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मंत्रियों को मलाई चाहिए

।। अनुज कुमार सिन्हा ।। लंबे इंतजार के बाद झारखंड में कैबिनेट का विस्तार हुआ. तीन मंत्रियों का नाम तय करने में कांग्रेस को एक माह लग गये. किसी को जल्दबाजी नहीं दिखी. राज्य का काम प्रभावित होता रहा. एक का नाम सामने आता तो दूसरा कटवाने में लग जाता.कांग्रेस के सीनियर नेता बयान देते […]

।। अनुज कुमार सिन्हा ।।

लंबे इंतजार के बाद झारखंड में कैबिनेट का विस्तार हुआ. तीन मंत्रियों का नाम तय करने में कांग्रेस को एक माह लग गये. किसी को जल्दबाजी नहीं दिखी. राज्य का काम प्रभावित होता रहा. एक का नाम सामने आता तो दूसरा कटवाने में लग जाता.कांग्रेस के सीनियर नेता बयान देते रहे कि जिन पर आरोप हो, उसे मंत्री बनायेंगे. कांग्रेस खोजती रह गयी. ऐसा नाम नहीं मिला. कांग्रेस में ऐसे लोग थे पर उनकी पैरवी थी. वे बेचारे थे. जिनकी पैरवी थी, जिन्होंने दबाव बनाया, जिन्होंने हड़काया या दरबार लगाया, वे मंत्री बन गये. उसके बाद नया नाटक शुरू हुआ.

चंद्रशेखर दुबे तो शांत रहे पर नयेनये मंत्री मन्नान मल्लिक और योगेंद्र साव ने पैंतरा दिखाना शुरू कर दिया. पहले मंत्री बनने की ललक थी. जब बन गये, शपथ ले ली तो मनचाहा विभाग के लिए अड़ गये. मन्नान मल्लिक को पशुपालन, आपदा प्रबंधन विभाग मिला जबकि योगेंद्र साव को कृषि विभाग मिला. मन्नान दूसरा विभाग चाहते हैं.

योगेंद्र साव का पेट सिर्फ कृषि विभाग से नहीं भरा. वे वन एवं पर्यावरण, पथ निर्माण या भू राजस्व विभाग चाहते हैं. इन विभागों का बजट ज्यादा है. इन मंत्रियों को जानना चाहिए कि मुख्यमंत्री जिसे चाहें,जो विभाग चाहें, बांट सकते हैं. यह उनका विशेषाधिकार है.

अगर ये मंत्री सरकार गिराने या कोई और धमकी देते हैं तो इसे मुख्यमंत्री को ब्लैकमेल करना ही माना जायेगा. ऐसे में कोई भी मुख्यमंत्री कैसे काम कर सकता है. गंठबंधन सरकार ऐसे नहीं चल सकती. सवाल यह उठता है कि किसी खास मंत्री को कोई खास विभाग क्यों चाहिए? संदेश तो यही जाता है कि ज्यादा बजट वाला विभाग मिलेगा तो ज्यादा कमाई होगी. क्या मंत्री बन रहे हैं काम करने के लिए या पैसा कमाने के लिए? अगर किसी खास विभाग चाहिए तो कारण भी उन्हें बताना होगा.

क्यों चाहते हैं आप खास विभाग? क्या उस विभाग के आप विशेषज्ञ हैं जो कायाकल्प कर देंगे. जो पहली बार मंत्री बने हैं उनमें तो काम करने का जज्बा और ज्यादा होना चाहिए. काम बेहतर करेंगे तो फिर उन्हें मौका मिल सकता है. बेईमानी करेंगे तो जनता अगले चुनाव में रास्ते पर ला देगी. फिर विधायक होंगे मंत्री. इसलिए किस्मत को धन्यवाद देते हुए काम करें.

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. राज्य बनने के बाद से ही कुछ मंत्री मनचाहा विभाग के लिए नौटंकी करते रहे हैं. कई बार विवश होकर मुख्यमंत्री को झुकना भी पड़ा है. सत्ता बचाने के लिए. आज झारखंड उसी का परिणाम झेल रहा है. मंत्री बन गये, विभाग पसंद नहीं है तो इस्तीफा दे दीजिए. जगह लेने के लिए दूसरे तैयार बैठे हैं.

कांग्रेस के शीर्ष नेताओं को निगाह भी इस पर होनी चाहिए कि उसके मंत्री कैसा आचरण कर रहे हैं. एक तो मंत्रियों को चयन को लेकर खुद कांग्रेसी नेताओं में बहस चल रही है. वैसे में अगर ये मंत्री काम की जगह ऐसी ही करतूत करते रहें तो कांग्रेस का बंटाधार तय है. मुख्यमंत्री या फिर कांग्रेस नेतृत्व थोड़ा कड़ा रूख अपनाये तो ये मंत्री गीदड़भभकी देने की बजाय रास्ते पर जायेंगे.

झारखंड में कोई सुबोधकांत से पैरवी करवा कर मंत्री बना है तो कोई प्रदीप बलमुचु की पैरवी से. यहां तक तो ठीक है पर अगर पानी सिर से बहने लगे तो सुबोधकांत या बलमुचु इन मंत्रियों के साथ खड़ा नहीं रहेंगे. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भले ही झारखंड मुक्ति मोरचा के हों पर साझा सरकार है और इसे चलाने की जिम्मेवारी सभी की है.

मंत्रियों को बजट की राशि देख कर लार नहीं टपकाना चाहिए बल्कि जो विभाग मिले, उसमें काम कर इतिहास रचने का प्रयास करना चाहिए. वैसे भी झारखंड में बजट लैप्स कर जाता है, पर काम नहीं होता. इसलिए झारखंड के लिए बेहतर है कि मंत्री अपने काम में लग जायें कि सरकार को अस्थिर करने में.

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