गरीब के दरवाजे तक पहुंचानी होगी शिक्षा

भारतवर्ष के सभी अनर्थो की जड़ है जनसाधारण की गरीबी. पाश्चात्य देशों के गरीब तो निरे पशु हैं, उनकी तुलना में हमारे यहां के गरीब देवता है. इसलिए हमारे यहां के गरीबों को ऊंचा उठाना अपेक्षाकृत सहज है. अपने निम्न वर्ग के लोगों के प्रति हमारा एकमात्र कर्तव्य है-उनको शिक्षा देना, उन्हें सिखाना कि इस […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 5, 2013 2:05 AM

भारतवर्ष के सभी अनर्थो की जड़ है जनसाधारण की गरीबी. पाश्चात्य देशों के गरीब तो निरे पशु हैं, उनकी तुलना में हमारे यहां के गरीब देवता है. इसलिए हमारे यहां के गरीबों को ऊंचा उठाना अपेक्षाकृत सहज है. अपने निम्न वर्ग के लोगों के प्रति हमारा एकमात्र कर्तव्य है-उनको शिक्षा देना, उन्हें सिखाना कि इस संसार में तुम भी मनुष्य हो, तुम लोग भी प्रयत्न करने पर अपनी सब प्रकार उन्नति कर सकते हो.

अभी वे लोग यह भाव तो खो बैठे हैं. हमारे जनसाधारण और देशी राजाओं के सम्मुख यही एक विस्तृत कार्यक्षेत्र पड़ा हुआ है. अब तक इस दिशा में कुछ भी काम नहीं हुआ. पुरोहिती शक्ति और विदेशी विजेतागण सदियों से उन्हें कुचलते रहे हैं, जिसके फलस्वरूप भारत के गरीब बेचारे यह तक भूल गये हैं कि वे भी मनुष्य हैं. उनमें विचार पैदा करना होगा. उनके चारों ओर दुनिया में क्या हो रहा है, इस संबंध में उनकी आंखें खोलनी होगी, बस फिर वे अपनी मुक्ति स्वयं सिद्ध कर लेंगे.

गरीबों को शिक्षा देने में मुख्य बाधा यह है-मान लीजिए कि महाराज, आपने हर एक गांव में एक नि:शुल्क पाठशाला खोल दी, तो भी इससे कुछ काम नहीं होगा, क्योंकि भारत में गरीबी ऐसी है कि गरीब लड़के पाठशाला में आने की बजाय खेतों में अपने माता-पिता को मदद देना या दूसरे किसी उपाय से रोटी कमाने का प्रयत्न करना अधिक पसंद करेंगे. इसलिए यदि पहाड़ मुहम्मद के पास न आये, तो मुहम्मद ही पहाड़ के पास क्यों न जाये? यदि गरीब लड़का शिक्षा के मंदिर तक न आ सके तो शिक्षा को उसके पास जाना चाहिए.

हमारे देश में हजारों एक निष्ठ और त्यागी साधु हैं, जो गांव-गांव धर्म की शिक्षा देते फिरते हैं. यदि उनमें से कुछ लोगों को ऐहिक विषयों में भी प्रशिक्षित किया जाये, तो गांव-गांव, दरवाजे-दरवाजे जाकर वे केवल धर्मशिक्षा ही नहीं देंगे, बल्कि ऐहिक शिक्षा भी देंगे. कल्पना करें कि इनमें से एक-दो शाम को साथ में एक मैजिक लैन्टर्न (जादुई लालटेन), एक ग्लोब और कुछ नक्शे लेकर किसी गांव में जायें. इसकी सहायता से वे अपढ़ लोगों को बहुत कुछ गणित, ज्योतिष और भूगोल सिखा सकते हैं. विभिन्न राष्ट्रों के बारे में समाचार दे सकते हैं. जितनी जानकारी वे गरीब जीवन भर पुस्तकें पढ़ने से न पा सकेंगे, उससे कहीं अधिक सौगुनी अधिक वे बातचीत द्वारा पा सकेंगे. (23 जून 1894 को शिकागो से मैसूर के महाराजा को विवेकानंद द्वारा भेजे गये पत्र का अंश)

Next Article

Exit mobile version