क्या है रीमेक के मेक का पूरा खेल

।। मुंबईसेअनुप्रियाअनंत ।। * निर्माता की चलती है मनमानी निर्देशक के हाथों में कुछ भी नहीं – रीमेक फिल्मों का दौर लगातार जारी है. विषयों की कमी नहीं. लेकिन फिर क्या वजह है कि पुरानी फिल्मों के रीमेक बनते हैं और ऐसी क्या मजबूरी होती है कि पुराने निर्माता आसानी से राइट्स बेच देते हैं. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 27, 2013 4:20 AM

।। मुंबईसेअनुप्रियाअनंत ।।

* निर्माता की चलती है मनमानी निर्देशक के हाथों में कुछ भी नहीं

– रीमेक फिल्मों का दौर लगातार जारी है. विषयों की कमी नहीं. लेकिन फिर क्या वजह है कि पुरानी फिल्मों के रीमेक बनते हैं और ऐसी क्या मजबूरी होती है कि पुराने निर्माता आसानी से राइट्स बेच देते हैं. अचानक रिलायंस और यूटीवी मोशन जैसी तमाम कॉरपोरेट कंपनियां क्यों दिलचस्पी ले रही हैं रीमेक फिल्मों में. आखिर क्या है इस रीमेक का खेल. पेश है रिपोर्ट. –

बॉलीवुड में पुरानी फिल्मों के नये हिंदी रीमेक लगातार बनाये जा रहे हैं. पहले रिलीज हो चुकी हिट फिल्मों के नाम से सीक्वल बन रहे हैं. लेकिन यक्ष प्रश्न है कि न तो रीमेक की कहानी एक होती है और न ही कलाकार. फिर धड़ल्ले से रीमेक फिल्मों का निर्माण क्यों हो रहा है? क्यों सिनेमा में निवेश करनेवाली बड़ी-बड़ी कॉरपोरेट कंपनियां इनके राइट्स खरीदना चाहती हैं. वजह साफ है.

रीमेक फिल्में कमर्शियल रूप से कॉरपोरेट कंपनियों को ज्यादा मुनाफा दिला रही हैं. हाल की रीमेक फिल्मों की सूची देखें तो केवल ‘हिम्मतवाला’ का रीमेक ही सफल नहीं रहा. वरना चश्मेबद्दूर, डॉन, गोलमाल जैसी तमाम फिल्मों के रीमेक हिट रहे. यूटीवी मोशन पिर्स जो कि लगातार रीमेक फिल्में बनाने में निवेश कर रहा है. उनके एक रिसर्चर ने जानकारी दी है कि आज भी पुराने दौर की ऐसी कई फिल्में हैं जो लोगों के जेहन में जिंदा हैं. और वे उन फिल्मों की चर्चा अपने नयी पीढ़ी के साथ भी करते हैं. सो, नयी पीढ़ी में भी उन फिल्मों को लेकर उत्सुकता होती है.

रिसर्च के मुताबिक जिन पुरानी फिल्मों को सबसे अधिक ऑन लाइन वोट मिलते हैं. लाइक्स मिलते हैं. कॉरपोरेट कंपनियां उसमें निवेश करती हैं. ऐसे कई निर्माताओं से जब इस संबंध में पूछा गया, तो कहा-हमारी मरजी, हम फिल्मों के साथ कुछ भी करें. अपने जमाने के जाने-माने निर्माता ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर कई बातें शेयर कीं. उन्होंने बताया कि उनका प्रोडक्शन हाउस कई सालों से बंद पड़ा था.

उन्होंने जितनी भी फिल्में बनायीं. उनमें से उन्हें दो बड़ी फिल्मों में भारी नुकसान उठाना पड़ा. उन पर काफी लोन भी था. सो, उनके पास जब एक कॉरपोरेट हाउस की तरफ से यह ऑफर आया, तो उन्होंने अपनी चर्चित फिल्म के राइट्स बेच दिये और अपना ऋण चुकाया. स्पष्ट है कि कई निर्माता मजबूरन अपने राइट्स बेच देते हैं. फिल्म ‘मासूम’ की निर्माता चंदा दत्त -देवी दत्त ने हाल ही में अपनी फिल्म के राइट्स हिमेश को बेचे हैं.

