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दो हजार वर्ष ईसा पूर्व के शिव मंदिर में लौह युग का अवशेष
लोहरदगा के भास्को गांव समेत कई जिलों में मिले पत्थरों से बने प्राचीन शवागार रांची : झारखंड में आदिवासियों के इतिहास की परतों पर पड़ा परदा उठ सकता है. मुंडा आदिवासियों के तौर-तरीकों और राज्य में मिल रहे पुरातात्विक प्रमाण के बीच कड़ियां जोड़ी जा रही है. हाल ही में लोहरदगा के भास्को गांव में […]
लोहरदगा के भास्को गांव समेत कई जिलों में मिले पत्थरों से बने प्राचीन शवागार
रांची : झारखंड में आदिवासियों के इतिहास की परतों पर पड़ा परदा उठ सकता है. मुंडा आदिवासियों के तौर-तरीकों और राज्य में मिल रहे पुरातात्विक प्रमाण के बीच कड़ियां जोड़ी जा रही है. हाल ही में लोहरदगा के भास्को गांव में पत्थरों से बनाये गये प्राचीन शवागार होने के प्रमाण खोजे गये हैं.
खोजकर्ता राज्य सरकार में उप निदेशक के पद से सेवानिवृत्त हो चुके हरेंद्र कुमार सिन्हा हैं.वह बताते हैं : लोहरदगा के भास्को गांव स्थित प्राचीन शिव मंदिर में लौहयुग के अवशेष पाये गये हैं. वहां पत्थरों को उसी तरह रखा गया है, जैसे हजारों वर्ष पहले शवागार में इस्तेमाल किया जाता था. लौहयुग के निवासियों के इस तरह के शवागार दुनिया के कई हिस्सों में मिले हैं. दुनिया भर में मशहूर इंग्लैंड में मिला स्टोन हेड (जहां विशालकाय खड़े पत्थरों को खास तरीके से रखा गया है) भी ईसा से लगभग एक हजार पूर्व का शवागार ही है.
प्रामाणिकता जांचने के लिए रिसर्च जरूरी
झारखंड में मिल रहे लौहयुग के प्रमाण इतिहास की कड़ियों में नया अध्याय जोड़ सकता है. श्री सिन्हा कहते हैं : मेरी बात की प्रामाणिकता जांचने के लिए रिसर्च जरूरी है. वहां खुदाई किये जाने पर अब तक के लिए रहस्य रही लौहयुग की सभ्यता के बेशकीमती प्रमाण मिल सकते हैं.
इंडियन काउंसिल ऑफ हिस्टोरिकल रिसर्च (आइसीएचआर) ने झारखंड में मिले पुरातात्विक प्रमाणों पर शोध के लिए प्रोजेक्ट को हरी झंडी दी है. हालांकि इस पर काम अब तक शुरू नहीं हो सका है. आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआइ) ने राज्य सरकार को खोज में सहयोग करने का निर्देश दिया है. आइसीएचआर से प्रोजेक्ट के लिए राशि मिलने पर ही काम शुरू किया जा सकता है.
कई जिलों में मिले हैं ऐसे अवशेष
झारखंड के कई जिलों में उसी युग के (एक से दो हजार वर्ष ईसा पूर्व के बीच) अवशेष मिल रहे हैं. सिंहभूम, रांची, चतरा, लोहरदगा, हजारीबाग के अलावा कई जगहों पर ऐसे अवशेष मौजूद हैं. श्री सिन्हा बताते हैं : इन अवशेषों की जांच करने पर मनुष्य के अतीत की कड़ियां जोड़ी जा सकती हैं.
जिस तरह के अवशेष राज्य में मिल रहे हैं, उनकी शोध और खुदाई में सरकारी मदद मिलने पर हमारे राज्य में निवास कर रहे आदिवासियों के इतिहास की परतें भी खोली जा सकती है. झारखंड में रहनेवाले आदिवासियों की मसना से संबंधित प्रथाएं और लौहयुग के निवासियों के शवागारों के बीच काफी समानताएं हैं.
हो सकता है कि दुनिया भर के लिए रहस्य रही लौह युग के निवासियों के सभ्यता ही हमारे आदिवासियों की परंपराओं का आधार बना. यह भी हो सकता है कि झारखंड के मुंडा आदिवासियों के पूर्वज पूरी दुनिया में घूमनेवाले लौहयुग के हैं. वह झारखंड से होकर दुनिया बढ़ाने आगे बढ़े थे. भारत में वह जम्मू-कश्मीर के रास्ते आये थे. महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के बाद दक्षिण भारत के कई हिस्सों में मिले प्राचीन विशालकाय पत्थरों के शवागार ही उनकी महान सभ्यता का अंदाजा लगाने का प्रमाण है.
सरकार खोज में मदद करे
लोहरदगा में मिले लौहयुग के अवशेष मानव सभ्यता के लिए काफी कीमती हो सकते हैं. सरकार खोज में मदद करे, तो झारखंड में पूरे विश्व की सभ्यता से संबंधित महत्वपूर्ण प्रमाण मिल सकते हैं.
हरेंद्र कुमार सिन्हा, पुरातत्व विज्ञानी
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