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जनता परिवार महाविलय: अब बदल जायेगा बिहार का सामाजिक-राजनीतिक चेहरा

राज्य में सत्तारूढ़ जदयू और राजद के विलय के बाद सामाजिक-राजनीतिक समीकरण भी बदल जायेगा. इसी बदले समीकरण पर खड़ा होकर नया दल भाजपा की गाड़ी को बिहार में बेपटरी कर देने का दावा कर रहा है.हालांकि, मंगलवार को पटना में कार्यकर्ता समागम के दौरान भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने दावा किया था कि विधानसभा […]

राज्य में सत्तारूढ़ जदयू और राजद के विलय के बाद सामाजिक-राजनीतिक समीकरण भी बदल जायेगा. इसी बदले समीकरण पर खड़ा होकर नया दल भाजपा की गाड़ी को बिहार में बेपटरी कर देने का दावा कर रहा है.हालांकि, मंगलवार को पटना में कार्यकर्ता समागम के दौरान भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने दावा किया था कि विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार और लालू प्रसाद मिल कर भी शून्य साबित होंगे. लेकिन, विलय के बाद सामाजिक समीकरण को लेकर भाजपा में चिंता भी कम नहीं है. इसकी वजहें बता रहे हैं अजय कुमार
अब नीतीश-लालू के वोट बढ़ जायेंगे
लोकसभा चुनाव में भाजपा, लोजपा और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी को 40 में से 31 सीटें मिली थीं. जहां तक वोट का प्रश्न है, तो भाजपा के हिस्से 29.4 फीसदी, लोजपा के खाते में 6.4 और रालोसपा को 3 फीसदी वोट हासिल हुए थे. इस तरह भाजपा गंठबंधन को कुल मत मिले थे 38.8 फीसदी. इसके उलट जदयू को 15.8 फीसदी और राजद को 20.01 मिले थे. इन दोनों पार्टियों का वोट करीब 35.81 फीसदी हो जाता है.
अगर अकेले भाजपा से तुलना करें, तो उसका वोट 6.41 फीसदी कम हो जाता है. कांग्रेस अगर नये दल के साथ गंठबंधन करती है, तो जनता परिवार के वोट में इजाफा होगा. लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस को 8.5 फीसदी वोट मिले थे. कांग्रेस के वोट को जदयू-राजद के साथ जोड़ दिया जाये, तो यह 44.3 फीसदी हो जाता है. यानी भाजपा गंठबंधन से 5.5 फीसदी ज्यादा वोट.
सामाजिक आधार एक जैसा
जदयू और राजद का सामाजिक आधार एक ही तरह का रहा है. नब्बे के दशक में जो गोलबंदी इन सामाजिक न्याय की जातियों के बीच बनी थी, उसमें 1994 से क्षरण शुरू हुआ था. यह क्षरण 1994 में समता पार्टी के बनने के बाद से शुरू हुआ था. धीरे-धीरे लालू प्रसाद के संग इकट्ठा हुई सामाजिक न्याय की शक्तियों में बिखराव हुआ और लालू प्रसाद की ताकत कमजोर होती गयी. अब जबकि जदयू-राजद का विलय हो चुका है, इनके आधार के बीच एकजुटता कायम होगी. पर, यह समय बतायेगा कि 90 के दशक की तरह सामाजिक न्याय के दायरे में आनेवाली जातियों के बीच वैसी ही गोलबंदी होगी या नहीं?
नीतीश की छवि
नीतीश कुमार की छवि विकासवाले नेता की बनी है. एक ऐसा राजनीतिज्ञ, जिसने सरकार के संचालन से लेकर बिहार की छवि गढ़ने में अपनी खास पहचान कायम की. नीतीश के सामने भाजपा अब तक सीएम पद के लिए कोई चेहरा नहीं पेश कर पायी है. वह नीतीश की काट के लिए नरेंद्र मोदी के नाम का सहारा ले रही है. भाजपा के पास सुशील कुमार मोदी और नंदकिशोर यादव जैसे अनुभवी और नीतीश कुमार के साथ सरकार चलाने वाले नेता हैं. लेकिन, राज्य की राजनीति में नीतीश के साथ भाजपा किस नेता को प्रोजेक्ट करे, इसे लेकर दुविधा है.
