20 सालों से नदी तैर कर जाते हैं स्कूल
शिक्षक दिवस बीत गया. चर्चा हुई कि कैसे शिक्षा पठन-पाठन से दूर व्यवसाय का रूप लेती जा रही है. इन सबके बीच केरल के मल्लापुरम के रहने वाले अब्दुल मलिक एक मिसाल हैं, जो पिछले 20 सालों से नदी तैर कर समय पर पहुंचते हैं स्कूल. ।।केरल में स्कूल शिक्षक हैं अब्दुल मलिक।।-सेंट्रल डेस्क- अब्दुल […]
शिक्षक दिवस बीत गया. चर्चा हुई कि कैसे शिक्षा पठन-पाठन से दूर व्यवसाय का रूप लेती जा रही है. इन सबके बीच केरल के मल्लापुरम के रहने वाले अब्दुल मलिक एक मिसाल हैं, जो पिछले 20 सालों से नदी तैर कर समय पर पहुंचते हैं स्कूल.
।।केरल में स्कूल शिक्षक हैं अब्दुल मलिक।।
-सेंट्रल डेस्क-
अब्दुल मलिक मल्लापुरम के पादिनजाततुमुरी स्थित मुसलिम लोअर प्राइमरी स्कूल में गणित के शिक्षक हैं. उनके घर से स्कूल की दूरी महज एक किमी है. पर रास्ते में कादालुंडी नदी पड़ती है. अगर सड़क से स्कूल जाते हैं, तो दो जगहों पर बस बदलनी पड़ती है और फिर स्कूल तक पहुंचने के लिए दो किमी तक पैदल चलना पड़ता है.
इस तरह पूरी यात्रा में एक से डेढ़ घंटे का वक्त लग जाता है और 30 रुपये भी. अब्दुल मलिक ने 1992 में स्कूल ज्वाइन किया था. इसके बाद वह अगले एक साल तक सड़क के रास्ते बस से आते-जाते रहे. एक बार उनके एक सहकर्मी ने सलाह दी कि यदि नदी को पार कर लिया जाये, तो महज दस मिनट में ही स्कूल तक पहुंचा जा सकता है.अब्दुल मलिक ने तय कर लिया कि वह तैर कर स्कूल जायेंगे. 20 साल बीत चुके हैं और आज भी मलिक तैर कर स्कूल जाते हैं.
शिक्षा के लिए यह सब
मलिक जब बस से स्कूल जाते थे, तब प्राय: लेट हो जाते थे. इससे उन्हें प्रधानाचार्य की झिडकी खाने को मिलती थी. जब मलिक ने नदी तैर कर स्कूल जाना शुरू किया, तब वह समय पर स्कूल पहुंचने लगे. हड़ताल हो या बंदी, अगर स्कूल खुली है, तो वह समय पर स्कूल में मिलेंगे.
मन को मजबूत किया: जब मलिक ने नदी तैर कर जाना शुरू किया, तो सभी उनका मजाक उड़ाते थे. उनके घर-परिवार के लोगों और दोस्तों ने उन्हें बस से जाने की सलाह दी, पर मलिक धुन के पक्के थे. वह बिना किसी की बातों का ध्यान देते हुए अपने काम में लगे रहे. मलिक कहते हैं इतने वर्षो से नियमित रूप से तैरने के कारण उनका स्वास्थ्य बेहतर रहा है. विरोध करने वाले उनके घर के लोग ही अब उनकी मिसाल देते हैं. मलिक ने तब भी तैरना नहीं छोड़ा, जब नदी बाढ़ से उफन रही होती है.
गाड़ी की चाहत नहीं : मलिक की टू व्हीलर खरीदने की कोई इच्छा नहीं है. हालांकि वह 40 साल के हो चुके हैं, पर फिर भी वह अपना स्वास्थ्य ठीक रखने के लिए तैरना छोड़ना नहीं चाहते. वह अपने स्कूल के बच्चों को भी तैरने का लाभ बताते हैं.
टय़ूब से पार करते हैं नदी
जून से दिसंबर तक कादालुंडी नदी में बहुत पानी होता है. आमतौर यह 50 मीटर तक चौड़ी होती है, पर बाढ़ के दिनों में इसका काफी विस्तार हो जाता है. इसके बावजूद मलिक हर दिन (छुट्टी छोड़ कर ) टायर के टय़ूब के सहारे नदी को पार करते हैं. घर से वह धोती-कुरता में निकलते हैं. नदी के किनारे पहुंचने पर वह अपने कपड़े और लंच बॉक्स एक प्लास्टिक के थैले में रख लेते हैं. फिर एक तौलिया लपेट कर टय़ूब में उतरते हैं. फिर एक हाथ से थैला और दूसरे हाथ से पानी की धार को काटते जाते हैं. इस तरह वह दस मिनट में स्कूल पहुंच जाते हैं.