पूर्व व पश्चिम का सेतु
वेदांत विद्वान डेविड फ्रावले वामदेव शास्त्री के रूप में जाने जाते हैं.वह जन्म से अमेरिकी और विश्वास से हिंदू हैं. वह अपने कार्य को इन दो विरोधी संस्कृतियों के बीच सेतु के निर्माण के तौर पर देखते हैं और वह यह काम पूर्ण समर्पण से करते हैं. वेदों के अलावा फ्रावले आयुर्वेद, वैदिक ज्योतिष, योग […]
वेदांत विद्वान डेविड फ्रावले वामदेव शास्त्री के रूप में जाने जाते हैं.वह जन्म से अमेरिकी और विश्वास से हिंदू हैं. वह अपने कार्य को इन दो विरोधी संस्कृतियों के बीच सेतु के निर्माण के तौर पर देखते हैं और वह यह काम पूर्ण समर्पण से करते हैं. वेदों के अलावा फ्रावले आयुर्वेद, वैदिक ज्योतिष, योग व तंत्र के भी विशेषज्ञ हैं. वह कहते हैं, इन सबका का आधार वेद हैं. फ्रावले ने इन सभी विषयों पर कई किताबें लिखी हैं, जिनमें योगा एंड वेदांता और आयुर्वेद एंड द माइंड शामिल हैं. उनकी हाल की किताबों में वेदांता मेडिटेशन और योगा फॉर योर टाइप शामिल हैं. फ्रावले कहते हैं कि भारत को अपनी समस्याओं के निराकरण के लिए पश्चिमी सिद्धांतों को अपनाने के बजाय अपने धार्मिक समाधान पर जोर देना चाहिए.
उन्होंने इस विषय पर कई किताबें लिखी हैं, हिंदूज्म एंड द क्लैश ऑफ सिविलाइजेशन और द मिथ ऑफ द आर्यन इनवेजन. वह आधुनिक सभ्यता को प्लेनेटरी संस्कृति के उदय के तौर पर देखते हैं, जिसका संबंध चेतना है. वह कहते हैं, नयी संस्कृति के संचालन में पूर्व के मूल्यों की अहम भूमिका है. फ्रावले बेंगलुरु के नैमिशा रिसर्च इंस्टीटय़ूट ऑफ वेदिक स्टडीज से जुड़े हैं और अमेरिका के न्यू मैक्सिको में द अमेरिकन इंस्टीटय़ूट ऑफ वेदिक स्टडीज के संस्थापक निदेशक हैं. उनसे यह बातचीत लाइफ पॉजिटिव डॉट कॉम से साभार हम यहां दे रहे हैं-
-आपने अपनी वेबसाइट पर जिक्र किया है कि भारत में राइट (सही) सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक एक्शन (कार्रवाई ) की जरूरत है. राइट से आपका क्या मतलब है?
भारत में न केवल आध्यात्मिक परंपरा, बल्कि कई अन्य परंपराएं हैं. पारिस्थितिक(इकोलॉजी), वास्तु और कई अन्य से संबंधित वैदिक अप्रोच हैं. वे आधुनिक समस्याओं का धार्मिक समाधान दे सकते हैं. इसके लिए पश्चिम की ओर देखने की जरूरत नहीं है. भारतीय मानते हैं कि उनके आध्यात्मिक परंपराओं में कई तरह के मूल्य हैं. यहां तक कि अगली शताब्दी में भी समस्याओं के जो हल हो सकते हैं, वे पश्चिम के बजाय पर्व की परंपराओं में निहित हैं. हम उस युग में पहुंच चुके हैं, जब वाणिज्यवाद और पर्यावरण का विनाश गहरा गया है. समाज का धर्म, प्रकृति और चेतना आनेवाली शताब्दी में महत्वपूर्ण प्रतिमान (पाराडिग्म) होननेवाली है. इसलिए विलुप्त या हाशिये पर चली गयी परंपराओं में से कई को जिवित रखना महत्वपूर्ण है.
–पश्चिमी संस्कृति, जिसमें आपका जन्म हुआ है और हिंदू धर्म, जिसे आपने स्वीकार किया है, के बीच आप कैसे सामंजस्य स्थापित करेंगे?
