शंघाई : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संघाई वर्ल्ड एक्सपो एण्ड एक्जिविशन सेंटर में भारतीय मूल के लोगों को संबोधित करते हुए कहा है मेरा बायोडाटा देखकर भारत की जनता ने मुझे प्रधानमंत्री नही बनाया है. देश के विकास के लिए वहां की जनता ने अपनी सूझ-बूझ का प्रदर्शन किया और मुझे सेवा का अवसर दिया है. मोदी ने कहा कि भारत की जनता और संविधान की शक्ति है कि मुझ जैसे चाय बेचने वाले को प्रधानमंत्री के रूप में देश की सेवा का अवसर मिला है.
उन्होंने कहा कि यह इस बात का उदाहरण ह कि एक गरीब का बेटा भी अगर समाज के लिए समर्पण का भाव लिये निकल पड़ता है तो देश की जनता जनार्दन उसे अपना आशीर्वाद देती है. विदेशों में बसे भारतीय लोग भी अपने देश से प्यार करते हैं इसपर मोदी ने कहा कि यहां चीन में बसे हजारो भारतीय एक साल पहले आज ही के दिन चुनाव के नतीजों को बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. ये भी तो देशप्रेम ही है.
उन्होंने पिछले एक साल में सरकार की उपलब्धि को दिखाने के लिहाज से पूछा कि आप सब विदेशों में रहते हैं, पहले हिंदुस्तानी समझ कर कोई आपको पूछने को तैयार नहीं था, कोई सुनने को, देखने को तैयार नहीं था. एक साल के भीतर-भीतर आप सीना तानकर, आंख से आंख मिलाकर दुनिया से बातचीत कर सकते हो कि नहीं. नरेंद्र मोदी ने कहा कि जनता ईश्वर का रूप होता है. जनता के पास एक तीसरा नेत्र होता है, हिंदुस्तान के करोड़ो लोगों ने एक सामूहिक संकल्प का परिचय दिया और सवा सौ करोड़ भारतीय अपना भाग्य बदलने के लिए कृतसंकल्प हो गये और जाकर पोलिंग बूथ में बटन दबाकर इतना बड़ा फैसला किया.
प्रधानमंत्री ने कहा कि चुनाव के समय मेरे बारे में कहा जाता था कि मोदी को जानता कौन है? गुजरात से बाहर कौन पहचानता है? विदेश के बारे में लोग कहते थे कि विदेश के बारे में मोदी को कोई समझ ही नहीं है? वैसे जो मेरी आलोचना हो रही थी सच थी क्योंकि गुजरात के बाहर मेरा जाना नहीं हो पाता था और भारत के बाहर जाने का तो सवाल ही नहीं था. यह आलोचना सही थी, आशंका सही नहीं थी.
मोदी ने कहा कि राजनेता चीजें भूलने में ज्यादा माहिर होते हैं. लेकिन मैं ना भूलना चाहता हूं और ना ही भूलने देना चाहता हूं. क्योंकि यहीं बातें हैं जो काम करने की प्रेरणा देती हैं, जीवन खपा देने की ताकत देती है. मैंने पहले भी कहा था और आज भी दुहरा रहा हूंकि देश की जनता ने मुझे जो दायित्व दिया है उसके लिए मैं परिश्रम करने में कोई कमी नहीं करुंगा. उन्होंने फिर से पूछा कि मैंने एक दिन भी छुट्टी ली है क्या? ईश्वर से जितनी शक्ति और समय मिला है उसका मैं पूरी ईमानदारी से जनता की सेवा में उपयोग कर रहा हूं.
प्रधानमंत्री ने कहा कि मैने जो पहले कहा था कि मैं नया हूं, सीखने का प्रयास करुंगा, तो मैं आज भी सीखने का प्रयास कर रहा हूं. मैं अपने आलोचकों से भी सीखता हूं. उन्होंने कहा कि अनुभवहीनता के कारण मुझसे कोई गलती हो सकती है लेकिन गलत इरादे से काेई गलत काम नहीं करुंगा. सरकार के एक साल हो गये. कोई भी मुझपर गलत इरादे से किसी काम को करने का आरोप नहीं लगा सकता है.
नरेंद्र मोदी ने कहा कि मैंने सोचा था कि सरकार के एक साल पूरा होने पर मेरे सामने एक लघु भारत हो और उससे बात करूं. आज शंघाई में मेरे सामने बैठे आपलोग एक लघु भारत के समान ही हैं. हर राज्य का एक प्रतिनिधि यहां मौजूद है. आज मैं आपसे आशीर्वाद मांगने आया हूं. आप मुझे आशीर्वाद दें कि भारत की विकास यात्रा के लिए जो कदम हमने उठाया है उसे हम सफलतापूर्वक पूरा करें. मोदी ने कहा कि मुझे आशीर्वाद दें कि मुझसे गलती से भी कोई एेसी गलती ना हो जाये जिससे मेरे देश का कुछ नुकसान हो.
