।।रविदत्तबाजपेयी ।।
न्यायमूर्ति नहीं, न्यायप्रिय-6
न्यायमूर्ति वैद्यनाथपुर राम अय्यर कृष्णन अय्यर, ऐसे विलक्षण न्यायविद् हैं, जो देश की सर्वोच्च न्यायपालिका तक पहुंचे, लेकिन स्वतंत्र भारत में उन्हें कम्युनिस्ट मान कर जबरन जेल में डाला गया था.
विश्व की पहली निर्वाचित कम्युनिस्ट सरकार में मंत्री बने, लेकिन राजनीति छोड़ कर न्यायपालिका में चले आये. सुप्रीम कोर्ट के प्रख्यात जज रहे, लेकिन पदत्याग के बाद अदालती कार्यशैली पर टिप्पणियों के कारण, कोर्ट की अवमानना के आरोप में उन पर कार्रवाई हुई.
पद्म विभूषण स्वीकारने से पहले उन्होंने यह निश्चित किया कि इस अलंकरण के बाद भी उन्हें सरकार की नीतियों का विरोध करने की आजादी रहेगी.
प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध केरल के मालाबार इलाके के वैद्यनाथपुर गांव में एक नवंबर 1915 को स्थानीय वकील के घर कृष्णा अय्यर का जन्म हुआ. अन्नामलाई विश्वविद्यालय से कानून की उपाधि लेकर, वर्ष 1938 में वीआर कृष्णन के नाम से वकालत का आरंभ किया.
1940 के दशकों के मालाबार में खेतिहरों–किसानों, श्रमिकों,स्वतंत्रता सेनानियों के आंदोलनों का सैलाब था, वकील कृष्णा अय्यर ने इन आंदोलनों से जुड़े मुकदमों को अपनाया. 1948 में डाक तार कर्मचारियों की हड़ताल के समर्थन में भाषण देने के जुर्म में भारतीय मार्क्सवादी आंदोलन के महान नेता एके गोपालन को स्थानीय सत्र न्यायाधीश ने 18 महीनों के कारावास की सजा सुनायी.
न्यायाधीश ने अपनी अदालत में खड़े डाक–तार विभाग के कर्मचारियों पर व्यंग्य करते हए पूछा, ‘अब तुम लोगों के लिए अधिक वेतन की मांग करने वाले भाषण का बचाव करने कौन आ रहा है, वह भी जब तुम लोगों का वेतन मेरी कचहरी के श्रेस्तिदार (रिकॉर्ड–कीपर) से अधिक है.’
न्यायाधीश महोदय को जवाब देनेवाले थे युवा अधिवक्ता कृष्णा अय्यर,’ यदि आपकी कचहरी के श्रेस्तिदार का वेतन पोस्टमैन से कम है तो इंसाफ का तकाजा है कि अगर डाक–तार विभाग के कर्मचारी हड़ताल पर हैं, तो आपके श्रेस्तिदारों को इनसे पहले से हड़ताल पर चले जाना चाहिए था.’
इस मुकदमे की सुनवाई के न्यायाधीशों ने भोजनावकाश में कृष्णा अय्यर से कहा कि न्यायालय में सीआइडी के अधिकारी मौजूद हैं और अपने रवैये से कृष्णा अय्यर परेशानी में पड़ सकते हैं.
स्वतंत्र भारत में कांग्रेस की प्रांतीय सरकार के शासन काल में, मई 1948 में अचानक कृष्णा अय्यर को गिरफ्तार कर लिया गया, उन पर लगे आरोपों में से एक न्यायालय में कम्युनिस्ट विचारधारा का प्रचार भी था. हवालात में सींखचों के पीछे अजायब घर के जानवर की तरह रहना और उसके बाद जेल में बदतर जिंदगी जीना, कृष्णा अय्यर के जीवन के 30 दिनों का एक ऐसा कड़वा सबक था, जिसे वे कभी नहीं भूल पाये.
1957 में दुनिया की पहली निर्वाचित कम्युनिस्ट सरकार में जेल मंत्री बने, अपने कटु अनुभवों से कृष्णा अय्यर ने पूरे केरल प्रांत में जेल सुधारों और कैदियों को बेहतर भोजन, कपड़े, उनकी मेहनत का उचित पारिश्रमिक, हथकड़ी पहनाने की मनाही, खेल और अन्य गतिविधियों के लिए अवसर देने का अभियान चलाया.
1959 में केरल की कम्युनिस्ट सरकार की बरखास्तगी के बाद कृष्णा अय्यर राजनीति से हट गये.1968 में उन्हें केरल हाइकोर्ट में जज नियुक्त किया गया और 1973 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत किया गया, जहां से वे 1980 में सेवानिवृत्त हुए. सुप्रीम कोर्ट में अपने कार्यकाल के दौरान न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर ने अनेक ऐतिहासिक निर्णय दिये.