हमें बहुत स्वतंत्रता है, इसलिए मैं वह कर सकता हूं, जो मैं चाहता हूं. जब मैं 20 वर्ष था, जब मैं परहंस योगानंद की शिक्षा के संपर्क में आया. श्री अरबिंदो और रमन महर्षि से भी जुड़ा. इससे विश्व के प्रति मेरा वैदिक दृष्टिकोण विकसित हुआ. वेदों और ज्योतिष में मेरी रुचि बढ़ी. 70 के दशक में नेचुरल हीलिंग मूवमेंट के साथ आयुर्वेद के प्रति मेरा झुकाव हुआ.
-आप अपनी पहचान को कैसे परिभाषित करेंगे?
मैं अपने आप को परिभाषित नहीं करता. क्या करना चाहिए उसे मैं परिभाषित करता हूं. लेकिन मैं अपने आप को पूरब और पश्चिम, पुरातन और आधुनिकता के बीच एक सेतु के रूप में देखता हूं. वैदिक श्रन पर मेरी दृष्टि व्यापक है, क्योंकि योग, आयुर्वेद, ज्योतिष संस्कृति की वो धाराएं हैं, जिनकी जड़ें वेद में समाहित हैं. भारत में मैने कई सामयिक मुद्दों पर अपनी बात रखी है, जैसे आज के समाज का क्या परिद्ृश्य है? यह किस तरफ जा रहा है. आइआइटी, दिल्ली में मैने आज के हालात, भूमंडलीकरण, सूचना एवं संचार क्रांति, टेकAोलाजी और आज के दौर में उसे कैसे प्रभावी बनाया जा सकता है, जैसे मुद्दों पर अपने विचार रखे.
-उच्च तकनीक से साथ आप तारतम्य कैसे बिठा लेते हैं?
मैं किसी चीज के खिलाफ नहीं हूं. लेकिन हाइ टेक व्लर्ड (उच्च तकनीक की दुनिया) अब तक सिर्फ सूचना के स्तर पर है, इंटेलीजेंस के स्तर पर नहीं है. इंटेलीजेंस किसी भी चीज के पिछे के सिद्धांत को समझने में मददगार होता है. सिर्फ डाटा की मदद से किसी सही निष्कर्ष तक नहीं पहुंचा जा सकता है. अभी भूमंडलीकरण के पीछे जो करंट है, वह सिर्फ सूचना के स्तर पर है. लेकिन सही मायने में भूमंडलीकरण के लिए इस करंट को लोगों के जागृत मन तक पहुंचाना जरूरी है. हमलोग भूमंडलीकरण से प्रकृति को बाहर कर देते हैं. जिस भूमंडलीकरण से प्रकृति खत्म होती है, वह भूमंडलीकरण नहीं है. उसे मनुष्य द्वारा अपने ग्रह का विनाश करना कहा जा सकता है.
-विश्व हिन्दू परिषद से भी आपका जुड़ाव रहा हैं?
थोड़ा बहुत. बहुत से संगठनों से मैं जुड़ा रहा हृ जैसे बीजेपी, आरएसएस, आर्य समाज, श्री औरबिंदो आश्रम, श्रींगेरी और कांची शंकराचार्य, रामन आश्रम, प्रमुख स्वामी और स्वामीनारायण ऑर्डर.
-तो आपको लगता है कि एक संस्कृति की ओर कोई अभियान चल रहा है?
एक संस्कृति लेकिन वेदिक सेंस में अनेकवादी. सिर्फ एक धर्म या एक भाषा या एक वर्ण का राज नहीं. अमेरिकी संस्कृति फैल रही है लकिन यह सतही है. कई संस्कृतियों को जैसे पारंपरिक, देसी, को खत्म किया जा रहा है. जिस तरह धरती की सेहत के लिए जैव विविधता जरूरी है उसी तरह समाज की सेहत के लिए सांस्कृतिक विविधता जरूरी है. पश्चिम की संभ्यता बहुत बड़ी है और विनाशकारी भी है. यह दूसरों की संस्कृति और सभ्यता को पनपने देना नहीं चाहती.
