।। डॉ एन के सिंह।।
(कार्डियो-डायबिटोलॉजिस्ट)
डायबिटीज की महत्वपूर्ण दवा पायोग्लीटाजोन पर 18 जून, 2013 को भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रलय ने जो अचानक बैन लगाया गया था, अंतत: एक अगस्त को कुछ हिदायतों के साथ हटा लिया गया है. देश में यह पहला मामला है कि बैन की गयी दवा दो महीने के अंदर मुक्त कर दी गयी हो. पायोग्लीटाजोन डायबिटीज के मुख्य कारक इंसुलीन की नाकामी को खत्म करने की क्षमता रखती है और सस्ती भी है. वर्ष 2000 में इस दवा के बाजार में आने के बाद से ही शक रहा कि यह मूत्राशय का कैंसर पैदा कर सकती है. वर्ष 2011 में फ्रांस ने इसे एक इंश्योरेंस कंपनी के रेट्रोस्थेक्टिव शोध के नतीजे के बाद बैन कर दिया. जर्मनी में इसे बेचा जाता रहा, मगर वार्निग के साथ. इसके अलावा अमेरिका, जापान और चीन जैसे देशों में इसे उपयोग में लाया जाता रहा है.
चेन्नई के डॉ मोहन ने प्रधानमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री को एक पत्र लिखा था, जिसमें एक सर्वे हवाला देते हुए 27 मरीजों में मूत्रशय का कैंसर होने की शंका जतायी गयी थी. इस पत्र के आलोक में स्वास्थ्य मंत्रालय इतना संवेदनशील हो गया कि ड्रग टेक्निकल एडवायजरी बोर्ड और ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया की सलाह के बगैर आनन-फानन में इस दवा को बैन कर दिया. यह समाचार भारतीय डायबिटीज विशेषज्ञों के लिए शॉक था. पायोग्लीटाजोन के वार्षिक 700 करोड़ की फार्मास्यूटिकल कंपनियों को भी अचानक काठ मार गया. डॉक्टरों ने फेसबुक जैसे सोशल मीडिया पर पायो चैट शुरू किया और विरोध में का झंडा बुलंद किया. इसी बीच कुछ दवा कंपनियों ने सवाल उठाया कि चूंकि डॉ मोहन के सेंटर में सिटाग्लीपटीन बनानेवाली कंपनी डायबिटीज के कोर्स के लिए अपार पैसे देती है, डॉ मोहन ने 45 रुपये की दवा को प्रोमोट करने के लिए चार रुपये की दवा को बैन करवा दिया.
सच्चई जो भी हो, मगर मीडिया में यह बात आते ही स्वास्थ्य मंत्रलय के हाथ-पैर फूल गये. डॉ मोहन डायबिटीज की दुनिया के महान रत्न हैं. उनके शोध दुनिया में सम्मान से पढ़े जाते हैं. डॉक्टरों का बड़ा तबका इस बात को नकारता है कि डॉ मोहन की मंशा खराब रही होगी. बाद में अत्यंत नम्रता से डॉ मोहन ने भी स्वीकार किया कि फैसला लेने में उनसेगलती हो गयी. 11 जुलाई और 19 जुलाई को टेक्निकल कमेटी और 12 चुने हुए डायबिटीज विशेषज्ञों की बैठक में एक स्वर से मान लिया गया कि इस समय इस दवा को बैन करना सही नहीं है. हिदायतों के साथ इस दवा बेची जा सकती है और 31 जुलाई, 2013 को स्वास्थ्य मंत्रलय ने अधिसूचना जारी कर पायोग्लीटाजोन को बैन से मुक्त कर दिया.
