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झारखंड : 62% प्रसव अकुशल दाई कराती है

या फिर घरों में होते हैं सिर्फ 37.6 डिलिवरी ही अस्पताल, नर्सिग होम या स्वास्थ्य केंद्रों में रांची : झारखंड में मातृ–शिशु की सुरक्षा का हाल बेहाल है. यहां 62 फीसदी गर्भवती महिलाओं का प्रसव या तो घरों में होते हैं या फिर अकुशल दाई कराती है. यह स्वास्थ्य व स्वच्छता की दृष्टि से ठीक […]

या फिर घरों में होते हैं

सिर्फ 37.6 डिलिवरी ही अस्पताल, नर्सिग होम या स्वास्थ्य केंद्रों में

रांची : झारखंड में मातृशिशु की सुरक्षा का हाल बेहाल है. यहां 62 फीसदी गर्भवती महिलाओं का प्रसव या तो घरों में होते हैं या फिर अकुशल दाई कराती है. यह स्वास्थ्य स्वच्छता की दृष्टि से ठीक नहीं है. संस्थागत प्रसव (इंस्टीटय़ूशनल डिलिवरी) मात्र 37.6 फीसदी ही होता है.

यानी अस्पताल, नर्सिग होम या अन्य स्वास्थ्य केंद्रों में डिलिवरी होती है. इससे जच्चबच्च की सुरक्षा सुनिश्चित होती है. कुशल प्रशिक्षित हाथों से प्रसव होना मातृ शिशु मृत्यु रोकने के लिए जरूरी है.

जानलेवा इंफेक्शन का खतरा : आम तौर पर घर में होनेवाले प्रसव, जिसमें अकुशल दाई का सहारा लिया जाता है, कई परेशानी होती है. सिजेरियन में गंदा चाकू या ब्लेड लगा देना घातक होता है. ग्रामीण इलाके में कई बार कटेफटे पर गोबर लगा देने की बात भी सुनी जाती है. इन सबसे जानलेवा इंफेक्शन का खतरा रहता है.

पाकुड़ में एक भी सिजेरियन नहीं : हाल यह है कि पाकुड़ जिले में सजर्न की सुविधा नहीं है. इस जिले में वित्तीय वर्ष 2012-13 के दौरान एक भी सिजेरियन नहीं हुआ.

वहीं पूर्वी सिंहभूम के एफआरयू में सिर्फ एक सिजेरियन हुआ. सबसे अधिक 401 सिजेरियन हजारीबाग में हुआ है. इसके बाद रांची (256), पलामू (186), साहेबगंज (157), गोड्डा (138), गिरिडीह )135) दुमका (109) जिले का स्थान है.

जिलों में संस्थागत प्रसव की स्थिति (फीसदी में)

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झारखंड : 62% प्रसव अकुशल दाई कराती है 2

स्नेत : एनुअल हेल्थ सर्वे 2011

क्यों जरूरी है संस्थागत प्रसव

होती है मातृशिशु सुरक्षा

निदेशक स्वास्थ्य डॉ सुमंत मिश्र के मुताबिक, अस्पताल, नर्सिग होम या स्वास्थ्य केंद्रों में होनेवाले संस्थागत प्रसव में मांबच्चे पर आनेवाला खतरा टल जाता है. प्रसव यदि सामान्य हो, तब भी साफसफाई स्वच्छता सहित मांबच्चे की प्रारंभिक देखभाल से जच्चबच्च का जीवन सुरक्षित रहता है.

मां एनिमिक हो या उसे अत्यधिक रक्तस्राव हो जाये या रक्त का दबाव (बीपी) बढ़ जाये, ऐसी स्थिति में संस्थागत प्रसव सुरक्षित होता है. जन्म के वक्त बच्च रो रहा हो, तो उसका मुंह साफ करना पड़ता है. कमजोर समय से पहले पैदा होनेवाले बच्चों को विटामिन कंगारू केयर की भी जरूरत होती है. प्रसव यदि सामान्य होने की गुंजाइश कम हो, तो तत्काल सजर्री (सिजेरियन) की जाती है.

फस्र्ट रेफरल यूनिट में बढ़े सिजेरियन

संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने सजर्री की जरूरतवाली गर्भवती माताओं की सुरक्षित डिलिवरी सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने फस्र्ट रेफरल यूनिट (एफआरयू) की सुविधा शुरू की है. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) को एफआरयू की तरह विकसित किया गया है, जहां सजर्री की सुविधा होती है. राज्य के कुल 188 पीएचसी में से 17 को एफआरयू बनाया गया था.

वर्ष 2012-13 में इसे बढ़ा कर 46 किया गया है. सजर्न वहां तैनात किये गये हैं. इसके बाद सिजेरियन (सीसेक्शन) की संख्या बढ़ी है. वर्ष 2011-12 में एफआरयू में 889 सिजेरियन हुए, जो गत वर्ष बढ़ कर 1926 हो गये हैं.

चालू वित्तीय वर्ष 2013-14 के दौरान राज्य भर के एफआरयू में कुल पांच हजार सिजेरियन का लक्ष्य रखा गया है. इस उपलब्धि को हासिल करने में स्वास्थ्य सचिव के विद्यासागर की विशेष भूमिका रही है.

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