डे-ब.डे लोगों की सवारी बंधी रहती थी. लोग उसकी खुशामद करते थे. उसकी इज्जत करते थे. वह न तो साधु था, न साहूकार. न ऊंचे पद पर था, न ऊंजी जाति का. उसकी जाति तो कारीगर की थी. ऐसा कारीगर, जो कुशल था, जिसके हाथ में हुनर था. फणीश्‍वरनाथ रेणु की कहानी ‘ठेस’ का यह सेंट्रल कैरेक्टर आम से खास केवल इसलिए बन गया था कि उसने अपनी कारीगारी को तराशा था. अपने भीतर के शिल्पी को अपने काम में ईमानदारी से उतारा था. अपने कौशल का विकास किया था. यह सब उसने अपनी बदौलत किया था. आज तो सरकार हमारे साथ है. हमारे घर-गांव के शिल्पियों-दस्तकारों के कौशल विकास के लिए वह करोड़ों रुपये खर्च कर रही है. अरबों रुपये खर्च करने को तैयार है. 14-14 मंत्रालय तैनात हैं. बढ.ई-कमार, लोहार, कुम्हार, राजमिस्त्री, बिजली मिस्त्री – ऐसे दर्जनों शिल्पकार समुदाय हैं, जिनके हुनर की कद्र करने समाज तैयार बैठा है.ब.डे-ब.डे ऐसोसिएशन-औद्योगिक घराने उन्हें हाथों-हाथ लेने को आतुर हैं. बाजार में उनकी मांग है, पूछ है. इसके साथ ही उनके लिए रोजगार और अधिक आर्थिक लाभ का अवसर भी है. ऐसा इसलिए है कि हर आदमी बेतर काम चाहता है, बेहतर सामान चाहता है. बेहतरी की बह रही हवा में हमारे गांव-पंचायत के कारीगारों को अपने सपनों को ऊंची उड़ान देने का अवसर मिल रहा है. हम उन्हीं अवसरों, स्थितियों को यहां बता रहे हैं.

बिहार के कारीगारों, दस्तकारों और बेरोजगारों के लिए अच्छी खबर है. सरकार अगले पांच साल में एक करोड़ लोगों का कौशल विकास करने जा रही है. इससे रोगजार पाने की उनमें काबिलीयत बढे.गी. उन्हें स्वरोजगार का भी अवसर मिलेगा. सरकार उन्हें अपना रोजगार शुरू करने और माल का बाजार तैयार करने में भी मदद करेगी. कौशल यानी हुनर बिकास के लिए उन्हें बाहर नहीं जाना होगा. यह व्यवस्था पंचायतों में ही होगी. राज्य की सभी 8463 पंचायतों में कौशल विकास प्रशिक्षण केंद्र खुलेंगे. कौशल विकास को लेकर सरकार ने पांच साल का एक्शन प्लान (कार्य योजना) बनाया है. हर साल का टारगेट तय है. इस पर सरकार पांच वर्ष में 45 हजार करोड़ रुपये खर्च करेगी. इतनी बड़ी राशि की व्यवस्था के लिए राज्य सरकार को यूएनडीपी (यूनाइटेड नेशन्स डेवलपमेंट प्रोग्राम), विश्‍व बैंक और एशियन डेवलपमेंट बैंक कर्ज देंगे.

इस साल का लक्ष्य

चालू वित्त वर्ष यानी अगले साल मार्च के अंत तक राज्य के 16 लाख लोगों को कौशल विकास का प्रशिक्षण दिया जायेगा और उन्हें बेहतर रोजगार का अवसर मिलेगा. इस प्रशिक्षण पर 720 करोड़ रुपये खर्च किये जायेंगे. कौशल विकास के इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए 14 विभागों का नेटवर्क बनाया गया है. हर विभाग को प्रशिक्षण देकर कुशल कारीगर और दस्तकार तैयार करने का सालाना लक्ष्य दिया गया है. श्रम संसाधन, कृषि, ग्रामीण विकास, पशुपालन, शिक्षा, समाज कल्याण और आइटी विभाग को ज्यादा लक्ष्य मिले हैं.