सामाजिक आधार और भाजपा
लालू प्रसाद का पुराना एम-वाइ समीकरण बरकरार है. यानी यादव और मुसलिम मतदाताओं का बड़ा हिस्सा उनके साथ है. अति पिछड़ों और मुसलिमों के सामने नीतीश या लालू प्रसाद पहली पसंद हैं. महादलित वोट पर नीतीश कुमार की दावेदारी रही है. लेकिन, जीतन राम मांझी के मैदान में आने के बाद इस वोट बैंक को लेकर कोई भी दावा करने की स्थिति में नहीं है. महादलितों में शामिल 21 जातियों के वोट एकमुश्त किस ओर जायेंगे, इस पर कोई दावा नहीं कर सकता.
नीतीश-लालू के इस सामाजिक आधार के बरअक्स भाजपा के पास वैसा सामाजिक समुच्य नहीं है. यही वजह है कि ऊंची जातियों के पांरपरिक वोट के अलावा वह पिछड़ों, अति पिछड़ों और महादलितों को अपने साथ जोड़ने की मुहिम चला रहा है. भाजपा की ओर से डॉ भीम राव आंबेडकर को अंगीकार करने का अर्थ है कि वह महादलित वोटों को अपने साथ जोड़ना चाहती है.
उपचुनाव में दिखी थी ताकत
लोकसभा चुनाव में हार के बाद जब बिहार विधानसभा की 10 सीटों पर उपचुनाव हुए, तो जदयू, राजद और कांग्रेस के बीच गंठबंधन कायम हो गया था. इनमें से छह सीटों पर, जबकि भाजपा ने चार सीटों पर जीत हासिल की थी. खास बात यह रही कि खगड़िया जिले की परबत्ता सीट पर जदयू उम्मीदवार की जीत हुई थी. इस सीट पर भूमिहार और यादव मतदाताओं ने नीतीश-लालू के उम्मीदवार को समर्थन दिया था. यह इस बात का भी संकेत है कि ऊंची जातियों के वोट पर अकेले भाजपा दावा नहीं कर सकती. उसका एक हिस्सा नीतीश कुमार के साथ खड़ा है.
06 नवंबर, 2014
दिल्ली में समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव के घर पर राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद, जद(एस) के पूर्व पीएम एचडी देवेगौड़ा, जदयू अध्यक्ष शरद यादव, नीतीश कुमार व केसी त्यागी, इनेलोद के दुष्यंत चौटाला, एसजीपी के अध्यक्षकमल मोरारका, सपा के शिवपाल सिंह व रामगोपाल यादव की बैठक हुई, जिसमें केंद्र की भाजपा सरकार के खिलाफ महामोरचा बनाने और सरकार को एकजुट होकर घेरने का फैसला हुआ.
बैठक के बाद नीतीश कुमार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि अभी एकजुट होने का फैसला हुआ है. सब कुछ ठीक रहा, तो एकीकरण का फैसला भी हो सकता है. सशक्त विपक्ष के रूप में दोनों सदनों में मोदी सरकार को काला धन, बेरोजगारी और किसानों के मुद्दे पर घेरा जायेगा.
04 दिसंबर, 2014
भाजपा और कांग्रेस के इतर देश में एक नये गंठबंधन को अमलीजामा पहनाने के लिए समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव के घर जनता परिवार की दूसरी बैठक हुई. इसमें जनता परिवार के छह दलों में विलय के मुद्दे पर चर्चा हुई और विलय की रूपरेखा और नयी पार्टी का एजेंडा तय करने के लिए मुलायम सिंह को अधिकृत किया गया. साथ ही बैठक में 22 दिसंबर को दिल्ली में केंद्र सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ धरना आयोजित करने का निर्णय लिया गया.
22 दिसंबर, 2014
जनता परिवार में शामिल रही छह पार्टियों ने केंद्र सरकार के खिलाफ आयोजित महाधरना में मंच साझा किया. इन पार्टियों ने विभाजनकारी राजनीति के लिए भाजपा को आड़े हाथ लिया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ काले धन के मुद्दे पर झूठ बोलने और अपने चुनावी वादे को पूरा नहीं करने का आरोप लगाया.
सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव, राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद और जदयू नेता नीतीश कुमार ने पुराने पूर्वाग्रहों को भुलाने का आह्वान किया और भाजपा को बाहर का रास्ता दिखा कर भारतीय राजनीति में एक नयी गाथा लिखने का वादा किया. महाधरना में जनता दल (सेक्यूलर) के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौडा, इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के दुष्यंत चौटाला और समाजवादी जनता पार्टी (सजपा) के कमल मोरारका ने भी शिरकत की.
11 फरवरी, 2015
बिहार में अपनी सरकार बनाने के दावे के समर्थन में जदयू नेता नीतीश कुमार ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के सामने अपने 130 समर्थक विधायकों की परेड करायी. सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति से मुलाकात की और बिहार के राज्यपाल केशरी नाथ त्रिपाठी को जल्द निर्णय लेने के लिए निर्देश देने का अनुरोध किया.
राष्ट्रपति ने उन्हें उचित कार्रवाई का भरोसा दिया. बिहार से 130 विधायकों को नोएडा में ठहराने और राष्ट्रपति भवन तक पहुंचाने और उनकी सुरक्षा में सपा की अहम भूमिका थी. इससे भी जनता परिवार के ये दल और करीब आये.
05 अप्रैल, 2015
राजद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की पटना में बैठक हुई, जिसमें विलय के पक्ष में सहमति जतायी गयी और इस संबंध में कोई भी निर्णय लेने के लिए पार्टी अध्यक्ष लालू प्रसाद को अधिकृत किया गया. बैठक के बाद लालू प्रसाद ने एलान किया कि जनता परिवार के छह दलों के विलय का काम पूरा हो चुका है. मुलायम सिंह यादव छहों पार्टियों के मर्जर की घोषणा करेंगे.
08 अप्रैल, 2015
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आवास पर जदयू विधानमंडल दल की बैठक हुई, जिसमें विलय पर सहमति जतायी गयी और इस मामले में आगे निर्णय लेने के लिए पार्टी अध्यक्ष शरद यादव और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को संयुक्त रूप से अधिकृत किया गया.
नीतीश कुमार ने विलय से पहले मंत्रियों और विधायकों को टास्क दिया है.
मंत्रियों को जहां विधायकों की समस्याओं का निदान का टास्क मिला, वहीं विधायकों को क्षेत्र में रहने और सांप्रदायिक सौहार्द बनाये रखने की जिम्मेदारी दी गयी है.
महाविलय से भाजपा की ताकत पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा
सुशील मोदी
जदयू और राजद समेत छह दलों ने विलय की घोषणा कर दी है. बिहार में जदयू और राजद प्रमुख दल हैं जो नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में एक झंडा, एक सिंबल के आधार पर चुनाव मैदान में जायेंगे. प्रभात खबर ने सूबे के पूर्व उपमुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी से विलय के नफा-नुकसान पर बातचीत की.
बिहार में सामाजिक न्याय का सिक्का चलता रहा है. ऐसे में जदयू और राजद समेत छह दलों के विलय से भाजपा की चुनावी रणनीति पर क्या असर पड़ेगा?
सुशील कुमार मोदी : जदयू और राजद के एक होने से भाजपा पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा. लालू प्रसाद सामाजिक न्याय के बड़े नेता थे, लेकिन आज उनकी स्थिति क्या है. वह 24 विधायकों वाली पार्टी में सिमट कर रह गये हैं. लालू प्रसाद की छवि आतंक और भय वाली रही है.
जनता ने उन्हें नकार दिया है. नीतीश कु मार ने भाजपा से गंठबंधन तोड़ अपने सबसे बड़े दुश्मन लालू प्रसाद से हाथ मिला लिया. उन्होंने बिहार के विकास के लिए नहीं बल्कि भाजपा को रोकने के लिए लालू प्रसाद से गंठजोड़ किया. नीतीश राजद और कांग्रेस से हाथ नहीं मिलाते, तो वह विकल्प हो सकते थे, लेकिन 22 महीने से प्रदेश में जिस प्रकार सरकार चल रही है इससे जनता अब बदलाव चाह रही है.
