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आम स्पाइ फिल्मों से अलग है मद्रास कैफे

गैर-परंपरागत विषय पर बनी फिल्म ‘विक्की डोनर’ से जबरदस्त सराहना और राष्ट्रीय पुरस्कार पा चुके फिल्मकार शूजीत सरकार जल्द ही एक पॉलिटिकल थ्रिलर कहानी ‘मद्रासकैफे’ के साथ परदे पर दस्तक देनेवाले हैं. शूजीत का कहना है कि कंटेंट ही सिनेमा की जान है और वह इसी सोच के साथ बेबाक तरीके से अपनी फिल्में लेकर […]

गैर-परंपरागत विषय पर बनी फिल्म ‘विक्की डोनर’ से जबरदस्त सराहना और राष्ट्रीय पुरस्कार पा चुके फिल्मकार शूजीत सरकार जल्द ही एक पॉलिटिकल थ्रिलर कहानी ‘मद्रासकैफे’ के साथ परदे पर दस्तक देनेवाले हैं. शूजीत का कहना है कि कंटेंट ही सिनेमा की जान है और वह इसी सोच के साथ बेबाक तरीके से अपनी फिल्में लेकर आते रहेंगे. ‘मद्रास कैफे’ की कहानी आम विषयों से अलग है और फिल्म में मनोरंजन के साथ एक संदेश भी है. फिल्म से जुड़े पहलुओं पर शूजीत सरकार से विशेष बातचीत की उर्मिला कोरी ने.

रू-ब-रू:शूजीत सरकार


कॉमेडी फिल्म ‘विक्की डोनर’ के बाद आतंकवाद, युद्ध जैसे विषय पर ‘मद्रास कैफे’ बनाने का ख्याल कैसे आया ?
सच कहूं तो मेरी टीम ने मुझसे बहुत बहस की, कि ‘विक्की डोनर’ के बाद ऐसी सीरियस फिल्म क्यों! लेकिन मैंने उन्हें मना लिया. मुझे लगता है कि एक जिम्मेवार निर्देशक के तौर पर मेरा फर्ज है कि मैं मनोरंजन के साथ-साथ दर्शकों को फिल्म के जरिये एक संदेश भी दूं. वैसे इस फिल्म पर मैं ‘विक्की डोनर’ के पहले से काम कर रहा हूं. जॉन को इसकी कहानी भी सुना दी थी. उन्हें पसंद भी आयी थी. लेकिन बहुत रिसर्च करना पड़ा. इसलिए इस फिल्म में देर हो गयी और पहले ‘विक्की डोनर’ बन गयी.

इस फिल्म का नाम ‘जाफना’ से बदल कर ‘मद्रास कैफे’ करने की वजह ?

हां, पहले इस फिल्म का नाम ‘जाफना’ रखा गया था, क्योंकि इसकी कहानी का श्रीलंका से गहरा नाता है और श्रीलंका का पुराना नाम जाफना है. लेकिन जब फिल्म की स्क्रिप्ट पूरी हुई तो लगा कि ‘मद्रास कैफे ’ नाम इस कहानी के साथ ज्यादा न्याय करता है.


फिल्म के लिए रिसर्च किस तरह की ?
यह एक स्पाइ थ्रिलर है. अब तक बॉलीवुड में जितनी भी स्पाइ फिल्में बनी हैं, उनका हकीकत से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं. यह फिल्म इस मुद्दे पर बहुत ही रियलिस्टिक अप्रोच रखती है. इंटेलिजेंस ऑफिसर्स के काम करने के रियल तरीकों को दिखाने के साथ उनके ऑपरेशन और निजी जिंदगी में भी झांकती हैं. जब से इसका ट्रेलर लांच हुआ है, मैं तब से मीडिया से कह रहा हूं, यह स्पाइ रैंबो फिल्म नहीं है. अगर आप देखने के लिए आ रहे हैंकि जॉन इस फिल्म में पांच लोगों को एक पंच में उड़ा देगा, तो मत आइए. यह उस तरह की फिल्म नहीं है.