किसे प्रशिक्षण- कैसा प्रशिक्षण

कौशल विकास प्रशिक्षण कार्यक्रम को प्रभावी और उपयोगी बनाने पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है. यह कोशिश की जा रही है कि लोगों को वैसे ट्रेड में ही प्रशिक्षण देकर उनका कौशल विकास किया जाये, जिनमें रोजगार और व्यवसाय के ज्यादा अवसर हैं. इसका पता लगाने के लिए चंद्रगुप्त इंस्टीच्यूट ऑफ मैनेजमेंट सर्वे करेगा. इंस्टीच्यूट यह पता लगायेगा कि किस ट्रेड और निर्माण क्षेत्र में कुशल मजदूरों की मांग ज्यादा है. उसी हिसाब से राज्य के श्रमिकों को प्रशिक्षण देकर तैयार किया जायेगा, ताकि प्रशिक्षण के बाद उन्हें रोजगार पाने में ज्यादा कठिनाई न हो.

कुशल कारीगरों की बढ.ी है मांग

जिस तेजी से ग्रामीण जीवन में आर्थिक सुधार हुआ है और कॉरपोरेट ने गांवों में पांव पसारे हैं, उस हिसाब से गांवों में भी कुशल कारीगारों की मांग बढ.ी है. पहले परंपरागत करीगार और शिल्पकार लोगों की जरूरत के हिसाब से सामान तैयार करते थे. उन्हें मेहनताना भी उसी हिसाब से मिलती था. न तो काम कोई पैमाना था, न दाम का. अब वह स्थिति नहीं है. गांव में भी कुशल बढ.ई, लोहार, राजमिस्त्री, बिजली मिस्त्री, प्लंबर, पेंटर आदि की मांग बढ.ी है. इस मांग को पूरा करने के लिए कुशल कारीगर सरकार और मैनेजमेंट इंस्टीच्यूट तैयार कर रहे हैं. ऐसे में अकुशल कारीगारों को अपनी सोच बदलनी होगी और इस अवसर का उन्हें लाभ लेना होगा. उन्हें अपना कौशल बढ.ाना होगा. नहीं तो वे पिछड़ जायेंगे.

कारीगरों की नयी बिरादरी हो रही तैयार

पहले बढ.ई की बेटा बढ.ी था और राजमिस्त्री का बेटा राजमिस्त्री. कौशल विकास कार्यक्रम ने इस अवधारणा और पुरानी व्यवस्था को खारिज कर दिया है. अब कोई भी व्यक्ति और किसी भी जाति और समुदाय का व्यक्ति किसी भी ट्रेड में प्रशिक्षण प्राप्त कर कुशल कारीगर हो सकता है. दूसरी बात कि जिस ट्रेड में अब तक पुरुष ही काम करते थे, उनमें महिलाओं-युवतियों को भी बराबर का अवसर मिल रहा है. यानी घर बनाने के काम में लड़कियां और औरतें केवल रेजा (महिला मजदूर) बन कर नहीं रहेंगी, वे राजमिस्त्री भी हो सकती हैं. वे ग्रिल बना सकती है. वेल्डिंग कर सकती है. लड़कियां प्लंबर हो सकती है. वे गैरेज मिस्त्री भी बन सकती हैं.

ऊंची सृजन क्षमता का प्रवेश

एक अच्छी बात यह सामने आयी है कि पढे.-लिखे और तकनीकी शिक्षा हासिल युवा इस क्षेत्र में आ रहे हैं. जाहिर है कि उनमें सृजन और चिंतन की क्षमता ज्यादा है. इससे वे ज्यादा बेहतर कर सकते हैं और परंपरगत ट्रेड को नयी दिशा दे सकते हैं.

15 साल से शुरू करें कारीगरी का सफर

अगर आप 15 साल के हैं और परंपरागत पेशे के किसी भी ट्रेड में जाना चाहते हैं, तो आपके लिए अवसर खुला हुआ है. आपको 18 साल की उम्र पूरी करने का इंतजार करने की जरूरत नहीं है. सरकार ने कौशल विकास के लिए न्यूनतम उम्र 15 साल तय की है.

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