उन्होंने कहा कि वक्त बदल गया है दोस्तों हमारे विकास की गति को देखते हुए दुनिया हमारा अभिवादन कर रही है. कल रविवार को मैं मंगोलिया जा रहा हूं. मुझे इस बात पर गर्व है कि एक भारतीय के स्वागत के लिए मंगोलिया ने रविवार जैसे छुट्टी के दिन भी संसद का सत्र आयोजित किया है और मुझे उसमें बोलने का अवसर मिल रहा है. नरेंद्र मोदी ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का आभार व्यक्त किया कि उन्होंने बीजिंग से बाहर आकर प्रोटोकॉल तोड़कर भारतीय प्रतिनिधिमंडल का स्वागत किया. मोदी ने कहा यह स्वागत केवन मोदी का नहीं भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नहीं हुआ है. यह स्वागत सवा सौ करोड़ भारतीयों का हुआ है.
मोदी ने एक बार फिर चीन और भारत के संबंध को दुनिया के लिए बेहद जरुरी बताते हुए कहा कि चीन और भारत दुनिया की एक तिहाई आबादी निवास करती है. अगर ये दोनों देश एक-दूसरे के साथ मिलकर किसी भी कल्याणकारी योजना पर काम करेंगे तो दुनिया के एक बड़े समूह का भला होगा. मोदी ने कहा कि पहले विकासशील देश का नाम ही अपने में हीन भावना का बोध कराता था. दुनिया के मानचित्र पर विकासशील देशों की कोई पूछ नहीं थी. लेकिन भारत और चीन जैसे विकासशील देशों ने दुनिया के सामने जो मिसाल पेश की आज सभी हमें तरजीह देने लगे.
हमलोग बचपन में जब सुबह उठकर जमीन पर पैर रखते थे तो मां कहती थी कि – सुबह जमीन पर पैर रखते समय पृथ्वी माता से क्षमा मांगनी चाहिए.
आज ग्लोबल वार्मिंग की चर्चा करने वालों को क्या ये पता है कि हमारी रगों में वो भाव है कि पृथ्वी हमारी माता है. ये पृथ्वी मेरी मां है. इसकी रक्षा के लिए जितना दायित्व मेरा अपनी मां के लिए है, उतना ही पृथ्वी माता ले लिए भी है. ये हमें सिखलाया गया है. इतना ही नहीं, हमें ये भी सिखाया गया है कि सिर्फ पृथ्वी ही नहीं पूरा परिवार हमारा परिवार है.
बचपन में हम सबकी मां हमें ये सिखाती थी कि ये जो चांद है, ये तुम्हारा मामा है, ये सूरज तुम्हारा दादा है. पूरा ब्रह्माण्ड तुम्हारा परिवार है. ये कल्पना इस धरती से निकली है, दुनिया को ग्लोबल वार्मिंग से बचाने को प्रकृति से प्रेम करने से उत्तम कोई मार्ग नहीं हो सकता. हमलोग ही हैं, जिन्होंने कहा था कि – Exploitation of nature is a crime यानी प्रकृति का शोषण अपराध है. प्रकृति के दोहन की अनुमति है लेकिन प्रकृति के शोषण की अनुमति नहीं है.
आज विश्व को समस्याओं से मुक्ति दिलाने के लिए हमारे तत्व ज्ञान, संस्कृति की जरुरत है, जिसे हम भूल चुके हैं. एक बार हम अपने उस सामर्थ्य को जान लेंगे, हम उस दिशा में चल पड़ेंगे, शक्ति के साथ चल पड़ेंगे तो पूरी दुनिया को हमारे साथ समेटने का सामर्थ्य हमारे अन्दर पैदा होगा.
भारत आज एक नयी भूमिका की तरफ बढ़ रहा है. इस भूमिका को विश्व स्वीकार करने लगा है. मैं पिछले एक वर्ष में दुनिया के 50 से अधिक महत्वपूर्ण मुखिया नेताओं से मिला हूं. कभी-कभार कम काम करने की आलोचना तो मैं समझ सकता हूं, कोई सोता रहे, काम न करे तो इसकी आलोचना समझ में आती है लेकिन मेरा तो ऐसा दुर्भाग्य है कि मैं ज्यादा काम करता हूं, इसकी आलोचना होती है.