डायबिटीज विशेषज्ञों ने इन हिदायतों का स्वागत किया है. मगर प्रश्न है कि क्या पायोग्लीटाजोन कैंसर पैदा करती है? यदि कुछ केसों में भी ऐसा हुआ है, तो इसका उपयोग कितना जायज है? वस्तुत: मेडिकल साइंस की एडवांसमेंट ऊंची उड़ान भर रही है, तो अज्ञानता भी उतनी ही तेजी से दौड़ रही है. भारत में इस दवा के बैन होने के बाद के दौर में कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण शोधों के नतीजे सामने आये हैं. हैरानी की बात है कि जिन आंकड़ों के आधार पर फ्रांस ने इस दवा को बैन किया, उन्हीं आंकड़ों को जब मेटा-एनालिसिस द्वारा परखा गया, तो पायोग्लीटाजोन द्वारा मूत्राशय कैंसर होने की बात में कोई दम नहीं था. यह शोध जुलाई में एक्टा-डायबिटोलाजिया जर्नल में छपा है. करीब 22 शोधों का निचोड़ है कि पायोग्लीटाजोन मूत्राशय के कैंसर को बढ़ाता या पैदा करने की क्षमता नहीं रखता. यह ब्रेस्ट कैंसर को महत्वपूर्ण ढंग से कम करता है. ग्लीटाजोन दवाइयों से आंत के कैंसर, फेफड़े के कैंसर और ओवरी के कैंसर का रिस्क घटता है. पायोग्लीटाजोन द्वारा हर्ट अटैक होने की संभावना में करीब 12 फीसदी कमी का खुलासा भी हाल में हुआ है. चेन्नई के डॉ बी बालाजी का एकमात्र भारतीय शोध भारतीय इंडोक्राइन एवं मेटाबोलिज्म जर्नल में छपा है, जिसमें 958 मरीजों को पायोग्लीटाजोन की 30 मिलीग्राम की मात्र दो साल तक दी गयी. उसमें मूत्रशय के कैंसर का कोई लक्षण नहीं दिखा. करीब 10 साल से लाखों मरीजों ने भारत में इस दवा का इस्तेमाल किया है. अभी हाल में कोलकाता में संपन्न हुए आइडियाकॉन 13 सम्मेलन में देश के विभिन्न भागों से आये विशेषज्ञों ने माना कि पायोग्लीटाजोन खानेवाले उनके मरीजों में मूत्रशय के कैंसर का मामला शून्य ही रहा है.
कोई दवा सुरक्षित नहीं
दुनिया में ऐसी कोई दवा नहीं बनी, जो 100 फीसदी सुरक्षित हो. पायोग्लीटाजोन एक अत्यंत प्रभावकारी और अपेक्षाकृत सुरक्षित दवा है. मगर डायबिटीज की किसी भी दवा को इस्तेमाल में लाना कला भी है. भारत में झोलाछाप डॉक्टरों द्वारा इन दवाओं का इस्तेमाल करना ही एक भारी खतरे की तरह उभरा है. किस अवस्था में यह दवा देनी है, कब नहीं देनी है और किन मरीजों को देनी है, इसका इल्म उन्हें नहीं होता, जो पायोग्लीटाजोन को राम-बाण की तरह इस्तेमाल करते हैं. साइंस की मान्यता है कि प्रतिदिन 7.5 मिग्रा से 15 मिग्रा की पायोग्लीटाजोन की मात्र ही जायज है. मगर 45 से 30 मिग्रा तक इस्तेमाल करनेवाले उत्साही नीम-हकीमों से सावधान रहने की जरूरत है. पायोग्लीटाजोन को बैन किया जाना और फिर उसके उपयोग की छूट देना हमारे सिस्टम के फेल्योर और डॉक्टरों की संवेदनशीलता और संघर्ष की कहानी है. क्या चिकित्सक राम की भूमिका में हैं? क्या इस दवा को लेकर उनकी अग्निपरीक्षा का वक्त नहीं आ गया है? क्या इसकी जरूरत नहीं है कि मूल भारतीय शोध द्वारा इस दवा की हकीकत सामने आये और अफसाना को पूर्ण विराम मिले?
(लेखक डायबिटीज हार्ट सेंटर धनबाद के निदेशक हैं.)
मंत्रालय की हिदायतें
रोगी को मूत्राशय के कैंसर की संभावना है या मूत्र से खून आता है, तो जब तक पूरी जांच न हो, यह दवा उपोयग में न लें.
दवा खानेवाले हर छह महीने में जांच करा कर देखें कि मूत्राशय के कैंसर की संभावना तो नहीं.
शरीर में सूजन या हर्ट फेल्योर की अवस्था में यह दवा किसी कीमत पर नहीं देनी चाहिए.
बढ़ती उम्र में दवा की सबसे कम मात्र 7.5 मिग्रा उपयोग में लें.