स्त्री-मन की अभिव्यक्ति के गीतकार थे महेंदर मिसिर

चंदन तिवारी आज (16 मार्च) महेंदर मिसिर की जयंती है. छपरा के मिसरवलिया गांव में पैदा हुए महेंदर मिसिर को पुरबिया उस्ताद कहा जाता है, लेकिन उनके दीवाने दुनियाभर में फैले हुए हैं. उनको गुजरे 68 साल हो गये हैं. जैसे- जैसे समय गुजरता जा रहा है, पुरबी के इस सम्राट के जादू का दायरा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 16, 2015 6:27 AM
चंदन तिवारी
आज (16 मार्च) महेंदर मिसिर की जयंती है. छपरा के मिसरवलिया गांव में पैदा हुए महेंदर मिसिर को पुरबिया उस्ताद कहा जाता है, लेकिन उनके दीवाने दुनियाभर में फैले हुए हैं. उनको गुजरे 68 साल हो गये हैं. जैसे- जैसे समय गुजरता जा रहा है, पुरबी के इस सम्राट के जादू का दायरा फैलता जा रहा है. जहां तक मुङो जानकारी है, मुंबई में आधा दर्जन से ज्यादा निर्माता-निर्देशक महेंदर मिसिर पर फिल्म बनाने की योजना पर काम कर रहे हैं.
यह जानकारी अपुष्ट है, लेकिन अपना अनुभव पुष्ट है. पिछले एक साल में मैंने महेंदर मिसिर के सात गीतों को गाया, जिसे देश-दुनिया से सराहना मिली. सात में से चार गीतों में बॉलीवुड रु चि दिखा चुका है. यह कमाल है महेंदर मिसिर के गीतों की ताकत का.
आज से ठीक एक साल पहले उनके एक गीत को साझा कर हमने ‘पुरबियातान’ नाम से एक अभियान की शुरुआत की थी. गीत के बोल हैं- ‘कुछ दिन नईहर में खेलहूं ना पवनी, बलजोरी रे, सइयां मांगे गवना हमार..’ अभियान की शुरु आत करते हुए मन में कई डर थे जो अकारण नहीं थे. बिहार के गांवों से धुन का जुगाड़ हुआ था, झारखंड की राजधानी रांची में बुलू दा के यहां रिकार्डिग तय हुई थी. इधर-उधर से जुटा कर वादकों का इंतजाम हुआ था. पर हमेंमहेंदर मिसिर के गीतों के बोल पर भरोसा था. उनके गीतों के बोल इतने जबरदस्त हैं कि संगीत व गायकी थोड़ी कमजोर भी रहे, तो लोगों को पसंद आयेंगे. और ऐसा ही हुआ. पहले गीत को इंटरनेट पर डालते ही दुनिया के कोने-कोने में फैले लोकसंगीत के रसिया लोगों का रिस्पांस मिलना शुरू हुआ. लोग और गीत मांगने लगे. एक-एक कर महेंदर मिसिर के सात गीतों को हमने रिकार्ड किया और लोगों से साझा किया. इसी में उनका मशहूर गीत ‘अंगुरी में डंसले बिया नगिनिया..’ भी रहा, जिसे सुनने के बाद बॉलीवुड अभिनेता मनोज बाजपेयी अभियान को समर्थन देने खुद पटना आये, प्रेमचंद रंगशाला में घंटों बैठे.
न तो यह सब मेरी व्यक्तिगत उपलब्धि है और न ही मेरे लिए व्यक्गित गर्व की बात. सच पूछिए तो यह पुरबियातान की सफलता कम और महेंदर मिसिर के गीतों का जादू ज्यादा है. उनके गीत कालजयी हैं, सदाबहार हैं, जिन्हें गाते हुए जितनी सहजता के साथ डूबती-उतराती रही, उसके कारण की तलाश भी मैंने खुद ही की. सोचती कि गीत तो गीत होते हैं, फिर मिसिरजी के गीतों में मैं इस कदर डूबती क्यों जा रही हूं.
जवाब भी खुद ही तलाशा. बतौर गायिका मुङो महसूस हुआ कि मिसिरजी गीतकार भी थे, संगीतकार भी थे और गायक भी. इसलिए आजादी के पहले यानी बरसों पहले जो गीत उन्होंने लिखे, उनके वाक्यों को ऐसे रखा कि भविष्य में कोई भी गाना चाहे तो वह सुगमता से गा सके. उन्होंने पूरबी को पूरबी की तरह ही लिखा और निरगुन को निरगुन की ही तर्ज पर.
महेंदर मिसिर के गीतों से गुजरते हुए सबसे अच्छी जो बात लगी. वह यह कि उनके अधिकतर गीत स्त्री-मन की अभिव्यक्ति के गीत हैं. वह स्त्री प्रधान रचनाकार थे. स्त्री-मन के प्रेम-विरह को राग देनेवाले थे. सोचती हूं कि कितना कठिन रहा होगा उनके लिए. किस तरह वह स्त्री-मन के अंदर की बातों को शब्दों में उतारते होंगे. कितनी गहराई में डूब जाते होंगे वे. स्त्री ही तो बन जाते होंगे, लिखते समय.. और इसके लिए परमआदरणीया शारदा सिन्हा जी, जिनसे मैं सदैव प्रेरित रहती हूं, का विशेष धन्यवाद.
सबसे पहले उनसे ही महेंदर मिसिर का लिखा एक गीत सुना था और फिर बार-बार सुनने लगी थी. वह गीत है- ‘हमनी के रहब जानी, दुनो परानी..’ और परमआदरणीय भरत सिंह भारती के प्रति विशेष आभार जिन्होंने मिसिरजी के गीतों को अपनी गायकी से एक नया मुकाम दिया था. इन दोनों को सुन कर मुङो ताकत मिली. प्रेरणा मिली.
(लेखिका लोकगायिका हैं और पुरबियातान अभियान से जुड़ी हैं)

Next Article

Exit mobile version