कहा जाता है कि मोदी इतने देशों में क्यों गए ! इतने लोगों से क्यों मिले ! अगर ज्यादा काम करना, ज्यादा शक्ति लगाना, ये गुनाह है तो सवा सौ करोड़ देशवासियों के लिए ये गुनाह करना मुझे मंजूर है क्योंकि मेरा संकल्प है कि मेरे समय का प्रत्येक पल, मेरे शरीर का प्रत्येक कण, सिर्फ और सिर्फ सवा सौ करोड़ देशवासियों के लिए है.
मुझे विश्वास है कि पिछले एक साल में मैंने जो बोया है, इसे खाद-पानी डालने के लिए समय चाहिए था. ऐसे में यही काम अगर मैं पांचवे साल में करता तो लोग क्या कहते – अरे यार, ये तो रहने वाला नहीं है, पता नहीं चुनाव के बाद क्या होगा, कैसा होगा – कौन विश्वास करता !
लेकिन अभी दुनिया मुझ पर ज्यादा विश्वास इसलिए करती है क्योंकि 30 साल बाद आई इस पूर्ण बहुमत की सरकार का ये पहला साल था. तीस साल से भारत में पूर्ण बहुमत की सरकार न होने के कारण दुनिया का भारत पर भरोसा नहीं था.
विश्व को देने के लिए हमारे पास बहुत कुछ है. आतंकवाद जिस प्रकार से मानवता का दुश्मन बना हुआ है, आये दिन निर्दोषों को मौत के घाट उतार दिया जाता है. एक-दूसरे के लहू के लोग प्यासे हुए हैं. विश्व का कोई भू-भाग ऐसा नहीं है, जो आतंकवाद के कारण रक्त-रंजित न हुआ हो.
गोलियों से छलनी विश्व की जनता को मरहम कौन लगाएगा ! इस संकट की घड़ी में जीने का विश्वास कौन देगा ! वही दे सकता है, जिसके पूर्वजों ने – "वसुधैव कुटुम्बकम" का मन्त्र दिया है.
पूरा विश्व एक परिवार है, हम सब भाई हैं. किसी की भाषा भिन्न होगी, किसी की आंख, नाक अलग होगी, किसी की चमड़ी का रंग एक होगा, किसी के बालों का एक रंग होगा लेकिन हम सब भाई हैं.
हजारों साल पहले ही हमारे पूर्वजों ने पूरे विश्व को एक परिवार माना था. ये शक्ति हमारी रगों में है, हमारे डीएनए में है और हम विश्व को इसकी अनुभूति करायें. विश्व को इस संकट से बाहर लाने के लिए हम हम भी उंगली पकड़कर साथ चलेंगे. ये भारत से दुनिया की अपेक्षा है और मैं कहता हूं कि – हिंदुस्तान इसके लिए तैयार हो रहा है.
पूरा विश्व एक चिंता में डूबा हुआ है, सब जगह एक ही चर्चा है – ग्लोबल वार्मिंग, क्लाइमेट चेंज, प्रकृति का संकट… ये स्थिति किसी और ने नहीं बल्कि खुद इंसान ने पैदा की है. इससे मुक्ति भी इंसान ही दिला सकता है और इसके लिए प्रकृति से प्रेम करना पड़ेगा. साड़ी दुनिया में हम लोग ही हैं, जिनको सदियों से ऋषि-मुनियों ने कहा था कि प्रकृति से प्रेम करना चाहिए.
जिन लोगों को ये लगता हो कि मोदी ने एक साल में इतना सारा काम क्यों किया, उनको कहना चाहता हूं कि मोदी ने शरीर से भले ही एक साल में ये काम किया हो लेकिन दरअसल मोदी ने 30 साल के पुराने काम को पूरा करने का प्रयास किया है.
चीन में भी बदलाव आया है. आमतौर पर शासन व्यवस्था में प्रोटोकॉल होता है, कार्यक्रम होते हैं लेकिन कोई देश अपनी युवा पीढ़ी को दूसरे देश के नेता से जब मिलवाता है, तब उसका अर्थ बदल जाता है.
