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पोप ने भारतीय मूल के मिशनरी को श्रीलंका के पहले संत की उपाधि दी

कोलंबो : पोप फ्रांसिस ने आज एक प्रार्थना सभा में भारतीय मूल के दिवंगत कैथोलिक मिशनरी जोसेफ वाज को श्रीलंका के पहले संत की उपाधि दी. समुद्र किनारे आयोजित प्राथना सभा में हजारों लोग शामिल हुए. पोप ने 17वीं सदी के मिशनरी वाज को श्रीलंका के गृहयुद्ध के बाद राष्ट्रीय सुलह का एक आदर्श बताया. […]

कोलंबो : पोप फ्रांसिस ने आज एक प्रार्थना सभा में भारतीय मूल के दिवंगत कैथोलिक मिशनरी जोसेफ वाज को श्रीलंका के पहले संत की उपाधि दी. समुद्र किनारे आयोजित प्राथना सभा में हजारों लोग शामिल हुए. पोप ने 17वीं सदी के मिशनरी वाज को श्रीलंका के गृहयुद्ध के बाद राष्ट्रीय सुलह का एक आदर्श बताया.
आज सुबह गाले फेस विहार स्थल में आयोजित विशेष प्रार्थना में जुटे हजारों लोगों के बीच पोप ने 1651 में तत्कालीन पुर्तगाली उपनिवेश गोवा में जन्मे जोसेफ वाज को संत की उपाधि दी.
जब पुर्तगालियों के हाथों से गोवा के तटीय इलाके जब्त करने के बाद नीदरलैंड ने कैथोलिकों को सताना शुरु किया तब 1687 में वाज कैथोलिक धर्म के अनुयायियों की सेवा के लिए श्रीलंका चले गए.
वाज तमिल और बहुसंख्यक सिंहली जातीय समूहों के कैथोलिकों की सेवा के लिए एक गांव से दूसरे गांव में भ्रमण करते रहे. वाज का 1711 में निधन हो गया था. उससे पहले उन्होंने श्रीलंका में एक कैथोलिक चर्च का पुनर्निर्माण किया था और उन्हें श्रीलंका के मसीहा की उपाधि दी गयी.
संत की उपाधि देने के बाद 78 वर्षीय पोप फ्रांसिस ने जनसमूह से कहा, संत जोसेफ ने शांति की सेवा में धार्मिक विभाजनों से पार जाने के महत्व के बारे में हमें बताया. उन्होंने कहा कि ईसाइयों को शांति, न्याय एवं सुलह के लिए वाज का अनुसरण करना चाहिए.

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