वाशिंगटन : आतंकवाद पर दुनिया भर में जारी चिंताओं के बीच अफगानिस्तान के एक शांतिदूत ने पिछले सप्ताह चीन में तालिबानी नेताओं के साथ गुप्त वार्ताएं आयोजित की. आतंकवाद की समस्या से जुझ रहे भारत के लिए चिंता बढ़ना स्वाभाविक है क्योंकि दोनों संगठन भारत के दुश्मन माने जाते हैं. एक मीडिया रिपोर्ट में दी गयी जानकारी के मुताबिक इस बैठक में चीनी अधिकारी व पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ के प्रतिनिधि भी मौजूद थे. द वॉल स्ट्रीट जनरल में कहा गया कि इस बैठक का आयोजन चीन की पहल पर किया गया था. चीन ने हाल के महीनों में तालिबान एवं अफगान सरकार के बीच मध्यस्थता की इच्छा जताई है. रिपोर्ट के मुताबिक इस बैठक के आयोजन में आइएसआइ ने मदद की. यह बैठक तालिबान और अफगानिस्तान की निर्वाचित सरकार के बीच वार्ताओं की संभावनाओं पर चर्चा के लिए आयोजित की गयी थी.
रिपोर्ट में कहा गया, बैठक के बारे में जानकारी रखने वाले लोगों ने कहा कि चीनी अधिकारियों और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ के प्रतिनिधियों ने भी चीन के पश्चिम में स्थित शिनजियांग क्षेत्र की राजधानी उरुम्की में 19 मई और 20 मई को आयोजित वार्ताओं में शिरकत की. रिपोर्ट में कहा गया कि चीनी व पाकिस्तानी अधिकारियों से टिप्पणी के लिए तत्काल संपर्क नहीं हो पाया. गौर हो कि भारत लगातार आतंकवाद के विरूद्ध लड़ाई लड़ता रहा है और अपनी परेशानियों को दुनिया के अहम देशों व संगठनों के सामने पेश करता आया है. रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ने इस बैठक में अहम भूमिका निभाई है जिससे भारत की चिंता बढना स्वाभाविक है.
अखबार के मुताबिक चीन में अफगान प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व मोहम्मद मासूम स्तानिकजेई ने किया, जो कि पिछले सप्ताह तक देश की शांति वार्ता संस्था ‘हाई पीस काउंसिल’ का सबसे महत्वपूर्ण सदस्य था. पाकिस्तान के साथ चले आ रहे खराब संबंधों को ठीक करने के लिए अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी के नेतृत्व में कूटनीतिक पहुंच को बढ़ाने के एक माह तक प्रयास किए गए. इसके बाद ये बैठकें हुई हैं. इनका उद्देश्य अफगानिस्तान में 13 साल से जारी युद्ध के खात्मे के लिए वार्ताओं की बहाली करना है. पूर्व सांसद और गनी के गठबंधन के साङोदार अब्दुल्ला अब्दुल्ला के सहयोगी मोहम्मद असीम ने भी इस बैठक में शिरकत की.
अखबार के अनुसार, बैठक में तालिबान के तीन पूर्व वरिष्ठ अधिकारी मुल्ला अब्दुल जलील, मुल्ला मोहम्मद हसन रहमानी और मुल्ला अब्दुल रज्जाक मौजूद थे. ये पाकिस्तान में रहते हैं और तालिबान के क्वेटा स्थित नेतृत्व परिषद के करीबी हैं. तालिबान के एक पूर्व शीर्ष अधिकारी मौलवी कलामुद्दीन ने कहा कि बैठक ने शांति पर चर्चा करने के एक बेहद उच्च स्तरीय प्रयास की बानगी पेश की है. कलामुद्दीन इस समय हाई पीस काउंसिल के सदस्य हैं. उन्होंने अखबार को बताया, ये लोग कतर में बैठे लोगों से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हैं. उन्होंने कहा, ये वार्ताएं गुपचुप ढंग से आयोजित की गयी थीं और बहुत कम ही लोग इसके बारे में जानते हैं.