अरे वाह ! अब मोबाइल करेगा मोतियाबिंद की जांच

मोबाइल के द्वारा आपने इंटरनेट चलाया होगा, गाने सुनें होगीं, फिल्में देखीं होंगी और तस्वीरें भी ली होंगी. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि अब आपका मोबाइल आपकी आंखें में हुए मोतियबिंद की जांच करेगा. मरियम वाईथारा की आँखों में मोतियाबिंद उतर आया था और उन्हें दिखाई देना लगभग बंद हो गया था.मरियम कीनिया में एक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 17, 2013 11:55 AM

मोबाइल के द्वारा आपने इंटरनेट चलाया होगा, गाने सुनें होगीं, फिल्में देखीं होंगी और तस्वीरें भी ली होंगी. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि अब आपका मोबाइल आपकी आंखें में हुए मोतियबिंद की जांच करेगा.

मरियम वाईथारा की आँखों में मोतियाबिंद उतर आया था और उन्हें दिखाई देना लगभग बंद हो गया था.

मरियम कीनिया में एक दूरदराज़ के एक गरीब गाँव में रहती हैं. गाँव के आस पास के इलाके में एक ही डॉक्टर है और डॉक्टर को दिखाने के लिए भी बहुत दूर जाना पड़ता है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि पूरी दुनिया में 28 करोड़ 50 लाख लोगों को दिखता नहीं है या फिर उनकी नज़र कमजोर है.

कई बारका कारण बहुत मामूली और इलाज बेहद आसान होता है. एक चश्मा पहनने से या मोतियाबिंद के ऑपरेशन से नज़र ठीक हो सकती है.

ऐसा माना जाता है कि आँखों की तकलीफ के हर पाँच में से चार मामले ठीक किए जा सकते हैं.

दुनिया के ग़रीब माने जाने वाले हिस्सों में मौजूद क़स्बों या गांवों में आँखों के डॉक्टर मिल ही जाते हैं.

हालांकि लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के डॉक्टर एंड्रू बस्तावरस कहते हैं कि मरीज़ों को ही खोजना एक समस्या है.

उन्होंने कहा, "जिन मरीज़ों को इलाज की सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है, वे कभी अस्पताल पहुँच ही पाते. क्योंकि वो हाशिए रह रहे होते हैं. उनकी आमदनी भी इतनी नहीं होती कि वह अस्पताल जाने के लिए परिवहन का कोई इंतजाम कर सकें. इसलिए हमने उन तक पहुँचने का रास्ता खोज निकालने की ज़रूरत पड़ी."

डॉक्टर बस्तावरस का कहना है कि उन्होंने एक रास्ता खोज निकाला है. वह उपाय है एक मोबाइल जिसका इस्तेमाल साधारण से प्रशिक्षण से किया जा सकता है.

वो ‘पीक’ (पोर्टेबल आई एग्ज़ामिनेशन किट) नाम के एकस्मार्टफोन ऐपका कीनिया के 5,000 लोगों पर परिक्षण कर रहे हैं.इस स्मार्टपोन ऐप तकनीक में मोतियाबिंद की जांच के लिए मोबाइल फ़ोन का कैमरा प्रयोग में लाया जाता है.

मोबाइल की स्क्रीन पर बड़े से छोटे होते अक्षरों के सहारे आँखों के देखने की क्षमता की साधारण जाँच की जाती है.

मोबाइल की फ़्लैश लाइट की मदद से आँखों के पीछे के रेटिना वाले हिस्से की जाँच की जाती है.

इसके बाद मरीज़ के बारे में जानकारी मोबाइल में दर्ज हो जाती है और जीपीएस के माध्यम से उसकी मौजूदगी की वास्तविक जगह का पता भी लग जाता है.

ये जानकारियाँ ईमेल से डॉक्टरों को भेजी जा सकते हैं.

यह मोबाइल फ़ोनआंखों की जांचके लिए आने वाले भारी-भरकम और महँगे उपकरणों की तुलना में बेहद सस्ता है. फ़ोन की कीमत 300 पाउंड या लगभग 28 हज़ार रुपए हैं जबकि बड़े उपकरणों की कीमत एक लाख पाउंड या तकरीबन 95 लाख रूपए होती है.लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह फ़ोन वही नतीजे देता है जो परिणाम बड़े उपकरणों से मिलता है?

कीनिया के नाकुरू में इस फ़ोन से ली गई जांच की तस्वीरों को लंदन के मूरफ़ील्ड आई हॉस्पिटल में भेजा गया.

इन तस्वीरों की तुलना उन तस्वीरों से की गई जो एक पारंपरिक जांच उपकरण सी ली गईं थीं. इस पारंपरिक उपकरण को एक वैन में रख कर इस क्षेत्र में ले जाया गया था.

अभी तक दोनों तरह की तस्वीरों की तुलना का शोध पूरा नहीं हो पाया है लेकिन शोधकर्ता टीम का कहना है कि शुरूआती नतीजे अच्छे आए हैं.

लगभग 1,000 लोगों को अभी तक किसी न किसी तरह का उपचार मिल गया है.

डॉक्टर बस्तावरस कहते हैं, "हम इस मोबाइल के साथ अपने तकनीशियन घर-घर भेज सकते हैं, मरीजों के घर पर ही जांच कर के उनकी परेशानी का पता लगाया जा सकता है."

इस योजना को शुरूआती चरण में ही बेहद सराहना मिल रही है.

अंधापन रोकने वाली अंतर्राष्ट्रीय एजेंसी के पीटर ऑकलैंड कहते हैं, "मुझे लगता है कि पीक टूल से आँखों के इलाज में बड़ा बदलाव आने की संभावना है."

साभार बीबीसीहिंदीडॉटकॉम

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