एक ही दल को बार-बार मौका देने का कारण होना चाहिए. यहां की जनता जातीय समीकरण से ऊपर उठ कर वोट करेगी. नीतीश कुमार को अब गवर्नेस नहीं जाति पर वोट चाहिए,लेकिन नयी पीढ़ी को जाति नहीं गवर्नेस की जरूरत है. भाजपा से अलग होने के बाद 22 माह में प्रदेश में क्या काम हुआ है. इस आधार पर लालू और नीतीश के गंठबंधन को वोट मिलेगा.
एक तरफ लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की तरह दमदार नेता और दूसरी ओर भाजपा मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार का नाम तय नहीं कर पा रही है.
सुशील कुमार मोदी : लालू प्रसाद भीड़ जुटाने वाले नेता हैं. नाम बड़ा होने से कुछ नहीं होता. लोकसभा चुनाव में चार पर सिमट गये. जनता बदलाव चाहती है. भाजपा के पास लालू से चार गुना अधिक विधायक और सांसद हैं. यह बात ठीक है कि वह बड़े नेता हैं, लेकिन वह खिसक गये हैं. लोगों ने इन्हें देख लिया है.
लालू की सभाओं में भीड़ तो जुटती है, लेकिन वोट उन्हें नहीं मिलता. नीतीश कुमार की सभा में भीड़ भी नहीं जुटती,वोट तो रही दूर की बात. इसलिए भाजपा को चुनाव जीतने में कोई मुश्किल नहीं होगी. नेतृत्व का कोई मसला नहीं है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की करिश्माई छवि बिहार की जनता को भाजपा के पक्ष में ले जायेगी.
दिल्ली का चुनाव भाजपा हार गयी, बिहार में क्या तैयारी है.
सुशील कुमार मोदी : बिहार में हम पूरी तरह तैयार हैं. केंद्र सरकार ने अपने चंद दिनों में बिहार के लिए जितना काम किया है उससे तसवीर साफ हो गयी है. दिल्ली में भाजपा को ब्रेक लग गयी थी, लेकिन बिहार शानदार रिजल्ट दिलायेगा. नीतीश और लालू जितना अपने को ताकतवर साबित करेंगे,भाजपा का वोट उसी अनुपात में बढ़ेगा.मांझी फैक्टर किस प्रकार काम करेगा.
सुशील कुमार मोदी : पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी का जहां-जहां दौरा हुआ है दलित-महादलित कार्यकर्ताओं का जुटान हुआ है. यह निश्चित है कि विधानसभा के चुनाव में इस वर्ग का वोट राजद और जदयू के गंठबंधन को नहीं मिलेगा. इनके मन में भाजपा के प्रति सहानुभूति है.
संकट के समय में भाजपा मांझी के पक्ष में खड़ी रही. मांझी के पहले रामविलास पासवान के साथ भाजपा खड़ी है. यह लाभ भाजपा को मिलेगा. घटक दलों के साथ बेहतर संबंध है. हम सब मिल कर चुनाव मैदान में जायेंगे और 185 प्लस का लक्ष्य हासिल करेंगे. इसमें महा गंठबंधन कहीं नहीं रहेगा.
महागंठबंधन बिहार में पहनायेगा भाजपा को नथ
अब्दुल बारी सिद्दीकी
जदयू के साथ राजद समेत अन्य दलों के विलय से उत्साहित बिहार विधानसभा में राजद विधायक दल के नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी ने प्रभात खबर से विधानसभा चुनाव में इसके प्रभाव पर बातचीत की.
अभी तो छह दलों का विलय हो रहा है. राष्ट्रीय स्तर पर अन्य पार्टियां भी जो इसमें शामिल होना चाहेंगी, वह भी मिल सकती है. भाजपा का झूठ और फरेब से जो भी दल त्रस्त हैं, वह सब मिल कर एक नये दल में शामिल होंगे. भाजपा अंदर से इस विलय प्रक्रिया से घबरा गयी है.
उनको यह एहसास हो गया है कि दिल्ली के बाद बिहार में उसका कील ठोका जायेगा, ताकि वह बंगाल की ओर फड़फड़ा नहीं सके. विलय की घोषणा के बाद जल्द ही अन्य मसलों को भी सलटा लिया जायेगा. कुछ लोगों को शक है कि सीटों के बंटवारे में खास कर बिहार में जदयू और राजद के बीच टकराव होगा. लेकिन, यह कोई समस्या नहीं है.
