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उग्रवाद को रोकने में बनें मददगार

समेकित कार्य योजनाकेंद्र सरकार की दो महत्वपूर्ण योजनाओं में समेकित कार्य योजना (आइएपी) बेहद महत्वपूर्ण है. इसका दूरगामी लक्ष्य राज्य में उग्रवाद को रोकना है. उग्रवाद और नक्सलवाद उन्ही इलाकों में फलते-फूलते हैं, जहां सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक विकास नहीं हुआ है और जो इलाके भौगोलिक रूप से दूसरे इलाकों से कटे हुए हैं. केंद्र […]

समेकित कार्य योजना
केंद्र सरकार की दो महत्वपूर्ण योजनाओं में समेकित कार्य योजना (आइएपी) बेहद महत्वपूर्ण है. इसका दूरगामी लक्ष्य राज्य में उग्रवाद को रोकना है. उग्रवाद और नक्सलवाद उन्ही इलाकों में फलते-फूलते हैं, जहां सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक विकास नहीं हुआ है और जो इलाके भौगोलिक रूप से दूसरे इलाकों से कटे हुए हैं. केंद्र सरकार ने राज्य सरकार की मदद से झारखंड के ऐसे 17 जिलों की पहचान की है और उन्हें इस योजना के तहत विशेष अनुदान दिया जाता है.

इन जिलों में चतरा, गुमला, हजारीबाग, बोकारो, गढ़वा, कोडरमा, गिरिडीह, खूंटी, रांची ग्रामीण, सरायकेला, सिमडेगा, रामगढ़, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम, पलामू, लातेहार एवं लोहरदगा जिले शामिल हैं. इन पिछड़े अनुदान जनजातीय बाहुल्य जिलों में आर्थिक एवं सामाजिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित यह कार्यक्रम है.

इसमें जन उपयोगी विकास कार्य को प्राथमिकता के आधार पर पूरा करने के लिए एकमुश्त राशि दी जाती है. इस योजना का फोकस उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र है. इसका मकसद है कि उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में विकास कार्य को बढ़ाया जाये, ताकि लोग पिछड़ेपन के कारण नक्सलियों के प्रभाव से बच सकें. यह बहुत ही महत्वपूर्ण योजना है, क्योंकि राज्य में जिस तरह से उग्रवादी और नक्सली गतिविधियां बढ़ रही हैं, उन्हें रोकने का यह सबसे कारगर माध्यम हो सकता है. इस योजना के लिए केंद्र सरकार शत-प्रतिशत राशि देती है. पिछले वित्त वर्ष में इन जिलों को 30-30 करोड़ रुपये दिये गये थे. केंद्र सरकार उग्रवाद के खिलाफ विकास के जरिये लड़ाई लड़ना चाहती है. इसलिए इस मद में राशि की कोई कमी नहीं है. अब देखना यह है कि हमारे यहां उन पैसों का कितना सही उपयोग हो रहा है. कहीं ऐसा तो नहीं कि इस पैसे में भी उग्रवादी लेबी वसूल रहे हैं और अधिकारी उसके नाम पर अपनी जेब भर रहे हैं? इसलिए आप आरटीआइ के जरिसे इस योजना के पैसे और काम दोनों की मोनेटरिंग कर सकते हैं.

पिछड़ा क्षेत्र अनुदान कोष (बीआरजीएफ)
यह केंद्र प्रायोजित और पंचायतों के लिए सबसे महत्वपूर्ण योजना है. इसका उद्देश्य विकास के मामले में क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करना और स्थानीय तथा अन्य बुनियादी सुविधाओं के विकास की जरूरतों को पूरा करना. यह पंचायतों को स्थानीय आवश्यकताओं के मामले में सुदृढ़ करने वाली बड़ी योजना है. इसकी योजनाओं में जन भागीदारी पर ज्यादा जोर है. इसके तहत पंचायतों को केंद्र सरकार से फंड मिलता है. पिछड़ा क्षेत्र अनुदान कोष योजना के तहत विकास अनुदान मद में हर साल जिलावार फंड राज्य सरकार को भेजा जाता है. साथ ही क्षमता विकास के लिए हर साल 21 करोड़ रुपये देने की व्यवस्था है. इस राशि से कोल्हान, पलामू और उत्तरी छोटानागपुर में पंचायती राज प्रशिक्षण केंद्र चल रहे हैं. पंचायतों को मिलने वाली राशि को ग्रामसभा के माध्यम से खर्च किया जाना है. यह राशि सभी जिला परिषद और पंचायतों को मिली है. उनका कितना सही उपयोग हुआ, इसकी जानकारी आज आरटीआइ से जुटा सकते हैं.