-क्या आपने हिन्दू धर्म को स्वीकार कर लिया है?
हां, लेकिन यह धर्मातरण का मुद्दा नहीं है, अपने धर्म को खोजने का है. मेरा मानना है कि धर्मातरण से किसी का भला नहीं होता है. आपका अपना कर्म ही आपको बचाएगा. मैं नहीं मानता कि नाम कोई मुद्दा है. अगर कोई व्यक्ति अच्छा है, तो उसकी पृष्ठभूमि मायने नहीं रखती है. हमलोगों को व्यक्ति के करनी से उसके बारे में धारणा बनानी चाहिए.
-क्या आप अपने को हिन्दू कहेंगे?
हां, क्योंकि मैं वैसे विचारों को मानता हूं. मैं मानता हूं कि वैदिक दर्शन ही सबसे सही है और मैं इसी परंपरा के गुरुओं जैसे रमन महर्षी को मानता हूं.
-क्या हिन्दू राष्ट्रवाद के प्रति जागरूकता सही और सकारात्मक है?
इस मामले में मैं वीएस नायपॉल के ज्यादा करीब हूं. हर जागरुकता का दोनों पहलू होता है. जैसे-अमेरिका में अपने नागरिक अधिकारों के प्रति जब काले लोग जागरुक हुए, तब वहां कई अतिवादी समूह भी बने. हिन्दुओं के लिए आज जागरूक होना जरुरी है. ईसाइयों ने यह कर लिया है. मुसलमानों ने भी कर लिया है.बौद्ध धर्म को मानने वाले भी जागरूक हो गये हैं. हिन्दुओं को दुनिया को आज यह बताने की जरूरत है कि इस दुनिया में उनका भी स्थान है, उनके विचार हैं, दूसरे हम पर हावी नहीं हो सकते हैं. ज्योतिष को मानने वाले इसके आगे समर्पण कर देते हैं. वैदिक ज्ञान के अनुसार कर्म ही सर्वोपरी है. कर्म भाग्य नहीं है. कर्म का मतलब है कि समय के साथ हम अपने आप का निर्माण करते हैं. इसलिए आयुर्वेद और ज्योतिष की मदद से हमें अपने कर्मो को बदलना चाहिए . अपना भविष्य सुधारने के लिए. मौसम की भविष्यवाणी की तरह है ज्योतिष. अगर कल वर्षा की भविष्यवाणी होती, तो हम अपनी तैयारी उस हिसाब से कर सकते हैं. लेकिन हम मौसम के रहमो करम नहीं है. ज्योतिष सिर्फ गाइड करने के लिए है. यह दुर्भाग्य है कि लोग इसे अपना भाग्य समझ
लेते हैं.
-क्या आपने आध्यात्मिक ज्ञान विकसित कर लिया है?
इसका उत्तर मैं नहीं दे सकता. लेकिन जब मैं अपनी जिंदगी की तरफ देखता हूं ,तो पाता हूं कि मैने कई ऐसे काम किये हैं, जिनके बारे में मैने कभी सोचा भी नहीं था. फिर भी मै यह नहीं कह सकता मैने अपनी सभी इच्छाओं को पूरा कर लिया है, जिसे मैं कर सकता हूं. लेकिन मैं हमेशा भविष्य की ओर देखता हूं. हमेशा कुछ चलते रहता है. चेतनमन बहती हुई नदी के समान होता है. सभी उसी धारा में बहते हैं. सोचते नहीं हैं कि कितनी दूर आ गये. मेरे काम के कई पहलू हैं, जिन पर काम कर रहा हूं, उनमें योग व आयुर्वेद कई पहलुओं को समाहित करता है. यह आध्यात्मिक, मनोवैज्ञानिक, स्वास्थ्य वैदिक सिद्धांतों के अनुसार दो विधियों में अंतरसंबंध को समेटता है.
-क्या आयुर्वेद एलोपैथ का समग्र जवाब है?