कोई देश अपने देश के राजनेताओं, उद्योगपतियों से मिलवाये इसका एक कारण होता है लेकिन कोई देश अपनी युवा पीढ़ी से किसी को मिलवाता है, इसका ये मतलब हुआ कि उस देश को समझ है कि भविष्य के लिए पूंजीनिवेश कहां करना चाहिए और ये पूंजीनिवेश डॉलर, पाउंड वाला नहीं है. ये पूंजीनिवेश वे अपनी युवा पीढ़ी को तैयार करने के लिए कर रहे हैं. भारत के प्रति उनका नजरिया कैसा हो, ये इसी से तय होगा. इसलिए, चीन में मेरे तीन दिनों के प्रवास में दो विश्वविद्यालयों में जाकर विद्यार्थियों से मिलने का मेरा कार्यक्रम, ये अपने आप में मेरी पूरी यात्रा का सबसे अद्भुत कार्यक्रम मैं मानता हूं, जहां मुझे युवा पीढ़ी से मिलने दिया गया है, बातचीत का अवसर मिला है और मेरा मानना है कि चीन की युवा पीढ़ी अगर भारत को जान ले तो फिर पूछना ही क्या ! कहीं रुकना नहीं पड़ेगा.
मैं इस यात्रा में जब शियान गया, उस कार्यक्रम के पीछे एक विशेषता है. हमलोग बचपन में इतिहास में पढ़ते थे कि ह्वेनसांग नाम का एक फिलोसफर चीन से भारत आया था. भारत भ्रमण पर उसने बहुत कुछ लिखा था.
मेरा जन्म गुजरात के महसाना जिले के वडनगर नाम के गांव में हुआ था. ह्वेनसांग के लेखन में मेरे गांव का जिक्र है, वे वहां जाकर रहे थे. हम सामान्य रूप से सोचते हैं की भगवान बुद्ध भारत के पूर्वी भाग में रहे थे. बिहार और उसके पास के क्षेत्रों में, लेकिन ह्वेनसांग ने लिखा है कि भगवान बुद्ध का प्रभाव पश्चिमी भारत में भी ऐसा ही था, जैसा पूर्वी भारत में था. उन्होंने कहा था कि वडनगर में में बौद्ध भिक्षुओं की शिक्षा-दीक्षा के लिए बड़ा शिक्षण संस्थान था, हजारों बच्चों के रहने के लिए हॉस्टल था.
जब मैं गुजरात का मुख्यमंत्री बना तो मैंने सरकार से कहा कि जरा खुदाई करो. मेरे मन में इच्छा थी कि ह्वेनसांग ने जो लिखा है, उसकी सच्चाई क्या है, पता किया जाये. आश्चर्य है कि मेरे गांव में खुदाई करने से वो सारी चीजें मिलीं, जो ह्वेनसांग ने लिखा था.
फिर जब मैं लोकसभा का चुनाव जीतकर आया और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का मुझे टेलीफोन आया तो उन्होंने टेलीफोन पर इस बात का उल्लेख किया. उन्होंने मेरे और मेरे जन्म स्थान का वर्णन किया, मुझे बड़ा आश्चर्य और आनंद हुआ. बाद में जब वो भारत आये तो उन्हें मेरे गांव जाने की इच्छा थी लेकिन वो मेरे गांव तक तो नहीं जा पाए लेकिन गुजरात आये थे. वहां उन्होंने मुझे फिर से एक और बात बतायी कि – क्या आपको मालूम है ह्वेनसांग आपके गांव में रहने के बाद जब वापस चीन आये तो वो मेरे गांव शियान में आये थे और वहां (शियान में) एक बहुत बड़ा बुद्ध मंदिर बना हुआ है.
कल वो मुझे वहां ले गए थे. वहां उन्होंने मुझे ह्वेनसांग की लिखी हुई पुस्तक दिखाई और उसमे उन्होंने मेरे गांव के बारे में लिखी हुई बात मुझे दिखाई. उस पुस्तक में चीनी भाषा में मेरे गांव का लिखा वर्णन था, जो मुझे दिखाया गया.
दो देशों के मुखिया इतनी आत्मीयता, निकटता और भाईचारे से मिले, ये अपने आप में बहुत बड़ी बात है. ये जो परंपरागत तरीके से वैश्विक संबंधों की चर्चा होती है, उससे प्लस वन (एक अधिक) है. ये +1 समझने के लिए कईयों को अभी समय लगेगा.
मैं मानता हूं कि मानव जाति के कल्याण के लिए चीन और भारत का एक विशेष दायित्व है. इस दायित्व को निभाने के लिए चीन और भारत को कंधे से कंधा मिलाकर चलना होगा.