परामर्शी सेवाओं पर कितना खर्च
राज्य में पंचायती राज संस्थानों को मजबूत करने के लिए केवल अधिनियम-नियम तक विभाग सीमित नहीं है. विभाग हर स्तर पर विशेषज्ञों की सलाह को लागू करने पर ज्यादा जोर देता है. इसके लिए परामर्शी सेवाएं ली जा रही हैं. उन पर सरकार का अच्छा-खासा खर्च है. ये परामर्शी कौन हैं? उनकी क्षमता या विशेषज्ञता का पैमाना क्या है? वे किसे और किस तरह का परामर्श दे रहे हैं? उन पर कितना खर्च हो रहा है? उनके परामर्श का कितना लाभ पंचायती राज संस्थानों और व्यवस्था को कितना लाभ मिल रहा है? यह सब आपको जानने का हक है. अगर आप पंचायती राज संस्थानों के प्रतिनिधि यानी पंचायती राज जनप्रतिनिधि हैं, तो आपको भी यह सब जानना चाहिए. जैसा कि हम पिछले अंक में बात कर चुके हैं, आप पदधारक की हैसियत से सूचना नहीं मांग सकते हैं. आप एक नागरिक की हैसियत से सूचना मांगें और अपने पद का उल्लेख अपने डाक के पते के रूप में करें.

जनजातीय उपयोजनाओं का कितना लाभ
राज्य में पंचायती राज संस्थानों के माध्यम से जन जातीय उपयोजनाओं की बड़ी राशि खर्च हो रही है. इस योजना के तहत 970 करोड़ रुपये का सरकार ने प्रावधान किया. आखिर इस पैसे का लाभ पंचायतों को मिल रहा है या नहीं, यह आप पंचायती राज निदेशालय, जिला पंचायती राज पदाधिकारी या प्रखंड विकास पदाधिकारी से पूछें. विस्तृत सूचना प्राप्त कर इसकी जांच करें कि खर्च का ब्योरा वास्तविक है या फर्जी. अगर उसमें गड़बड़ी मिले, तो उस रिपोर्ट को लेकर संबंधित क्षेत्र में जन सुनवाई करें. लोगों को बताएं. गड़बड़ियों का खुलासा करें और दोषी लोगों पर कार्रवाई के लिए आवाज उठाएं.

विशेष अंगीभूत योजना का ब्योरा मांगें
पंचायती राज व्यवस्था के तहत विशेष अंगीभूत उपयोजना भी सरकार चला रही है. इसके तहत भी करोड़ों रुपये खर्च किये जा रहे हैं. इस योजना के लिए 970.00 करोड़ रुपये का प्रावधान है. सरकार इस राशि को खर्च करने के लिए वार्षिक लक्ष्य बनाती है और उस हिसाब से राशि का बजट में प्रावधान करती है.

पंचायती राज विभाग के मुख्य कार्य

पंचायती राज भवनों का निर्माण.

जिला परिषद को अनुदान.

राज्य में पंचायती राज अधिनियम को लागू कराना तथा त्रिस्तरीय पंचासती राज संस्थानों के लिए नियमावली व योजनाओं का निर्माण.

पंचायती राज व्यवस्था एवं संस्थानों के लिए बजट बनाना एवं धन की व्यवस्था करना.

डाक बंगला का निर्माण, उनका संचालन एवं संरक्षण.

पंचायती राज से संबंधिक कार्यालयों, भवन एवं संसाधन की व्यवस्था, संचालन व उनकी निगरानी करना.

जिला परिषद के क्षेत्रधिकार में बस स्टैंड का निर्माण.

पंचायती राज पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों का प्रशिक्षण

ग्रामसभाओं को अनुदान.

प्रखंड पंचायत समितियों को अनुदान.

13वें वित्त आयोग द्वारा अनुशंसित अनुदान

वर्ष कुल राशि (करोड़ में)

2010-11 176.30

2011-12 272.10

2012-13 392.70

2013-14 451.70

2014-15 521.20

2015-16 1814.00

किस-किस तरह के मिलते हैं ग्रांट

सामान्य आधारभूत अनुदान

सामान्य परफॉर्मेस अनुदान

विशेष क्षेत्र आधारभूत अनुदान

विशेष क्षेत्र परफॉर्मेस अनुदान

किस अनुपात में बंटती है राशि
सामान्यत: जिला परिषद और पंचायत समिति को बराबर-बराबर राशिी दी जाती है. ग्रामसभाओं को उसके अनुपात में तीन गुना राशि मिलती है. अब तक राशि का बंटवारा इसी अनुपात में हुआ है. जैसे

जिला परिषद

सामान्य आधारभूत अनुदान 32.75 करोड़

विशेष क्षेत्र आधारभूत अनुदान 7.00 करोड़

परफॉमेंस अनुदान 32.75 करोड़

पंचायत समिति

सामान्य आधारभूत अनुदान 32.75 करोड़

विशेष क्षेत्र आधारभूत अनुदान 7.00 करोड़

परफॉमेंस अनुदान 32.75 करोड़

पंचायत समिति

सामान्य आधारभूत अनुदान 98.24 करोड़

विशेष क्षेत्र आधारभूत अनुदान 21.00 करोड़

परफॉमेंस अनुदान 33.59 करोड़

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