दूसरे को छोड़ने की कोई जरूरत नहीं है. आयुर्वेद स्वास्थ्य के लिए अच्छा है, एलोपैथ तुरंत राहत के लिए, सजर्री के लिए ठीक है.
क्या आप संस्कृत में वैदिक श्लोकों को पढ़ते हैं?
हां, मैं संस्कृत जानता हूं.
-क्या वैदिक युग में तकनीक विकसित हुआ था?
उस समय तकनीक का बहुत विकास नहीं हुआ था, लेकिन प्रकृति की कई जटिल शक्तियों की जानकारी थी. उन्हें मंत्रों व अन्य चीजों के बारे में जानकारी थी. इसलिए यह संभव है कि वे इस जानकारी का इस्तेमाल उपकरणों के विकास के लिए करते रहे हों. मैं यह नहीं सोचता हूं कि उनके पास वायु सेना थी. लेकिन उनके पास विमान था (फ्लाइंग मशीन). उनको तंत्र-मंत्र का ज्ञान था, जो हम आज नहीं जानते हैं.
क्या आध्यात्मिक तकनीक संभव है, जो मनुष्य को अपने आतंरिक शक्तियों का इस्तेमाल कर शक्तियों को नियंत्रित करने में सक्षम बनायेगा?
एक योग के पास कुछ शक्तियां होती हैं, जिनके जरिये वे शरीर के तापमान, अपने विचार जैसे विभिन्न चीजों को नियंत्रित करते हैं. हां यह संभव हैं.
-क्या आपने ऋग्वेद के मूल संस्करण का अध्ययन किया है? ईसाई मिशनरियां और भारतीय विद्वानों ने क्या गलतफहमी पैदा की है?.
काफी कुछ, उन्हें वेद के योग की प्रकृति के बारे में कोई समझ नहीं थी. ऋग वेद की शुरुआत अगिA से होती है. लेकिन, अगिA कौन है? वे कहते हैं कि यह वह आग है, जिसे आप त्याग के लिए समर्पित करते हैं. पर नहीं, मैं समझता हूं कि इसका मतलब अगिA का सिद्धांत, प्रत्यक्ष ज्ञान, वैश्विक स्तर पर प्रकाश से है. पश्चिमी विद्वान व मिशनरियां मामले को शब्दश: व सतही तौर पर लेती हैं. वे आध्यात्मिक, कवितामई व प्रतीकात्मक मूल्यों को नहीं देख पाते. आध्यात्मिक स्तर पर अग्नि का अर्थ है चेतना का सिद्धांत. इसलिए, प्राचीन समय में लोग ब्रह्माण्ड व प्रकृति की ताकत को चेतना की शक्ति समझते थे. यज्ञ भी एक योग व्यवहार था, जहां आप वाणी, प्राण व मस्तिष्क को चेतना की अग्नि में समर्पित करते हैं. आधुनिक विद्वान, जिसमें मार्क्सवादी भी हैं, ऋग वेद की आध्यात्मिक गहराई को देख नहीं पाते. वे विद्वान, जिनकी योग पृष्ठभूमि जैसे श्री अरविंदो को वैदिक किताबों की गहरी समझ थी, मैक्स मूलर अपने समय के अच्छे विद्वान थे, उन्होंने अच्छी शुरुआत की, पर उसे समाप्त करने के लिए यह बुरी जगह होगी. उन्होंने वैदिक मूल ग्रंथों पर नजर दौड़ाने की प्रक्रिया की शुरुआत की. उनके पास इसे समझने के उपकरण नहीं थे. वे योग व ध्यान करनेवाले नहीं थे. वे प्रतीकों को नहीं जानते थे. इसीलिए उन्होंने इन्हें पौराणिक कथाओं, प्रतीक विद्या के अनुसार व्याख्या की.
भारतीय व पश्चिमी मस्तिष्क कैसे सहयोग कर सकते हैं.
वे आसानी से सहयोग कर सकते हैं. पश्चिमी भूमिका बाहर के विज्ञान को विकसित करने में होगी. भारतीय मस्तिष्क आंतरिक विज्ञान को विकसित करेगा. मंत्र का विज्ञान. प्राण का, चिंतन की विधियां, चक्र. आत्मिक विज्ञान बाहर के विज्ञान को संतुलित करने के लिए जरूरी है. यह होगा भारत का योगदान. पश्चिम को इसे विकसित करने व प्रोत्साहित करने की जरूरत है.
