टैक्सी धोकर खरीदीं चार टैक्सियां
शादी करने के बाद मधुबनी से कोलकाता आयी शीला की कहानी राजेंद्र सिंह कोलकाता:चेक पर अंगूठा लगानेवाली शीला (37) की सच्ची कहानी, किसी फिल्म की पटकथा की तरह लगती है. टैक्सी धोने से लेकर चार टैक्सियों की मालकिन बनने तक का उनका सफर है ही कुछ ऐसा. 13 वर्ष की उम्र में शादी हुई. शादी […]
शादी करने के बाद मधुबनी से कोलकाता आयी शीला की कहानी
राजेंद्र सिंह
कोलकाता:चेक पर अंगूठा लगानेवाली शीला (37) की सच्ची कहानी, किसी फिल्म की पटकथा की तरह लगती है. टैक्सी धोने से लेकर चार टैक्सियों की मालकिन बनने तक का उनका सफर है ही कुछ ऐसा. 13 वर्ष की उम्र में शादी हुई. शादी के बाद मधुबनी से पति के साथ कोलकाता (कादापाड़ा) पहुंचीं. यहां आकर उन्हें अपने सपनों का महल ढहता हुआ लगा.
शीला बताती हैं– पति (बाबू लाल कामथ) पेशे से ड्राइवर थे. वह काम कम करते और शराब ज्यादा पीते थे. जुआ खेलते थे. आये दिन मुझे बेवजह मारते थे. गालियां देते थे. कभी काम पर जाते थे तो कभी काम से नदारद. कई बार बच्चों को भूखा ही सोना पड़ा था. पर इससे मेरे पति को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था. यह सिलसिला खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था. मैं बेबस थी, कभी घर के बाहर कदम नहीं रखा था. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं. लेकिन मन में था कि कुछ करना होगा, नहीं तो बच्चे भूखे ही मर जायेंगे.
शीला ने अंतत: घर की दहलीज लांघने का फैसला कर लिया. वह बताती हैं– सबसे पहले चाय की दुकान पर काम करना शुरू किया. यहां कम पैसे मिलते थे. इससे परिवार को दो वक्त की रोटी देना मुश्किल था. कुछ महीनों के बाद मैंने टैक्सी धोना शुरू कर दिया. एक टैक्सी धोने पर पांच रुपये मिलते थे. उन दिनों ये पांच रुपये मेरे लिए पांच लाख के बराबर थे. इसके बाद मैंने न दिन देखा न रात, बस टैक्सियां धोने लगी. बस यही लक्ष्य रहता था कि ज्यादा से ज्यादा टैक्सियां धो लूं, जिससे मेरे बच्चों को भरपेट खाना मिल सके. इस लक्ष्य में मैं कामयाब हो गयी.
शीला बताती हैं– परिवार का पेट भरने लगा. अब बच्चों के भविष्य को लेकर मैं चितिंत थी. मन में इच्छा जगी क्यों न टैक्सी ली जाये. फिर मैंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. पेट में बच्च लेकर भी मैं टैक्सियां धोती रही. मैंने हार नहीं मानी. दिन–रात एक कर दिया. कई सालों की कड़ी मेहनत रंग लायी. मैंने एक टैक्सी खरीदी. धीरे–धीरे एक टैक्सी से चार टैक्सियां खरीदीं. इस बीच मेरे पति का देहांत हो गया. तब तक हमारे पांच बच्चे हो चुके थे. एक बेटा भी मुझे छोड़ कर इस दुनिया से चला गया. इस दौरान मुझे दो टैक्सियां बेचनी पड़ीं. पर मैंने हार नहीं मानी. आज भी मैं टैक्सी धोती हूं. कारोबार बढ़ाना है, ताकि मेरे बच्चों का भविष्य उज्जवल हो.