यहां सरकार नहीं समाज चलाता है स्कूलों को

अलगाववाद के कारण तबाह-परेशान देश के उत्तरपूर्वी राज्य नगालैंड ने स्कूली शिक्षा के मामले में देश को नयी राह दिखायी है. यहां सरकार ने राज्य के 15 सौ के करीब स्कूलों को समाज को सौंप दिया. इन स्कूलों का संचालन समाज ही करता है. वही शिक्षकों के कामकाज और मिड-डे मील की गुणवत्ता का निर्धारण […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 27, 2013 11:37 AM

अलगाववाद के कारण तबाह-परेशान देश के उत्तरपूर्वी राज्य नगालैंड ने स्कूली शिक्षा के मामले में देश को नयी राह दिखायी है. यहां सरकार ने राज्य के 15 सौ के करीब स्कूलों को समाज को सौंप दिया. इन स्कूलों का संचालन समाज ही करता है. वही शिक्षकों के कामकाज और मिड-डे मील की गुणवत्ता का निर्धारण करता है और स्कूल के बजट को अपने हाथों से खर्च करता है. इस प्रयोग के नतीजे काफी सकारात्मक आये हैं. आज नौ सौ के करीब स्कूलों से एक भी बच्च बाहर नहीं है. वहां हर 21 बच्चों के लिए अलग शिक्षक है और पढ़ाई की गुणवत्ता भी बेहतर हुई है.

सचिन कुमार जैन
नगालैण्ड के अंगामी आदिवासी खोनोमा गांव में 6 स्कूल होने के बावजूद वर्ष 2002 के पहले 32 फीसदी बच्चे स्कूल के बाहर थे, शिक्षकों की मौजूदगी भी बेहद भरोसेमंद नहीं थी. सरकारी प्राथमिक स्कूल की इमारत और सूअरों को बांधने के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले बाड़े में बहुत ज्यादा अंतर नहीं था. अब खोनोमा का वर्तमान इतिहास से बिल्कुल जुदा नजर आता है. इस गांव के हर बच्चे का नाम केवल स्कूल के रजिस्टर में दर्ज है, बल्कि उसकी उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए अब पूरी व्यवस्था बन चुकी है. केवल नगालैण्ड में वर्ष 2002 से चल रही सामुदायिकीकरण की अवधारणा को संयुक्त राष्ट्र संघ ने जुलाई 2008 में एक आदर्श शासन व्यवस्था के रूप में स्वीकार करते हुए देशदुनिया में अन्य इलाकों में लागू करने की वकालत की है.

उल्लेखनीय है कि वर्ष 2002 के शैक्षणिक सत्र में प्रयोग के तौर पर 90 गांवों के 205 प्राथमिक स्कूल आदिवासी समाज को सौंपे गये थे, और अब सभी 1286 गांवों के 1459 प्राथमिक स्कूलों का समाजीकरण हो चुका है. इसमें से 890 गांवों में कोई भी बच्चा स्कूल से बाहर नहीं है. नगालैण्ड में 21 बच्चों पर एक शिक्षक नियुक्त है जबकि भारत का राष्ट्रीय औसत 42 बच्चों पर एक शिक्षक का है.

भारत के संविधान का अनुच्छेद 371(ए) भी नगालैण्ड के आदिवासी समाज को अपनी पारंपरिक व्यवस्था में जीवन जीने की स्वतंत्रता देता है. इस पूरी आदिवासी सामाजिक व्यवस्था की गहरायी को महसूस करते हुए नगालैण्ड सरकार ने लोक सेवाओं के सामुदायिकीकरण की प्रक्रि या शुरू की और नगालैण्ड लोक संस्थाओं और सेवाओं का सामुदायिकीकरण कानून-2002 के जरिये स्वास्थ्य, शिक्षा, ऊर्जा सहित अन्य सेवाओं-संस्थाओं के नियंत्रण-प्रबंधन के अधिकार समुदाय के सुपुर्द कर दिये. इसी कानून के तहत खोनोमा गांव के चार सरकार स्कूलों का सामुदायिकीकरण करते हुए उन्हें ग्राम शिक्षा समिति को सौंप दिया गया. छह वर्ष गुजर जाने के बाद यह तो साफ नजर आता ही है कि कुछ अन्य भारतीय राज्यों की तरह नगालैण्ड में विकेंद्रीकरण के नाम पर खेल नहीं खेला गया है.

