छोटी सी सिलाई मशीन बनी बड़ी पूंजी
महिलाओं का स्वावलंबी बना रहीं उर्मिला मेदिनीनगर : बात 1993 की है, जब पलामू के लेस्लीगंज के बनुआ गांव की उर्मिला देवी की शादी पड़वा के जीतेंद्र मेहता के साथ हुई थी. शादी में उर्मिला को मायके से मात्र एक सिलाई मशीन मिली थी. उस वक्त पति जीतेंद्र मेहता बेरोजगार थे. बच्चे होने के बाद […]
महिलाओं का स्वावलंबी बना रहीं उर्मिला
मेदिनीनगर : बात 1993 की है, जब पलामू के लेस्लीगंज के बनुआ गांव की उर्मिला देवी की शादी पड़वा के जीतेंद्र मेहता के साथ हुई थी. शादी में उर्मिला को मायके से मात्र एक सिलाई मशीन मिली थी. उस वक्त पति जीतेंद्र मेहता बेरोजगार थे. बच्चे होने के बाद उनकी परवरिश का यक्ष प्रश्न सामने आ खड़ा हुआ. उर्मिला ने घर में ही सिलाई-कढ़ाई का काम शुरू किया.
काम आने लगे, तो उसे लगा कि यह और बेहतर हो सकता है. तब उसने मेदिनीनगर में आकर सिलाई-कढ़ाई का विशेष प्रशिक्षण लिया. 1997 में उसे मायके से पिको मशीन भी मिली. सिलाई के बाद वह घर में ही पिको का काम भी करने लगी. धीरे-धीरे सिलाई से ही उसकी आय बढ़ने लगी. आज उसी का प्रतिफल है कि एक मशीन लेकर सिलाई का काम शुरू करनेवाली उर्मिला ने पड़वा में दो साल पूर्व संदेश सहेली सिलाई सेंटर खोला है. आज उर्मिला के पास 13 सिलाई मशीन हैं. सीखने के लिए उसके पास गांव के आसपास के 30 से अधिक महिला और लड़कियां आती हैं.
सातवीं कक्षा पास उर्मिला का कहना है कि महिलाएं आत्मनिर्भर बन सकती हैं, बशर्ते वह अपनी क्षमता पहचानें.उर्मिला कहती हैं कि गांव में जब काम शुरू किया था, तो ताने सुनने को भी मिले थे. लेकिन, आज वैसे लोग भी तारीफ करते हैं और अपने घर की बहू-बेटियों को मेरे जैसा कार्य करने को भी कहते हैं. पति भी उर्मिला के इस कार्य में सहयोग करते हैं.