सिनेमाई दुनिया में एक चुंबकीय आकर्षण होता है, जो अपनी ओर पूरे प्रभाव से खींचता है. लेकिन यहां बने रहने के लिए इंसान में लोहे का हो जाने की काबिलियत चाहिए, वह भी सुनहरी परत के साथ. यह हुनर सबके पास नहीं होता. इसलिए यहां आने वाले ज्यादातर लोग गुमनाम अंधेरों में खो जाते हैं. ऐसे कम ही होते हैं, जो इब्ने इंशा की एक नज्म के मिसरे ‘इस पेड़ के नीचे क्या रुकना/ जहां साये कम, धूप बहुत’ की तरह सच्चई को स्वीकार इस ताबदार दुनिया को अलविदा कह दें. और इससे इतर एक सार्थक जिंदगी का सिरा पा लें. ऐसे में सोमी अली, जो कभी अदाकारा हुआ करती थीं, एक उम्मीद की तरह नजर आती हैं. जी हां, वही सोमी जिनका जिक्र अकसर सलमान खान से रहे उनके संबंध को लेकर ही होता है, ग्लैमर की दुनिया से दूर अब बेहद संजीदा और सार्थक जिंदगी जीने की कोशिश कर रही हैं.
पिछले कुछ वर्षो से वह घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं और बच्चों की जिंदगी में खुशियां बिखेरने के लिए प्रयासरत हैं. सोमी अली के फिल्मी सफर को देखें, तो अभिनय से जुड़ी कोई यादगार उपलब्धि उनकी झोली में नहीं दिखती. उनका छोटा सा फिल्मी कैरियर नब्बे के दशक में आयी महज 7 से 8 फिल्मों में सिमटा हुआ है. 25 मार्च 1976 को पाकिस्तान के कराची शहर में जन्मी सोमी 9 साल की उम्र में माता-पिता के साथ अमेरिका चली गयीं. हिंदी फिल्में उन्हें पसंद थीं. 1989 में आयी सलमान खान अभिनीत ‘मैंने प्यार किया’ ने उन्हें बॉलीवुड की ओर दीवानगी की हद तक आकर्षित किया. इस आकर्षण के केंद्र में अभिनेता सलमान खान से मिलने की चाहत पहले थी और अदाकारा बनने की हसरत बाद में.
इन हसरतों के साथ वह महज 16 साल की अपरिपक्व उम्र में मुंबई आ गयीं. थोड़े संघर्ष के बाद फिल्मों में काम मिला और सलमान खान से मुलाकात भी हुई. यह मुलाकात दोनों के बीच जल्द ही प्रेम संबंध में तब्दील हो गयी. इस बीच सोमी ने ‘अंत’,‘कृष्ण अवतार’, ‘यार गद्दार’,‘आओ प्यार करें’, ‘आंदोलन’,‘माफिया’ जैसी औसत फिल्मों में काम किया. उम्र की अपरिपक्वता अभिनय ही नहीं, फिल्मों के चयन में भी दिखी. हाल में फिल्म फेयर को दिये एक साक्षात्कार में सोमी स्वीकारती भी हैं,‘मैं जब फिल्मों में आयी, मुझमें इतनी समझ नहीं थी कि यह परख सकूं कि किस पर भरोसा करूं, किस पर न करूं.’ शायद इसलिए उन्हें यह दुनिया रास नहीं आयी. सलमान खान से उनके संबंधों की उम्र भी छोटी ही रही. 24 की उम्र में जब अकसर अदाकाराओं का कैरियर गति पकड़ता है, सोमी ने अपनी राह बदल ली. वह संबंध की टूटन और कैरियर की मद्धिम पड़ती गति से निराशा में नहीं डूबीं, बल्कि 1999 में अमेरिका वापस लौट गयीं.
वापसी आसान नहीं थी. सोमी जिस दुनिया में वापस आयी थीं, वह लगभग एक दशक आगे निकल चुकी थी. लेकिन उन्होंने दोगुनी मेहनत की. बीच में छोड़ी पढ़ाई फिर से शुरु की. फ्लोरिडा में नोवा साउथ ईस्टर्न यूनिवर्सिटी से मनोविज्ञान में स्नातक करने के साथ स्थानीय रेडियो स्टेशन में राजनीतिक और सामाजिक मुद्दे पर केंद्रित एक टॉक शो में काम किया. यहां काम करते हुए पत्रकारिता में उनकी रुचि जागी और उन्होंने मियामी विश्वविद्यालय में प्रिंट जर्नलिज्म में प्रवेश लिया. यहीं उनकी दिलचस्पी डॉक्यूमेंट्री फिल्मों की तरफ बढ़ी और वह न्यूयॉर्क फिल्म एकेडमी चली गयीं. फिल्म मेकिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद सोमी ने गर्भपात, घरेलू हिंसा, किशोरों की आत्महत्या पर शॉर्ट फिल्में बनायीं. इस क्रम में उन्होंने ‘लीव्स ऑफ मुसलिम वुमेन’ का निर्माण किया. 2004 में उन्होंने फ्लोरिडा से ब्रॉडकास्ट जर्नलिज्म की डिग्री ली और फ्रीलांस पत्रकारिता करने लगीं. लेकिन अभी भी सोमी में कुछ अलग और बेहतर करने की बेचैनी थी, पर क्या! इस बात का एहसास नहीं था.
इसी बीच घरेलू हिंसा से पीड़ित एक महिला ने उनसे मदद मांगी. सोमी ने न सिर्फ उसे हिंसा से बचाया, आत्मनिर्भर बनाने में भी सहयोग किया. सोमी की बेचैनी को राह मिल गयी थी, जिसने ‘नो मोर टियर्स’ के रूप में आकार लिया. सोमी की यह गैरलाभकारी संस्था अब तक 278 महिलाओं और 620 बच्चों को शारीरिक प्रताड़ना से बचा चुकी है. सोमी अभी महज 37 साल की हैं. अपनी जिंदगी के सबसे महत्वपूर्ण नौ साल वह अपरिपक्वता में गवां चुकी हैं, बावजूद इसके उन्होंने बहुत कम समय में इतना पा लिया है, जितने के लिए एक पूरी जिंदगी भी कम पड़ जाती है. सोमी के मार्फत यही कहा जा सकता है, इस ताबदार दुनिया से दूर जहां और भी हैं.
प्रीति सिंह परिहार