मधुबनी/दरभंगा : ‘जली ठूठ पर बैठकर गयी कोकिला कूक, बाल न बांका कर सकी शासन की बंदूक’ हिंदी के लब्धप्रतिष्ठित साहित्यकार नागाजरुन की मशहूर कविता की ये पंक्तियां आपातकाल के काल में जनतंत्र की विशेषता को भले ही बयां करने के लिए लिखी गयी.
अब वो स्थिति नहीं है, किंतु आज कोकिला (कोयल) के बैठने के लिए एक अदद ठूठ तक शेष नहीं रह गया है. यही कारण है कि वसंत ऋतु के जाने के समय तक इस बार शहरवासियों के कान इसकी मधुर तान सुनने को तरसते रह गये. एक भी दिन कोयल की कूक नहीं सुनाई पड़ी. ऋ तुराज वसंत के आगमन के साथ ही प्रकृति हरी चादर में लिपट जाती है. ठुठारती सर्दी से बेदम लोगों को गुलाबी ठंड सुकून देनी शुरू कर देती है.
प्राकृतिक नजारा इतना मनोरम हो जाता है कि मन प्रफ ुल्लित हो जाता है. एक सुखद इसमें जब वसंत की रानी कोयल की मधुर कूक कानों में पड़ती है, तो ऐसा लगता है मानो हृदय के तार झनझना उठे हों, पर इस साल इस एहसास से शहर के लोग पूरी तरह वंचित रह गये.
एक दिन भी कोयल की मधुर आवाज ने फिजां अपनी मिठास नहीं घोली. एक जमाना था, जब घर के सामने प्राय: सभी लोग बगीचा लगाये करते थे. रंग-बिरंगी गुलिस्ता के बीच जब शाम में इसकी भीनी खुशबू फिजां में फैलती, तो बागवान के साथ निकट से गुजरने वालों का मन भी मदमस्त हो जाता. कालांतर में स्थिति बदली. बगीचों के गुलदस्ते छतों के मुंडेर पर चढ़ गये. जमीन के व्यावसायिक उपयोग के दौर ने इसे यहां से भी खिसका दिया.
अब तो डायनिंग हॉल में प्लास्टिक के फूल सरीखे गुलदस्ते नजर आते हैं. वह भी खास घरों में ही. शहर में कई मोहल्ले ऐसे थे, जहां पेड़ की झुरमुट दूर से ही सिर हिलाकर लोगों को अपने पास बुलाते रहते थे. राज परिसर में तो इतना सघन बगीचा था कि दिन में भी अकेले गुजरने में लोग भय महसूसते थे, लेकिन ये उन दिनों की बात हो गयी. आज तो पूरा शहर कंक्रीट के जंगल में बदल गया है. प्रकृति प्रेमियों के लिए चिंताजनक पहलू यह है कि इस कंक्रीट के जंगल में रहनेवाले लोगों के दिल भी ‘पाषाणी’होते जा रहे हैं. मधुरता के कारण चहेती कोयल के दूर होने की कोई फिक्र भी नजर नहीं आ रही.
कोयल की कूक सुनने को तरस रहे कान
इस संबंध में विशेषज्ञ डॉ विद्यानाथ झा कहते हैं कि कोयल अभी भी पूरी तरह इस क्षेत्र से विलुप्त नहीं हुई है. हां इसकी संख्या में काफी कमी जरूर आयी है. इसके कई कारण हो सकते हैं. कीटनाशक के बढ़ते प्रयोग, कम हो रहे कौआ की संख्या व गायब हो रहे बाग-बगीचे की वजह से यह स्थिति आयी है. इसके लिए हम सभी को जागरूक होना होगा. प्रकृति से मित्रवत व्यवहार कर अपना वर्तमान व आनेवाली पीढ़ी का भविष्य सुरक्षित कर सकते हैं. तभी कोयल की मधुर तान के साथ अपने जीवन में मधुरता घोल सकेंगे.