क्या इस भौतिक सभ्यता के लिए कोई उम्मीद बची है या यह बदलने जा रहा है?
इसे बदलना ही होगा. सवाल यह है कि इस तरह के बदलाव से पहले यह कितना नुकसान पहुंचायेगा. हम इस तरह आगे नहीं जा सकते. आप प्रकृति को इसी तरह तहस-नहस करना जारी नहीं रख सकते. अमेरिका में हर साल एक करोड़ तीस लाख जानवर खाने के लिए मार दिये जाते हैं. इस तरह के विनाशकारी सभ्यता को बदलना ही होगा. ठीक इसी समय समाज में ऐसी शक्तियां हैं, जो बदलाव चाहती हैं. आपको यह जानना जरूरी है कि भारत के मानव संसाधन मंत्री मुरली मनोहर जोशी भारतीय इतिहास को कहीं अधिक पारंपरिक तौर पर व्याख्या करने का प्रयास कर रहे हैं. ऐसा करना आवश्यक है. दुर्भाग्य से अधिकतर इतिहास की किताबें मार्क्सवादियों द्वारा लिखी गयी हैं, जो भारत व हिंदुत्व को पसंद नहीं करते. जैसे रोमिला थापर. वे कभी तपस्या नहीं करेंगी या मंदिर नहीं जायेंगी. एक देश के तौर पर भारत को चाहिए कि वह अपनी शैक्षणिक विरासत को स्थापित करे.अमेरिका में अमेरिकी संस्कृति के विकास में पुरीटन के बारे में पढ़ते हैं. आप इतिहास के एक सहभागी के बतौर महाभारत को क्यों नहीं पढ़ सकते. पूरी दुनिया में उपनिवेशकों की व्याख्या से भिन्न इतिहास गढ़ने का आंदोलन दिखता है. अमेरिका में काले कहते हैं कि हम अपनी दृष्टि से इतिहास की व्याख्या चाहते हैं, हमें उपनिवेश की दृष्टि नहीं चाहिए, मार्क्सवादी दृष्टि नहीं चाहिए, मिशनरी की दृष्टि नहीं चाहिए. इसे भारत में भी बदलने की जरूरत है. उदाहरण के लिए प्राचीन भारत की पुरातात्विक खोज 10-20 गुना बढ़ गयी है. सरस्वती नदी का पूरा भूविज्ञान सामने आ गया है. आप इन चीजों की उपेक्षा कैसे कर सकते हैं और इसे कैसे स्वीकार कर सकते हैं कि 1930 में जो पुरातात्विक खोज हुए वे अंतिम थे या वही केवल सत्य है. इसलिए यह आवश्यक है कि किताबों को बदला जाये. और भारत की आध्यात्मिक विरासत रही है, जिसे विश्व को स्वीकार करना चाहिए.
लेकिन यह विश्वास करना मुश्किल है कि रामायण जैसी किताबें ऐतिहासिक रिकॉर्ड हैं. मैं नहीं समझता कि कोई यह बात कह रहा है. रामायण महाकाव्य है, हालांकि इसके ऐतिहासिक आधार भी हैं. हो सकता है कि राम राजा हों. कौन जानता है? ठीक-ठीक इतिहास की सनक पश्चिमी सनक है. हिंदू परंपरा में धर्म की शिक्षाओं पर जोर है, लेकिन एक ऐतिहासिक सार भी है. उदाहरण के लिए पुराणों में राजाओं की सूची – जिसे हम यह दावा नहीं कर सकते कि उनका अस्तित्व नहीं था. ईसा से तीन सौ साल पहले अलेक्जेंडर के साथ जब मेगास्थनीज भातर आया, तो उसके अपने लिखे अनुसार उसने पाया कि 6,400 वर्षो की परंपरा है, जिसमें 153 राजा हैं. हम कैसे कह सकते हैं कि इन बातों का कोई आधार नहीं है.