रेलवे में कमाल के साफ्टवेयर

एडवांस टेक्नोलॉजी – 2 दुनिया भर में सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को फिर से विस्तार देने की बात हो रही है, ताकि जीवाश्म ईंधन (कोयला एवं पेट्रोलियम) का सही इस्तेमाल किया जा सके. रेलवे में तकनीक का भरपूर प्रयोग किया जा रहा है, ताकि उनकी दक्षता बढ़े. कई ऐसे सॉफ्टवेयर विकसित किये गये हैं, जिससे ट्रेनों […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 26, 2013 7:14 AM

एडवांस टेक्नोलॉजी – 2

दुनिया भर में सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को फिर से विस्तार देने की बात हो रही है, ताकि जीवाश्म ईंधन (कोयला एवं पेट्रोलियम) का सही इस्तेमाल किया जा सके. रेलवे में तकनीक का भरपूर प्रयोग किया जा रहा है, ताकि उनकी दक्षता बढ़े. कई ऐसे सॉफ्टवेयर विकसित किये गये हैं, जिससे ट्रेनों में ईंधन की खपत न्यूनतम की जा सके.

सेंट्रल डेस्क

रेलवे इंजीनियरों का मानना है कि ब्रेक प्रणाली के ठीक से काम नहीं करने के कारण अधिकतर रेल दुर्घटनाएं होती हैं. पर यही एक मात्र कारण नहीं है. कई बार ड्राइवर के अचानक जोर से ब्रेक लगाने के कारण ट्रेन पटरी से उतर जाती है. ढलान पर, अगर हल्के भार वाले डिब्बे अधिक वजन लदे डिब्बों से आगे लगे होते हैं, तो वे कई बार पटरी से उतर जाते हैं. रेलवे इंजीनियर यह सिद्धांत भलीभांति जानते हैं कि कम वजन लदे डिब्बों को ट्रेन के सबसे पीछे रखा जाना चाहिए. पर व्यवहार में इसका ख्याल रख पाना संभव नहीं हो पाता, क्योंकि मालगाड़ियों के डिब्बों में माल चढ़ता-उतरता रहता है.

यही कारण है कि प्राय: मालगाड़ियों के डिब्बे पटरियों से उतर जाते हैं. लेकिन नयी तकनीक के इस्तेमाल से ट्रेनों के गतिविज्ञान (डायनामिक्स) को बेहतर तरीके से समझा गया है.

डिब्बों का क्रम तय करने में मदद: अब ऐसे सॉफ्टवेयर विकसित कर लिये गये हैं, जो यह बतायेंगे कि किसी खास रूट पर चलते समय मालगाड़ी के डिब्बों में कितना वजन किस क्रम में रखना चाहिए. किसी मैदानी क्षेत्र में सीधी पटरी पर चलती मालगाड़ी खाली डिब्बों के पीछे रखे आठ हजार टन के वजन को सुरक्षित ढो सकती है, पर ढलानवाले या घुमावदार ट्रैक पर यह अधिकतम तीन हजार टन का वजन ढो सकती है. अमेरिका के अटलांटा शहर में टीयूवी रेनलैंड रेल साइंसेज नामक फर्म है जो रेलगाड़ियों को रूट के अनुसार सलाह देती है. एक सॉफ्टवेयर से चलती ट्रेनों में लादे गये वजन को मापा जा सकता है. इस तकनीक में ट्रैक के एक हिस्से में धातु के बने ‘स्ट्रेन गेज’ का इस्तेमाल किया जाता है, जो डाक टिकट के आकार का होता है. जब ट्रेन के दौड़ते पहिये पटरी को हल्का सा भी मोड़ते हैं या दबाव बनाते हैं, तो गेज के विद्युतीय प्रतिरोध में आये बदलाव से डिब्बों के वजन का पता चल जाता है.

वजन से संबंधित आंकड़े को वेब के जरिये तुरंत रेलवे ऑपरेटरों को भेज दिया जाता है, जो ट्रेनों में वजन के हिसाब से डिब्बों को संतुलित करते हैं या फिर उसी हिसाब से डिब्बों पर ब्रेक को एडजस्ट करते हैं. इस तकनीक के इस्तेमाल से अमेरिका और कनाडा में दोषपूर्ण भार वितरण (पुअर वेट डिस्ट्रिब्यूशन) से होने वाली ट्रेन दुर्घटनाओं में जबरदस्त कमी आयी है.

ईंधन की बचत: नयी तकनीक का जोर इस बात पर है कि ईंधन की बचत कैसे की जाये. आमतौर पर यात्री गाड़ियां छोटी और समान भार वितरण के कारण हल्की होती हैं, पर बड़ी मालगाड़ियों में अधिक भार होता है और साथ ही अधिक ईंधन का इस्तेमाल होता है, इसलिए इन ट्रेनों में सॉफ्टवेयर के प्रयोग से ईंधन की बचत की जा सकती है. अमेरिका का एक रेल ऑपरेटर ‘नॉरफॉक साउदर्न’ रूट ऑप्टिमाइजेशन सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करता है. इस सॉफ्टवेयर का नाम ‘लीडर’ है , जो ऑपरेटरों को यह निर्देश देता है कि ट्रेन की गति कितनी होनी चाहिए और ईंधन बचत के लिए कब ब्रेक लगाया जा सकता है. इस सॉफ्टवेयर के प्रयोग से ईंधन खपत में पांच प्रतिशत की कमी देखी गयी है.

एयरोस्पेस इंजीनियरिंग का इस्तेमाल : ट्रेनों में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग के इस्तेमाल से ऊर्जा बचत की तकनीक अपनायी जा रही है. बॉमबार्डियर कंपनी सऊदी अरब की राजधानी रियाद और ब्राजील की राजधानी साओ पोलो में मोनोरेल लाइनों का विकास कर रही है, जो पारंपरिक लाइनों के मुकाबले 25 प्रतिशत हल्की होती हैं. मोनोरेल में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग का कमाल है कि मेट्रो ट्रेन के मुकाबले प्रति यात्री 10 प्रतिशत कम ऊर्जा की खपत होती है.

(द इकोनॉमिस्ट पत्रिका से साभार)

Next Article

Exit mobile version