14.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

स्वाइन फ्लू का कहर जारी, तापमान बढ़ने पर मिलेगी राहत

डॉ आरके सिंघल,डायरेक्टर, इंटरनल मेडिसिन, बीएलके सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल सामान्य फ्लू एक नॉरमल वायरल बीमारी है, जो इंसान के शरीर में रूटीन के तौर पर सामने आता है और व्यक्तिगत स्तर पर अपनी दिनचर्या और खानपान को व्यवस्थित करने यानी थोड़े-बहुत प्रयासों से ही ठीक हो जाता है. स्वाइन फ्लू भी एक विशेष प्रकार का […]

डॉ आरके सिंघल,डायरेक्टर, इंटरनल मेडिसिन, बीएलके सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल

सामान्य फ्लू एक नॉरमल वायरल बीमारी है, जो इंसान के शरीर में रूटीन के तौर पर सामने आता है और व्यक्तिगत स्तर पर अपनी दिनचर्या और खानपान को व्यवस्थित करने यानी थोड़े-बहुत प्रयासों से ही ठीक हो जाता है. स्वाइन फ्लू भी एक विशेष प्रकार का वायरल इन्फेक्शन है, जिसका नाम ‘एच1एन1’ है. यानी यह ‘एच1एन1’ इनफेक्शन है. यह रेस्पाइरेटरी सिस्टम यानी हमारे श्वसन तंत्र पर चोट करता है और इलाज न होने की स्थिति में जानलेवा साबित होता है.

स्वाइल फ्लू होने पर यदि कोई मरीज सामान्य फ्लू की दवा लेगा तो मरीज पर उसका कोई असर नहीं होगा. जहां तक सामान्य फ्लू होने की स्थिति में किसी मरीज द्वारा स्वाइन फ्लू की दवा खाने का सवाल है, तो बिना इसकी जांच कराये दवा नहीं लेनी चाहिए. वैसे भी बाजारों में स्वाइन फ्लू की दवा (टेमी फ्लू और ओसाल्ट-मिविर) डॉक्टर की अधिकृत परची के बिना नहीं मिल सकती है. बाजार में इन दवाओं की आपूर्ति सीमित मात्र में की जाती है. आम तौर पर ये दवाएं पांच दिनों के लिए दी जाती हैं.

इसलिए किसी भी व्यक्ति को छाती में दर्द, ज्यादा खांसी-जुकाम होने, नाक से बलगम या खून आने यानी सामान्य वायरल की स्थिति में मरीज को जिस तरह की दिक्कतें होती हैं, उससे कहीं ज्यादा दिक्कत होने पर तत्काल डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए. इसके अलावा भी और बहुत से लक्षण हैं, जो स्वाइन फ्लू होने पर सामने आते हैं. इसके लक्षणों के दिखने पर डॉक्टर मरीज में इस बीमारी की मौजूदगी की जांच करते हैं.

पीसीआर टेस्ट

स्वाइन फ्लू की जांच का सबसे कारगर टेस्ट पीसीआर (पॉलिमेरस चेन रिएक्शन) है. इस टेस्ट के पॉजीटिव आने की दशा में मरीज में इसकी पुष्टि हो जाती है. ऐसे मरीज में कई बार ऑक्सीजन की कमी हो जाती है, इसलिए उसे तत्काल ऑक्सीजन देना पड़ता है. कई बार एक्स-रे के द्वारा भी इसकी जांच की जाती है. सामान्य मरीज में इस बीमारी के कुछ प्रारंभिक लक्षण दिखने पर उसकी पुष्टि के लिए पीसीआर टेस्ट किया जाता है. टेस्ट की रिपोर्ट करीब 24 घंटे में आ जाती है.

आइसोलेट करना जरूरी

मरीज में इस बीमारी की पुष्टि होने पर उसे आइसोलेट करना पड़ता है यानी उसे अन्य लोगों के संपर्क में आने से बचाव के लिए अलग-थलग रखा जाता है. बड़े अस्पतालों में ‘आइसोलेशन वार्ड’ बनाये जाते हैं, जहां इन्हें भरती किया जाता है. गंभीर हालत होने पर मरीज को नेबुलाइजर दिया जाता है ताकि उसे सांस लेने में दिक्कत न हो.

जहां तक इस बीमारी की पहचान की तकनीक का सवाल है तो फिलहाल हमारे देश में पीसीआर टेस्ट है. हालांकि, यह टेस्ट अंतरराष्ट्रीय स्तर की मानक स्वास्थ्य एजेंसियों से मान्यता प्राप्त है. साथ ही भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रलय ने भी इसे मान्यता दे रखी है. इस संबंध में पर्याप्त दिशा-निर्देश भी जारी किये गये हैं. यदि इन सभी दिशा-निर्देशों का पालन किया जाये, तो इस बीमारी को नियंत्रित करने में सहायता मिल सकती है. मरीज को आइसोलेट करने यानी लोगों से अलग रखने पर इस बीमारी को नियंत्रित करने में सहायता मिलती है. सरकार ने अपनी ओर से अब तक इस बीमारी की जांच के लिए कोई खास तकनीक नहीं बनायी है, जिसके माध्यम से आसानी से इसकी जांच की जा सके. सरकार दवा भी नहीं बना पायी है. इसलिए इस दिशा में सरकारी और निजी, दोनों ही क्षेत्रों को मिल कर काम करना होगा. वैसे फिलहाल हमारे यहां इस बीमारी की जितनी गंभीरता है, उससे निबटने के लिए यदि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्य मानकों को सटीक तरीके से अपनाया जाये तो वह काफी होगा.

देशभर में पिछले एक महीने में भले ही इस बीमारी से सैकड़ों लोगों की जान जा चुकी है, लेकिन जरूरत इस बात की भी है कि इसे ज्यादा पेनिक न बनाया जाये. इस बीमारी से ज्यादा डरने की जरूरत नहीं हैं. हां, इतना जरूर है कि लोगों को सतर्क रहना चाहिए. जैसे-जैसे सर्दी का मौसम खत्म होगा और तापमान में बढ़ोतरी होगी, वैसे-वैसे इसका प्रकोप कम होता जायेगा. उम्मीद की जा सकती है कि करीब 30 डिग्री सेल्सियश से ज्यादा तापमान होने पर इस बीमारी का जोखिम कम हो जायेगा.

(कन्हैया झा से बातचीत पर आधारित)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें