रावी नदी के किनारे किया गया था भगत सिंह का अंतिम संस्कार

नयी दिल्ली : भगत सिंह , सुखदेव और राजगुरु को अंग्रेजों ने फांसी के तय समय से एक दिन पहले ही फांसी पर लटका दिया था और फिर बर्बर तरीके से उनके शवों के टुकडे-टुकडे कर सतलुज नदी के किनारे स्थित हुसैनीवाला के पास जला दिया था, लेकिन बाद में लोगों ने अगाध सम्मान के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 22, 2015 12:56 PM

नयी दिल्ली : भगत सिंह , सुखदेव और राजगुरु को अंग्रेजों ने फांसी के तय समय से एक दिन पहले ही फांसी पर लटका दिया था और फिर बर्बर तरीके से उनके शवों के टुकडे-टुकडे कर सतलुज नदी के किनारे स्थित हुसैनीवाला के पास जला दिया था, लेकिन बाद में लोगों ने अगाध सम्मान के साथ इन तीनों वीर सपूतों का अंतिम संस्कार लाहौर में रावी नदी के किनारे किया था.

अंग्रेज 23 मार्च 1931 को इन तीनों सेनानियों को फांसी पर लटकाने और शवों के टुकडे करने के बाद चुपचाप उन्हें सतलुज के किनारे स्थित हुसैनीवला के पास ले गए थे और वहां बहुत ही अमानवीय तरीके से उनके शवों को जला दिया था. उसी दौरान वहां लाला लाजपत राय की बेटी पार्वती देवी और भगत सिंह की बहन बीबी अमर कौर सहित हजारों की संख्या में लोग पहुंच गए. इससे वहां मौजूद अंग्रेज पुलिसकर्मी शवों को अधजला छोडकर भाग गए.

शहीद ए आजम भगत सिंह पर कई पुस्तकें लिख चुके प्रोफेसर चमनलाल ने बताया कि लोगों ने तीनों शहीदों के अधजले शवों को आग से निकाला और फिर उन्हें लाहौर ले जाया गया. लाहौर में तीन अर्थियां बनाई गईं और 24 मार्च की शाम हजारों की भीड ने पूरे सम्मान के साथ उनकी शव यात्रा निकाली तथा उनका अंतिम संस्कार रावी नदी के किनारे उस स्थल के नजदीक किया गया जहां लाला लाजपत राय का अंतिम संस्कार हुआ था.

चमन लाल के अनुसार रावी नदी के किनारे हुए इस अंतिम संस्कार का व्यापक वर्णन सुखदेव के भाई मथुरा दास थापर की किताब मेरे भाई सुखदेव में है. उन्होंने कहा कि नौजवावन भारत सभा चाहती थी कि इन शहीदों का स्मारक रावी नदी के किनारे बने, लेकिन राजनीतिक कारणों से ऐसा नहीं हो पाया.

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