‘धरती के स्वर्ग’ में बनायी पहचान
एंटरप्रेन्योर : नुसरत जहां जहां लड़कियों का घर से निकलना ही अच्छा नहीं माना जाता, वहां नुसरत जहां के परिवार ने उन्हें अपना व्यवसाय करने की अनुमति दी. उनकी नजर में परिवार के इस नजरिये ने ही उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा दी.. धरती का स्वर्ग के रूप में प्रसिद्ध कश्मीर आज महिलाओं को ऊंची […]
एंटरप्रेन्योर : नुसरत जहां
जहां लड़कियों का घर से निकलना ही अच्छा नहीं माना जाता, वहां नुसरत जहां के परिवार ने उन्हें अपना व्यवसाय करने की अनुमति दी. उनकी नजर में परिवार के इस नजरिये ने ही उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा दी..
धरती का स्वर्ग के रूप में प्रसिद्ध कश्मीर आज महिलाओं को ऊंची उड़ान देने के लिए काम कर रहा है. जम्मू एंड कश्मीर (जे एंड के) स्टेट वुमेंस डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (डब्ल्यूडीसी) ने 2010 में इम्पावरिंग स्किल्ड यंग वुमेन स्कीम की शुरुआत की. इसके माध्यम से वे कश्मीर घाटी की महिलाओं को अपना व्यवसाय करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. ऐसा नहीं है कि इसके पहले वहां की किसी महिला ने अपना वेंचर चलाने का प्रत्यन नहीं किया. इसका एक जीवंत उदाहरण हैं नुसरत जहां, जो फूलों का काम करती हैं.
कौन हैं नुसरत जहां
नुसरत जहां कश्मीर के दाडोरा की महिला हैं, जिन्होंने 1998 में इग्नू से कं प्यूटर्स में स्नातक किया. इसके बाद जम्मू और कश्मीर शहरी विकास विभाग में कम्युनिटी ऑर्गनाइजर की नौकरी की. नुसरत वह जिंदगी जी रही थीं, जिसके लिए घाटी की महिलाएं तरसती हैं. पर नुसरत की जिंदगी यहीं रुकनेवाली नहीं थी, क्योंकि उनके सपने तो कुछ और ही थे.
उनके पिता छोटी सी इलेक्ट्रॉनिक की दुकान चलाते थे. उनको देख कर नुसरत ने पहले से ही अपना व्यवसाय करने के बारे में सोच रखा था. एक इंटरव्यू के दौरान नुसरत कहती हैं कि कश्मीर में पढ़ी-लिखी लड़कियां सरकारी एजेंसियों, छोटी कंपनियों या बुटीक और पार्लर में काम करती हैं. कोई महिला अपना खुद का कोई वेंचर शुरू करना चाहे, ऐसा बहुत कम ही होता है. साथ ही समाज में इसे सहजता से स्वीकार भी नहीं किया जाता है.
क्या है व्यवसाय और कहां से मिली प्रेरणा
नुसरत एक पढ़े-लिखे परिवार से संबंध रखती हैं. इसलिए जब उन्होंने 2000 में अपनी नौकरी छोड़ने का मन बनाया, तो उन्हें अपने परिवार का सहयोग मिला. इसके बाद उन्होंने पेटल्स एग्रीटेक प्राइवेट लिमिटेड की शुरुआत की. एक साक्षात्कार के दौरान नुसरत कहती हैं, ‘मेरी पढ़ाई कंप्यूटर्स से संबंधित थी, पर स्थानीय स्थितियां, संस्कृति और मौसम के हिसाब से फूलों की ओर मुड़ना ही मुङो बेहतर लगा. कुछ दशक पहले तक कश्मीर घाटी में कॉमर्शियल फ्लोरीकल्चर का काम करनेवाले लोग बहुत कम थे. साथ ही इस क्षेत्र में काम करने की काफी संभावनाएं थी. मैंने वर्ष 2000 के अंत में एक होटल में किराये पर एक छोटी सी जगह ली और ताजे फूलों की प्रदर्शनी-कम सेल लगायी.
उसमें दिल्ली के एक सप्लायर ने 40 हजार के फूल खरीदे.’ राज्य में ताजे फूलों को बेचने का यह आइडिया कारगर रहा. इसके बाद कई सरकारी एजेंसियों ने उनसे संपर्क किया. 2001 में जम्मू और कश्मीर बैंक ने अपने सभी कार्यक्रमों में फूल देने के लिए एक लाख रुपये का कांट्रैक्ट दिया. यही उनकी सबसे पहली उपलब्धि थी. अब उन्होंने फूलों की खेती भी करनी शुरू कर दी. वर्ष 2008 के अंत से उन्होंने मांग में रहनेवाली सब्जियों, मसालों और जड़ी-बूटी की खेती भी शुरू कर दी.