जो होगा वह अच्छा ही होगा. जिन लोगों को किसी भी तरह का शंका है, उन्हें यह जान लेना चाहिए कि 1977 में जब जनता पार्टी का गठन हुआ और वह चुनाव में जाने को तैयार हुई तो तत्कालीन सत्ताधारी दल के नेताओं ने इसी प्रकार की आशंकाएं जतायी थी.
यह ठीक है कि चुनाव बाद जो सरकार बनी यह अपने वैचारिक मतभेदों के कारण से अधिक दिनों तक नहीं चल सकी. लेकिन चुनाव के दौरान सीट बंटवारे में कोई विवाद पैदा नहीं हुआ था.
वर्तमान में भाजपा अलोकतांत्रिक कार्यो में संलग्न है. उसके सहयोगी दल और नेता विष वमन में संलिप्त हैं. विलय के बाद परंपरागत मतदाताओं के साथ ही तमाम राष्ट्र भक्तों का वोट नये दल को मिलेगा और यहीं भाजपा को नथ पहनाया जायेगा. दिल्ली के चुनाव के बाद अल्पसंख्यक मतादाताओं की गोलबंदी एक बार फिर यहां भाजपा के खिलाफ दिखेगी.
जिस प्रकार शिवसेना की ओर से मुसलमानों को वोट देने से वंचित करने तथा क्रिश्चियन धर्म को मानने वालों को धमकी दी जा जा रही है और उस पर भाजपा यह कह कर अपना पल्ला झाड़ ले रही है यह बयान उसका नहीं है, इससे राष्ट्र भक्तों में केंद्र की इस सरकार से भय समा गया है. अब छह दलों के महाविलय से यह तबका उसके साथ होगा.
1977
23 जनवरीजनता पार्टी की औपचारिक शुरुआत. इसमें जयप्रकाश नारायण व मोरारजी देसाई के नेतृत्ववाला जनता मोरचा, चौधरी चरण सिंह के नेतृत्ववाला भारतीय लोकदल और भारतीय जनसंघ का विलय हुआ था. भारतीय लोकदल गठन 1974 में सात समाजवादी पार्टियों के विलय के बाद हुआ था. इसमें जॉर्ज फर्नाडीस व राजनारायण जैसे नेता शामिल थे.
1977
18 मई पूर्व रक्षा मंत्री जगजीवन राम, यूपी के सीएम हेमवती नंदन बहुगुणा व ओड़िशा की पूर्व सीएम नंदिनी सत्पथी के नेतृत्व में कांग्रेस से अलग हुआ समूह कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी का जनता पार्टी में विलय हुआ.
1979
जनता पार्टी में पहला बिखराव. चौधरी चरण सिंह जनता पार्टी से अलग होकर जनता पार्टी (सेक्यूलर) बनाया, जो बाद में लोकदल बन गयी. पूर्ववर्ती भारतीय जनसंघ के लोग भी अलग हो गये. चंद्रशेखर बची हुई जनता पार्टी के नेता बने.
1980
पूर्ववर्ती भारतीय जनसंघ के नेताओं ने भारतीय जनता पार्टी का गठन किया.
1988
जेपी के जन्मदिवस पर वीपी सिंह के जन मोरचा, लोकदल और कांग्रेस एस का विलय कर जनता दल का गठन.
1990
चंद्रशेखर व देवीलाल जनता दल से अलग होकर समाजवादी जनता पार्टी (राष्ट्रीय) बनायी.
1992
मुलायम सिंह यादव ने अलग होकर समाजवादी पार्टी बनायी.
1994
जॉर्ज फर्नाडीस व नीतीश कुमार जनता दल से अलग होकर समता पार्टी बनायी.
1996
अजीत सिंह ने अलग होकर राष्ट्रीय लोकदल बनाया.
1997
लालू जनता दल से अलग हुए व राजद का गठन किया. रामकृष्ण हेगड़े जनता दल से निकाले जाने पर लोकशक्ति पार्टी बनायी. इसी साल नवीन पटनायक भी अलग होकर बीजू जनता दल का गठन किया
1998
देवीलाल के बेटे ओमप्रकाश चौटाला ने इंडियन नेशनल लोकदल का गठन किया

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