यह फिल्म 1995 के पीरियड पर है. क्या आज के दर्शक खुद को इससे कनेक्ट कर पायेंगे?
इस फिल्म को जो भी दर्शक देखने आ रहे हैं उनसे गुजारिश करना चाहूंगा कि गूगल पर तमिल समस्या और श्रीलंका के बारे में थोड़ा पढ़ कर आइयेगा. हमारे देश के कई बच्चे हैं जिन्हें इस समस्या के बारे में पता ही नहीं है. उन्हें पता होना चाहिए, क्योंकि इससे हमारे देश की सुरक्षा पर भी खतरा मंडराता रहा है. वैसे पढ़ कर आयेंगे तो फिल्म देखने के बहुत मजा आयेगा, नहीं भी पढ़ कर आयेंगे तो परेशानी नहीं होगी. बस वे अपना दिमाग अपने साथ लेकर आयें. यह उस तरह की हिंदी फिल्म नहीं है, जिसके लिए आप अपना दिमाग घर पर छोड़ कर आते हैं.

आपने बताया कि यह फिल्म श्रीलंका में रह रहे तमिल लोगों के मुद्दों पर आधारित है. क्या इसमें प्रभाकरण के इश्यू को भी उठाया गया है ?
भले ही फिल्मों में काल्पनिकता का पुट हो फिर भी जब हम सिविल वॉर में होते हैं, तो ऐसे इश्यू को छूना हमारे लिए जरूरी हो जाता है. इस फिल्म में भी उन विद्रोही दलों के साथ आर्मी और शांति वार्ता में शरीक हुए लोगों का जिक्र है.

आप इस फिल्म को रियलिस्टिक करार दे रहे हैं. ऐसे में नये चेहरे के बजाय हीरो मैटेरियल जॉन को लेने की वजह ?
(हंसते हुए) मेरा मन तो ब्रैड पिट को लेने का था. दरअसल, जॉन ने जब इस फिल्म की स्क्रिप्ट बतौर निर्माता सुनी तो इस फिल्म से जुड़ने की इच्छा जाहिर की और कहा कि मेरे निर्देशन में ही वह फिल्म करेगा. इस फिल्म में जॉन को लेने से पहले मैंने यही कहा था कि वह अपने सिक्स पैक एब बॉडी से गायब कर दे. अपने वजन को कम कर ले ताकि भीड़ के बीच वह आम आदमी की तरह लगे. जॉन इस फिल्म में हीरो नहीं, बल्कि किरदार है. यह बात इसी से साफ हो जाती है कि इस फिल्म के एक्शन की जिम्मेदारी भी मैंने ही संभाली है. गन एक्शन हो या मूविंग एक्शन सब मैंने ही बताया है कि कैसा होगा. मुझे इस फिल्म में नॉर्मल एक्शन चाहिये था और जॉन ने वही किया है. इस फिल्म में आपको नया जॉन मिलेगा. जो कहते हैं कि जॉन को एक्टिंग नहीं आती है, यह फिल्म उन सबके लिये जवाब होगी. वैसे निजी तौर पर मुझे फिल्म ‘न्यूयॉर्क’ में जॉन की एक्टिंग बहुत अच्छी लगी थी.

