महिलाओं को उत्पाद बना दिया गया है

!!गिलबर्ट सेबेस्टियन,सेंटर फॉर डेवलपमेंट स्टडीज में पोस्ट डॉक्टरल रिसर्चर!!क्या महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा का कारण उपनिवेशवादी पितृसत्ता और पहले से मौजूद सामंती जातिवादी पितृसत्ता का मेल होना है? बाजार के इस दौर में आर्थिक और सामाजिक संदर्भ में साम्राज्यवाद का मतलब है पूंजीवाद. पूंजीवादी व्यवस्था में महिला के शरीर और उसकी सुंदरता को बाजार […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 4, 2013 11:17 AM

!!गिलबर्ट सेबेस्टियन,सेंटर फॉर डेवलपमेंट स्टडीज में पोस्ट डॉक्टरल रिसर्चर!!


क्या महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा का कारण उपनिवेशवादी पितृसत्ता और पहले से मौजूद सामंती जातिवादी पितृसत्ता का मेल होना है? बाजार के इस दौर में आर्थिक और सामाजिक संदर्भ में साम्राज्यवाद का मतलब है पूंजीवाद. पूंजीवादी व्यवस्था में महिला के शरीर और उसकी सुंदरता को बाजार में बेचने वाले उत्पाद के तौर पर पेश किया जाता है. यह बाजार महिला को सेक्स उत्पाद के तौर पर और मनोरंजन की वस्तु के तौर पर पेश करता है. पूंजीवादी पितृसत्तात्मक सोच को समझने के लिए हमें अमेरिका में हुए बलात्कार के आंकड़ों पर गौर करना होगा. कोलाराडो कोयलिशन अगेंस्ट सेक्सुअल एसॉल्ट के मुताबिक अमेरिका में 6 में से एक महिला को बलात्कार का सामना करना पड़ा है. आधिकारिक तौर पर यह स्वीकारोक्ति के बाद कि अमेरिका में कई मामले सामने नहीं आ पाये, संयुक्त राष्ट्र संघ के आंकड़ों बताते हैं कि अमेरिका में 2010 में एक लाख आबादी पर 27.3 बलात्कार के मामले दर्ज किये गये, जबकि ब्रिटेन में यह 28.8 और आयरलैंड में 27.7 था. भारत में यह आंकड़ा 1.8 है.

हम जानते हैं कि यहां कई मामले सामाजिक कारणों से दर्ज नहीं किये जाते हैं. चिंता की बात है कि मामले दर्ज नहीं होने के बावजूद ऐसे अपराध तेजी से बढ़ रहे हैं. क्या यह भारत में अमेरिकी संस्कृति का आयात है? पितृसत्तात्मक जातिवादी सामंती दौर में भारत में महिलाओं को परदे में रखा जाता था, खासकर समाज के वंचित तबकों में. पूंजीवादी दौर में महिलाओं को इससे मुक्ति मिली और वे बाहर काम करने लगीं. लेकिन सामंती सोच में बदलाव नहीं आया. आज के पूंजीवादी दौर में महिलाओं को सिर्फ भोग की वस्तु के तौर देखा जाता है. न केवल बढ़ते ब्लू फिल्म उद्योग में बल्कि इंटरनेट पर मौजूद ईल साइटों और मनोरंजन चैनलों पर भी महिलाओं को इसी नजरिये से पेश किया जाता है.

महिलाओं को पहले परेशान करने फिर उससे प्रेम करने पर कई फिल्में आ चुकी है. आजकल तथाकथित आइटम गानों में महिलाओं को भोग की वस्तु के तौर पर पेश करने का चलन आ गया है. पॉप सिंगर हनी सिंह के नाम पर इंटरनेट पर कई महिला विरोधी चीजें उपलब्ध है. सार्वजनिक हित में इन चीजों पर रोक क्यों नहीं लगायी जाती है? महिलाओं को भोग की वस्तु के तौर पर पेश करने या मनोरंजन का उत्पाद समझने से ही महिलाओं का एक इंसान के तौर पर सम्मान कम हो रहा है और वे इससे वे यौन हिंसा का शिकार हो रही है. यह दुखद है. समाज में महिलाओं को एक इंसान के तौर पर देखने की सोच विकसित करनी होगी. क्योंकि उत्पाद की अर्थव्यवस्था से उत्पाद संस्कृति विकसित होती है.

(मेनस्ट्रीम वीकली से साभार)

Next Article

Exit mobile version