इनमें सजायाफ्ता कैदियों के मानवाधिकारों का सम्मान करने, कैदियों को काल कोठरी में रखने के जेल अधिकारियों के अख्तियार को हटाने के निर्णय शामिल है. 1977 में इंदिरा गांधी की सरकार के पतन के बाद मेनका गांधी का पासपोर्ट जब्त कर लिया गया, पासपोर्ट की वापसी हेतु मेनका गांधी की याचिका पर अपने निर्णय में न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर ने लिखा, ‘ पुलिसिया राज और जनता के राज का अंतर किसी देश की पासपोर्ट नीति से मालूम होता है, भारत जैसे देश में लोगों के विदेश जाने और वापस आने की स्वतंत्रता को पुलिसिया नियंत्रण के हवाले करने में बड़े खतरे हैं’.
भारतीय संविधान की एक ऐतिहासिक व्याख्या में, शमशेर सिंह बनाम पंजाब राज्य मुकदमे में उन्होंने राष्ट्रपति व राज्यपाल के अधिकारों की सीमा और चुनी हुई सरकार के प्रति उनकी जवाबदेही का खाका खींचा था.
जून 1975 में इलाहाबाद हाइकोर्ट ने इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द कर दिया, सुप्रीम कोर्ट में इसकी अपील पर न्यायमूर्ति अय्यर को सुनवाई करनी थी. कानून मंत्री एचआर गोखले ने न्यायमूर्ति अय्यर को फोन करके उनसे मिलने की इच्छा व्यक्त की, न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर ने पूछा आप मुझसे क्यों मिलना चाहते हैं.
गोखले ने उन्हें प्रधानमंत्री के मुकदमे के बारे में बताया. न्यायमूर्ति अय्यर ने कहा कि केस से संबंधित सारे दस्तावेज कोर्ट के रजिस्ट्रार के पास जमा कर दें, आपको यहां आने की जरूरत नहीं है. इस अपील पर न्यायमूर्ति अय्यर ने निर्णय दिया, श्रीमती गांधी प्रधानमंत्री बनी रह सकती हैं, लेकिन अब वे संसद सदस्य नहीं हैं. इस निर्णय के अगले दिन ही भारत में आपातकाल की घोषणा हुई और भारतीय लोकतंत्र एक अनजान दौर में प्रवेश कर गया.
न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर ने 40 पुस्तकें लिखी हैं, श्रम संबंधी मामलों पर उनके निर्णयों का संकलन प्रकाशित हुआ है, प्रस्तावना में न्यायमूर्ति अय्यर ने इएमएस नंबूदरीपाद द्वारा जजों के बुर्जुवा होने के आरोप को भी दोहराया. उच्च अदालतों में जजों की नियुक्ति में पक्षपात का न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर ने भरपूर विरोध किया है, अदालती कार्यवाही की आलोचना के चलते उन पर कोर्ट की अवमानना के आरोप की दो बार जांच हुई, लेकिन दोनों बार कार्यवाही निरस्त हो गयी.
न्यायमूर्ति अय्यर ने श्रीलंका में तमिल लोगों के दमन का मुखर विरोध किया था, राम जन्मभूमि–बाबरी मसजिद मामले में न्यायपालिका के ढुलमुल रैवये को इस समस्या के विकराल होने के लिए जिम्मेदार बताया. 1987 के राष्ट्रपति चुनाव में न्यायमूर्ति अय्यर विपक्षी दलों के संयुक्त उम्मीदवार थे, लेकिन चुनावी गणित के चलते असफल रहे.
न्यायमूर्ति अय्यर ने माना की उन्हें कई बार गलत समझा गया है, अपने एक लेख में ने प्रसिद्ध अमेरिकन लेखक राल्फ वाल्डो एमर्सन को उद्धृत किया. ‘क्या गलत समझा जाना इतना बुरा है, पाइथागोरस, सुकरात, जीसस, लूथर, कॉपरनिकस, गैलीलियो, न्यूटन, और देह धारण करने वाली हर शुद्ध और ज्ञानी आत्मा को गलत समझा गया.
महान होने का अर्थ है गलत समझा जाना.’ अपने जीवन के 98 वें साल में न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर आज भी समूची न्याय प्रक्रि या में बढ़ रही बीमारियों के उपचार में जुटे हुए हैं.
सुप्रीम कोर्ट के प्रसिद्ध जज रहे हैं वीआर कृष्णा अय्यर
आज की कड़ी में न्यायमूर्ति वीआर कृष्णा अय्यर. दुनिया के अकेले ऐसे न्यायमूर्ति हैं, जिन्हें कुछ दिनों तक स्वतंत्र भारत में कम्युनिस्ट होने के कारण कारावास में रहना पड़ा, बाद में विश्व की पहली निर्वाचित कम्युनिस्ट सरकार में मंत्री बने, सर्वोच्च न्यायालय से सेवानिवृत्ति के बाद जिन पर एक नहीं दो बार ‘तौहीन ए अदालत’ का मुकदमा चला, श्रीलंका में तमिल नरसंहार पर बोलने वाले एकमात्र न्यायविद् थे, नागरिकों के मूल अधिकारों और सबको शीघ्र न्याय दिलाने में न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर को अग्रणी माना जाता है.