कठिनाइयों का सामना
उन्होंने एक फेसबुक पेज बनाया है, ‘क्लीन इंदौर ’. कृष्णा जब अपने प्रोजेक्ट को लेकर स्कूलों में बात करने गयीं, तो पहले तीन–चार स्कूलों में तो उनके प्रोजेक्ट को मजाक समझा गया. हालांकि अब उनका अभियान इतना लोकिप्रय हो चुका है कि उन्हें ढेर सारे फेसबुक मैसेज मिल रहे हैं.
न्यूयॉर्क में रहनेवाली एक 17 साल की प्रवासी भारतीय ने भारत में सफाई अभियान चला कर एक आदर्श प्रस्तुत किया है. कृष्णा कोठारी कई मायनों में खास किशोरी हैं. उन्होंने इंदौर को साफ और सुंदर बनाने का अभियान चला रखा है. वे इस अभियान के लिए खास अंतराल पर नियमित रूप से भारत आती हैं.
यह सब कैसे शुरू हुआ, इस सवाल पर कृष्णा बताती हैं कि वे जब भी भारत आती थी, बीमार पड़ जाती थी. कई दिनों तक बिस्तर से बाहर नहीं निकल पाती थी. मन में ये सवाल आया कि आखिर भारत आने पर ही उनके साथ ऐसा क्यों होता है. क्योंकि वे कोरिया और जापान भी जाती रहती हैं, पर वहां वे कभी बीमार नहीं पड़ीं.
सफाई की कमी
कृष्णा जब 11 वर्ष की उम्र में ताजमहल घूमने आयी थी, तब से एक बात जो उनके जेहन में अब तक बसी है, वह है बाहर निकलते समय गंदगी और बदबू से सामना. कृष्णा बताती हैं, ताजमहल देखने के बाद बाहर निकलते ही पर्यटकों को बदबू का सामना करना पड़ता है. सड़ी–गली सब्जियां, कहीं कोने में मरे हुए कुत्ते, कूड़ों का ढेर पड़ा रहता है. पूरी दुनिया से लोग ताजमहल देखने आते हैं, मगर उस खूबसूरत अहसास से रू–ब–रू होने से पहले ही उन्हें गंदगी और बदबू भरी जगहों से गुजरना पड़ता है.
बड़ी चुनौती थी
इंदौर की साफ–सफाई से संबंधित प्रोजेक्ट शुरू करने से पहले कृष्णा को भरोसा नहीं था कि वह यहां के लोगों के रहन–सहन के तरीके में बदलाव ला पायेंगी. उन्हें कृष्णा ने इसे बड़ी चुनौती माना. आज कृष्णा को गर्व है कि उन्होंने इसकी पहल की. कड़ी कठिनाई के बाद उन्हें सफलता मिल रही है.
वीडियो प्रस्तुति
कृष्णा कहती हैं कि यहां के लोग वायदे तो बहुत करते हैं, मगर उन्हें पूरा नहीं करते. यह सबसे गंभीर समस्या है. कृष्णा पिछले तीन गरमियों से प्रोजेक्ट की वीडियो प्रस्तुति देने के लिए नियमित इंदौर आ रही हैं. यह प्रस्तुति वह स्कूली छात्रों को देती हैं. वह कहती हैं कि, अपनी वीडियो प्रस्तुति के जरिये मैं दो बातें बताती हूं. पहली, लोगों को गंदगी के खतरों के बारे में आगाह करती हूं. और, दूसरे देशों ने इस समस्या से निबटने के लिए क्या किया है, उसकी जानकारी देती हूं. मेरे पास एक एप्लीकेशन भी है, जिसमें यह सुविधा है कि, जो इस अभियान के मेंबर हैं वे इंदौर की अलग–अलग जगहों से रिपोर्ट कर सकते हैं. इससे फायदा यह होता है कि हम ऑनलाइन यह देख सकते हैं कि इंदौर शहर का कौन सा इलाका गंदा है और कौन साफ है.
सरकारी स्कूल के बच्चे आगे आये
कृष्णा जब अपना प्रोजेक्ट लेकर सरकारी और प्राइवेट स्कूलों में गयीं ,तो उन्हें अलग–अलग प्रतिक्रि या मिली. वे बताती हैं, सरकारी स्कूलों के ज्यादातर बच्चे झुग्गी–झोंपिड़यों से आते हैं. वे मेरे अभियान के प्रति ज्यादा उत्साहित हैं. उनके सवालों से लगता है कि वे सच में कुछ करना चाहते हैं. दूसरी ओर निजी स्कूलों का रवैया इस मामले में ठंडा रहा.
(बीबीसी से साभार)