इस फिल्म में जॉन के अलावा नर्गिस फाखरी भी हैं, जो अभिनय से ज्यादा अपने ग्लैमर के लिए जानी जाती हैं. उन्हें क्यों इस फिल्म के लिए चुना ?
मैं यहां बताना चाहूंगा कि ‘विक्की डोनर’ की स्क्रिप्ट मैंने कई स्टार्स को ऑफर की थी. उनके नाम नहीं लूंगा, लेकिन स्क्रिप्ट उन्हें अच्छी भी लगी थी फिर भी सबने मना कर दिया यह कहते हुए कि स्पर्म पर नहीं यार. उस विषय को हां कहने के लिए किसी के पास हिम्मत नहीं थी. वह हिम्मत आयुष्मान ने दिखायी. मैंने उसे बोला भी था कि फिल्म को बीच में मत छोड़ कर भाग जाना, लेकिन उसे मुझे पर भरोसा था. खैर जहां तक नर्गिस की बात है, मुझे फिल्म के लिये विदेशी पत्रकार की तरह दिखनेवाली लड़की चाहिए थी. नर्गिस लुक के लिहाज से बिल्कुल फिट बैठती हैं. वैसे मैं नर्गिस को ‘रॉकस्टार’ के पहले से जानता हूं. मैंने उनके साथ एक एड फिल्म की थी, जिसे देखने के बाद ही इम्तियाज ने उन्हें ‘रॉकस्टार’ में साइन किया. मैं अपने एक्टर्स को लेकर बहुत पर्टिकुलर हूं. मैं एक्टिंग के मामले में छोड़ता नहीं हूं. खून पी लेता हूं. मेरी अब तक की सभी फिल्मों के एक्टर्स एनके शर्मा के एक्टवन थियेटर ग्रुप की वर्कशॉप से होकर गुजरते हैं. इस फिल्म में नर्गिस का अभिनय आपको सरप्राइज कर देगा

अमिताभ बच्चन आपके बहुत करीबी माने जाते हैं. सुनने मे आ रहा है आप उन पर एक ड्रॉक्यूमेंट्री भी बना रहे हैं. उसकी क्या स्थिति है ?
अमित सर के साथ मैं अब तक 60 से भी ज्यादा विज्ञापन फिल्में बना चुका हूं. यह रिश्ता कुछ ऐसा बन चुका है कि वो मुझे फोन करते हैं और कहते हैं कि कल एक शूट है जाना. और मैं निर्देशन के लिए पहुंच जाता हूं. वह लीजेंड हैं. मुझे याद है जब मैं अपनी फिल्म शूबाइटको लेकर उनसे मिलने गया था, उन्होंने मुझसे पूछा कि इससे पहले कोई फिल्म बनायी है.

मैंने ‘यहां’ का नाम लिया और कहा कि फिल्म को क्रिटिकली सभी ने सराहा था. उन्होंने फिल्म नहीं देखी थी. तुरंत जया जी को फोन लगाया और फिल्म के बारे में पूछा. जया जी ने कहा,‘आमी देखेची, भालो बई छिलो.’ उन्होंने कहा कि जया ने भालो कहा दिया, मतलब भालो. उसके बाद बच्चन सर और मेरा बांग्ला कनेक्शन शुरू हो गया. अब हम बांग्ला में ही बात करते हैं. जहां तक बात ड्रॉक्यूमेंट्री की है, तो मैं उसे ड्रॉक्यूमेंट्री का नाम नहीं दूंगा. बच्चन सर के साथ मैंने अब तक जो भी पल गुजारे हैं, वो उसमें नजर आयेंगे. निजी तौर पर मैं चाहता हूं कि मेरी और बच्चन सर वाली सालों से अटकी फिल्म ‘शूबाइट’ रिलीज हो. वह बच्चन सर की अब तक की माइलस्टोन परफॉर्मेस वाली फिल्म होगी. उस फिल्म में वह सर्वश्रेष्ठ हैं.

सारिका जी भी बेहतरीन हैं. दो प्रोडक्शन हाउस के झगड़ों के बीच वह फिल्म फंसी है. कॉरपोरेट हाउस के साथ फिल्म बनाने की समस्या ही यही है. वह फिल्म को बिजनेस की तरह या किसी प्रोजेक्ट की तरह लेते हैं. हुआ तो हुआ, नहीं हुआ तो कोई बात नहीं है, लेकिन हम फिल्मकारों के लिये हमारी फिल्म हमारे बच्चे की तरह होती है. गर्भ में ही बच्चे की मौत हो जाये, तो उससे बुरा क्या होगा. मेरी फिल्म ‘शूबाइट’ के साथ भी यही हुआ है.

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