भीड़ से हट कर काम करेंगे, तो सफल होंगे
दक्षा वैदकर सन 1966 में मनोज कुमार वाली ‘शहीद’ रिलीज हुई थी, तब मैं आठवीं में थी, मिडिल बोर्ड. उस उम्र में एक आदर्श की छवि मन में होती है. परीक्षा से कुछ ही दिन पहले फिल्म देखी थी. भगत सिंह पर थी इसलिए अनुमति मिल गयी थी, वरना तब घर पर भी एक सेंसर […]
दक्षा वैदकर
सन 1966 में मनोज कुमार वाली ‘शहीद’ रिलीज हुई थी, तब मैं आठवीं में थी, मिडिल बोर्ड. उस उम्र में एक आदर्श की छवि मन में होती है. परीक्षा से कुछ ही दिन पहले फिल्म देखी थी. भगत सिंह पर थी इसलिए अनुमति मिल गयी थी, वरना तब घर पर भी एक सेंसर बोर्ड हुआ करता था.
भगत सिंह दिल-दिमाग पर छाये हुए थे (आज भी हैं). हिंदी में निबंध लिखना था- ‘एक राष्ट्रीय नायक’. मैं भगत सिंह पर लिख कर आ गयी. हिंदी के मास्टर जी ने पूछा- निबंध किस पर लिखा? मैंने बताया, तो बोले बेवकूफ. गांधी जी या नेहरू जी पर लिखना था, जो सभी लिख कर आये हैं. अब नंबर कट जायेंगे. जब परिणाम आया, तो पूरे स्कूल की सारी कक्षाओं में मैं प्रथम थी, जिसके लिए मुङो खास पुरस्कार स्वरूप किताबें मिलीं, जो आज पचास साल बाद भी मेरे पास हैं.’
सोमवार को फेसबुक अलखनंदा जी ने अपना यह अनुभव लिखा. इस पर कई लोगों ने अपने-अपने अनुभव बताये. अधिकांश लोगों के अनुभव यही थे कि उन्होंने लीक से हट कर कोई चीज परीक्षा में लिखी और इसकी वजह से उन्हें नंबर मिले. मुङो भी याद है, जब मैं स्कूल में थी और हर साल परीक्षा में (इंगलिश के पेपर में) ‘विज्ञान’ या ‘जनसंख्या’ पर निबंध लिखने को आया करता था. मैं स्कूल में सभी को लिखाया गया निबंध याद कर रही थी. पापा ने देखा, तो कहा- वही निबंध याद मत करो, जो सब कर रहे हैं.
तुम्हारा निबंध दूसरे से अलग दिखेगा, तो तुम्हें फायदा होगा. कई बार टीचर एक-दो लाइन पढ़ कर यूं ही नंबर दे देते हैं कि सब बच्चों ने एक जैसा ही तो लिखा है. तब पापा ने आलमारी से कोई पुरानी निबंध की किताब निकाली और उसमें लिखे ‘विज्ञान’ और ‘जनसंख्या’ के निबंध मुङो याद करने को दिये. उस निबंध की भाषा कठिन थी, लेकिन मैंने जैसे-तैसे याद कर लिया. परीक्षा में भी वही लिख कर आयी. वह छमाही परीक्षा थी इसलिए कॉपी चेक होने के बाद वापस भी मिलती थी. मैंने देखा तो सभी सहेलियों को 15 में से 8, 9, 10 ऐसे मार्क्स निबंध में मिले थे. जबकि मुझे पूरे 15 नंबर दिये थे.
बात पते की..
अगर आप वही काम करेंगे, जो सब करते हैं, तो लोगों का ध्यान आप पर नहीं जायेगा. बेहतर है, लीक से हट कर कोई काम करने का प्रयास करें.
दुनिया क्या कहेगी? क्या सोचेगी? दूसरों के साथ चलने में कोई रिस्क नहीं है. ये सोचेंगे, तो कभी आगे नहीं बढ़ पायेंगे. रिस्क लेना सीखें.