* निर्देशक की नहीं चलती

इस रीमेक के फेर में सबसे ज्यादा अन्याय होता है निर्देशक के साथ. चूंकि राइट्स बेचते समय निर्देशक की राय नहीं ली जाती. हाल ही में फिल्म चश्मे बद्दूर की निर्देशिका साय पापनैजी ने आक्रोश जताया था. बासु चटर्जी फिल्म शौकीन के रीमेक से नाराज हैं. मासूम के रीमेक से शेखर कपूर को भी तकलीफ है. साय पापनैजी इस बारे में कहती हैं कि ये नये निर्माताओं और कंपनियों का ढोंग है. वे केवल मुनाफे की सोचते हैं,

कमर्शियली. क्रियेटिव एंगल से बनती नहीं रीमेक फिल्में. वे पुरानी क्लासिक फिल्मों को अपनी मन मरजी से पेश कर देते हैं और जिन फिल्मों को हमने ब्रांड बनाने की कोशिश की और हमने ब्रांड बनाया वह उसे अपने मनमाने ढंग से इस्तेमाल करते हैं. बासु चटर्जी भी इस पर तीखी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कहते हैं कि हॉलीवुड की नकल से रीमेक और सीक्वल आया है भारत में. सब अपनी जेब भर रहे हैं. लेकिन मारे जा रहे हैं हम निर्देशक. हमारे विजन पर कोई और पैसे कमा रहा है. हम कुछ कर भी नहीं पाते. पुराने निर्माताओं को ही इस पर गंभीरता से सोचना चाहिए.

बासु चटर्जी अमिताभ बच्चन का जिक्र करते हुए कहते हैं कि मुझे खुशी है कि अमिताभ ने एक फिल्म आग के बुरे हश्र के बाद ही रीमेक फिल्मों से तौबा किया. बाकी बड़े स्टार भी करेंगे तो यह सिलसिला रुकेगा. श्याम बेनगल का कहना है कि नयी कहानी सोचो. नये तरीके से काम करो. ऐसे भी पुरानी फिल्म का आप सिर्फ नाम इस्तेमाल करते हो रीमेक में.

* परिवारवाद में रीमेक : रीमेक फिल्में बनाने की एक बड़ी वजह परिवारवाद भी है. कई निर्माता-निर्देशक की नयी पीढ़ी फिल्मों में आना चाहती है, लेकिन उनको बड़ा मौका नहीं मिल पा रहा. तो वे अपनी ही फिल्म के रीमेक के साथ आगे बढ़ते हैं. प्रकाश मेहरा की ‘जंजीर’ उनमें से एक है. मेहरा चूंकि फिल्म के निर्माता-निर्देशक थे. इसलिए उनके बेटे नयी ‘जंजीर’ का रीमेक बनाने के राइट्स रखते थे. और इसका रीमेक बन रहा है.

* सलीम-जावेद जंजीर विवाद : सलीम-जावेद ने ‘जंजीर’ के वक्त ही फिल्म के हिंदी रीमेक के अलावा किसी भी भाषा में बनाने के राइट्स अपने पास सुरक्षित रखे थे. हाल ही में ‘जंजीर’ को लेकर सलीम-जावेद ने फिल्म को कोर्ट में घसीटा.

स्पष्ट कहा कि कानूनन ‘जंजीर’ के निर्माताओं को फिल्म बनाने से पहले उन्हें तीन करोड़ देने चाहिए, चूंकि फिल्म का तेलुगू संस्करण भी बन रहा है. लेकिन मेकर्स ने यह नहीं माना तो , उन्होंने कानून का सहारा लिया. पूरे सबूत भी दिये. इस मामले में सलीम जावेद ने कहा है कि इससे पहले उन्होंने ‘डॉन’ और ‘यादों की बारात’ के साउथ इंडियन रीमेक बनने के राइट्स बेचे हैं. अब भी इस विवाद का हल नहीं निकला है.

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