खोनोमा गांव के कोसे सेचे कहते हैं कि इस नयी व्यवस्था ने शिक्षा के साथ आदिवासी समुदाय को जोड़ा है. पहले जब स्कूल में शिक्षक नहीं आया करते थे तो कभी मां-बाप जाकर सवाल नहीं पूंछते थे कि स्कूल में क्या चल रहा है न ही स्कूल को सुंदर और आकर्षक बनाने के बारे में कोई सोचता था, पर जब हमें जिम्मेदारी मिली तो एक साल बाद ही गांव के सारे बच्चे के नाम स्कूल में दर्ज हो गये. कोसे बताते हैं कि पहले साल तो केवल व्यवस्था को देखने और समझने का ही काम हुआ. पता चला कि शासकीय प्राथमिक स्कूल में दो शिक्षक तो आते ही नहीं थे. शुरुआत में उनसे कोई बात नहीं हुई और ग्राम शिक्षा समिति ने एक निगरानी समूह ने उपस्थिति रजिस्टर बनाकर हर रोज चारों सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की उपस्थिति दर्ज करना शुरू कर दिया. गांव के सभी स्कूलों पर एक ग्राम शिक्षा समिति का नियंत्रण है और इस समिति में शिक्षकों का भी प्रतिनिधित्व है और समुदाय का भी. इसमें एक चौथाई स्थान महिलाओं का है.

कानून में दो महत्वपूर्ण बातें हैंअब हर शिक्षक की तनख्वाह शिक्षा समिति के खाते मे जमा होगी और शिक्षा समिति यदि काम नहीं तो वेतन नहीं के सिद्धांत को आधार बना कर हर माह की पहली तारीख को वेतन का भुगतान करेगी. दूसरी बात यह है कि इस समिति को गांव की शिक्षा संबंधी जरूरतें तय करने और उसके हिसाब से काम करने का अधिकार है. विकेंद्रीकरण का मतलब यह नहीं है कि अब खोनोमा के चारों स्कूलों के प्रति सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं है, बल्किअब व्यवस्था यह है कि सरकार आर्थिक संसाधन शिक्षा समिति के खाते में जमा कर देती है और अब समुदाय को संसाधन खर्च करने की स्वतंत्रता भी मिली है. शासकीय प्राथमिक स्कूल के प्रभारी शिक्षक सेल्हू तेरहूजा कहते हैंहम यह नहीं कह सकते हैं कि समुदाय के हाथ जाने से सब कुछ बदल गया है पर अब स्कूलों की दीवारों पर गांव का हक है. वर्ष 2005-06 और 2006-07 में हमारे स्कूल की पुरानी इमारत में तीन कमरों के निर्माण के लिए सरकार ने 5.40 लाख रुपये स्वीकृत किये पर स्कूल की हालत बहुत जर्जर थी तो शिक्षा समिति ने गांव में विचार प्रक्रि या चलायी और तय हुआ कि सरकार द्वारा दी गयी राशि से हम आठ कमरे बनायेंगे और आज तीन कमरों की राशि से स्कूल की एक पूरी नयी इमारत खड़ी है. शिक्षा के सामुदायिकीकरण के तहत सेल्हू तेरहूजा को स्कूल प्रभारी होने के नाते हर माह अपने संस्थान का प्रगति प्रतिवेदन ग्राम शिक्षा समिति को भेजना होता है; जिसमें बच्चों की उपस्थिति, शिक्षकों की उपस्थिति और पाठ्यक्र की प्रगति का उल्लेख होता है.

इसी रिपोर्ट के आधार पर शिक्षकों की तनख्वाह का भुगतान होता है. महत्वपूर्ण है कि सरकार शिक्षकों के तीन माह का वेतन अग्रिम शिक्षा समिति के खातों में जमा कर देती है, ताकि भुगतान में देरी हो. सरकारी व्यवस्था में बच्चों के शैक्षणिक भ्रमण का प्रावधान नहीं है, पर कोहोमा के बच्चे नगालैण्ड के दूसरे हिस्सों के साथसाथ असम भी घूम चुके हैं.

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