आपलोग जब यहां नहीं आये थे तब आपकी धारणा भी चीन के विषय में रहन-सहन, खान-पान को लेकर अलग थी. यहां आने के बाद धारणा बदल गयी और मैं मानता हूं कि आपलोग इस काम को बहुत बड़ी सेवा समझकर कर सकते हैं. चीन के लोगों में भारत के प्रति जिज्ञासा है, उत्सुकता है लेकिन उस जिज्ञासा को हकीकत में बदलने का काम नरेंद्र मोदी या यहां का दूतावास या यहां हमारे राजदूत नहीं कर सकते हैं. इस काम को कोई अगर कर सकता है तो मेरे देश का यहां रहने वाला नागरिक कर सकता है. आप भारत का सही चित्र चीनी नागरिक तक पहुंचायें, उसको हमारी शक्ति, सांस्कृतिक विरासत की जानकारी दें. दुनिया को इस बात का आश्चर्य होता है कि आईटी के माध्यम से हमारे नव जवानों ने बड़ा काम किया है.
अभी मार्स मिशन और मंगलयान में भारत के लोगों को जो सफलता मिली है, इसके कारण विश्व हमारी युवा शक्ति और हमारे टैलेंट की तरफ आकर्षित हुआ है. समय की मांग है कि चीन और भारत के लोग एक-दूसरे से संपर्क बढेगा तो हमारी ताकत बढ़ेगी. हमें उस ताकत को जानना और जोड़ना है.
भारत में टूरिज्म की बड़ी संभावना है. दुनिया में अकेले पर्यटन का तीन ख़रब डॉलर का व्यवसाय है. आप यहां रहकर हर साल 5 चीनी नागरिकों को भारत देखने के लिए जोर देकर, धक्का लगाकर भेजें. अकेले आपलोगों की मदद से चीन के नागरिक बड़ी संख्या में भारत आ सकते हैं.
अगर1400 साल पहले आया एक दार्शनिक ह्वेनसांग चीन और भारत को जोड़ सकता है, तो आप हजारों की संख्या में रहने वाले भारतीय यहां से लाखों लोगों को भारत ले जा सकते हैं. इससे भारत का टूरिज्म भी बढेगा, साथ ही चीन में भारत को देखने की एक नयी दृष्टि आएगी.
इक्कीसवीं सदी एशिया की सदी है. वर्ल्ड बैंक, आईएमएफ और तमाम रेटिंग एजेंसियों समेत सारी दुनिया कह रही है कि भारत की विकास दर पिछले एक साल में जिस रफ़्तार से बढ़ी है, उससे भविष्य में भी उसके सबसे ज्यादा होने का अनुमान है. लोगों और दुनिया का भारत के प्रति मनोभाव बदला है.
आखिर 30 साल में चीन कैसे बदला ! रातों-रात नहीं बदला है. तीस साल तक उनकी विकास दर सबसे ज्यादा थी. भारत को भी विकास दर, तकनीक जैसे मामलों में आगे बढ़ना होगा. एक बार जब हम आगे बढ़ जायेंगे तो दुनिया को बहुत कुछ दे पाएंगे. लेकिन जैसे हमारे सपने हैं, हमारे पैर भी वैसे ही जमीन पर हैं. जब हमने सफाई की बात कही, लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ कि मोदी क्लीन इंडिया का मूवमेंट लेकर क्यों चला है ! स्वच्छता अभियान क्यों चला रहा है ! प्रधानमंत्री 15 अगस्त को लाल किले से टॉयलेट की बात करता है.
बहुतों को आश्चर्य हुआ लेकिन मैं मानता हूं कि मुझे वहीं से शुरू करना है और मैं इस काम को छोटा नहीं मानता हूं क्योंकि मुझे दुनिया के सामने देश को सीना तानकर खड़ा होते देखना है.
इसलिए, देश को वैश्विक रूप से आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक स्तर पर ऊपर लाने के संकल्प को लेकर हम आगे बढ़ रहे हैं.
आज चीन के इतिहास की एक अद्भुत घटना है. जहां भी मेरी नजर जा रही है, पीछे तक सिर्फ लोगों के सिर नजर आ रहे हैं. आपलोगों ने इतने बड़े कार्यक्रम का आयोजन किया है, इसके लिए मैं आपको सैकड़ों बार सलाम करता हूं. ये विशाल जन सागर सिर्फ चीन को नहीं बल्कि पूरी दुनिया को सन्देश देगा.
ये सिर्फ भाषण नहीं है बल्कि बदलते वक्त का सबूत भी है. मैं फिर एक बार 16 मई 2015 को आपके साथ समय बिताने के लिए आभारी हूं. 2016 में चीन के लोगों का भारत आने का साल है. आपलोग चीन के लोगों को भारत लाइए और वहां का नजारा दिखाइए. आप देखिये, भारत चीन मिलकर मानव कल्याण के लिए नयी ऊंचाइयों को छू सकते हैं.
इसी विश्वास के साथ मैं फिर एक बार आप सबका नमन करता हूं और सबका समारोह के आयोजन के लिए हृदय से धन्यवाद करता हूं.