बंद करें अपने दिमाग में नकारात्मक फिल्में बनाना

* दक्षा वैदकरकई लोगों की आंखों में मानो प्रोजेक्टर लगा होता है. उन्हें बस कुछ बोल दो, उसके बाद उनकी आंखों के सामने फिल्म शुरू हो जाती है. इसी फिल्म के अंदर वे कहानी भी बना लेते हैं और निर्णय भी ले लेते हैं. अक्षय को बॉस ने केबिन में बुला कर डांटा, ‘यार तुम […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 16, 2013 1:34 PM

* दक्षा वैदकर
कई लोगों की आंखों में मानो प्रोजेक्टर लगा होता है. उन्हें बस कुछ बोल दो, उसके बाद उनकी आंखों के सामने फिल्म शुरू हो जाती है. इसी फिल्म के अंदर वे कहानी भी बना लेते हैं और निर्णय भी ले लेते हैं. अक्षय को बॉस ने केबिन में बुला कर डांटा, ‘यार तुम कितने बड़े बेवकूफ हो. एक काम तुम्हें ढंग से नहीं आता. पता नहीं तुमने कॉलेज में टॉप कैसे कर लिया.

तुम अभी मेरी आंखों के सामने से चले जाओ.. मैं खुद कर लूंगा सारे काम.’ बॉस के इतना कहते ही अक्षय बाहर आया और अपने हाथों की अंगुलियां तनाव से चटकाने लगा. उसके चेहरे पर पसीना आ गया. अपनी सीट पर बैठ कर उसने सोचना शुरू कर दिया, ‘बॉस तो बहुत गुस्से में हैं. वो आजकल मुझसे ऐसा अजीब ही व्यवहार कर रहे हैं. बाकी सब से तो अच्छे-से बात कर रहे हैं, बस मुझे छोड़ कर. शायद 15-20 दिन पहले मैंने अजीत को बॉस के बारे में कुछ कहा था, वो अजीत ने बॉस को बता दिया होगा. यह डांट उसी का असर है.

बॉस मुझसे नफरत करने लगे हैं. हो सकता है कि वे मुझे निकालने की प्लानिंग कर रहे हो. इसलिए अब मेरे हर काम में गलतियां निकाल रहे हैं, ताकि निकालने में आसानी हो. हे भगवान, अब मुझे दूसरी नौकरी तलाशनी होगी..’

अक्षय की तरह ऐसे कई लोग हैं, जो अपने आप दिमाग में फिल्म बना लेते हैं और बेवजह का तनाव ले लेते हैं. वे इस डांट को दूसरे तरह से नहीं देख पाते. वे यह क्यों नहीं सोचते कि बॉस गुस्से में थे और मुझसे गलती हो गयी इसलिए मुझे डांटा गया है. इसके पीछे कोई बड़ी साजिश नहीं छिपी है. यह गुस्सा पल भर का है. अगले दिन बॉस फिर नॉर्मल हो जायेंगे.

इस सारी समस्या की जड़ है हमारा नकारात्मक तरीके से सोचना और चीजों को बढ़ा-चढ़ा कर देखना. लोगों के स्टेटमेंट को हम बहुत गंभीरता से ले लेते हैं और खुद के गुणों पर शक करने लगते हैं. लोग कह देते हैं कि तुम बेवकूफ हो.. और हम यह सच मानने लगते हैं. मानो सामनेवाला भगवान हो गया और उसका कहा सार्वभौमिक सत्य है. इस तरह का एटीट्यूड हमें जिंदगी भर तनाव में रखेगा. बेहतर है दूसरों के वाक्यों को ज्यादा गंभीरता से न लें. इसको उनका क्षणिक गुस्सा ही समझें.

– बात पते की
* लोगों की गुस्से में कहीं ऐसी बातों को अगर आप बार-बार दिल से लगा लेंगे, तो दिल व दिमाग की बीमारियां आपको जल्द ही घेर लेंगी.
* लोगों द्वारा दिये गये लेबल्स, जैसे बेवकूफ, मूर्ख, बदसूरत.. आदि को सार्वभौमिक सत्य या ब्रह्मवाक्य न समझें. खुद पर भरोसा हिलने न दें.

Next Article

Exit mobile version