2015 सबसे गरम वर्ष!

हालांकि कई राज्यों में मॉनसून दस्तक दे चुका है. कई राज्यों में मॉनसून से पहले की फुहारें पड़ने लगी हैं. लेकिन, इससे पहले दुनिया ने गरमी का तांडव देखा. सिर्फ भारत में 2,300 से अधिक लोगों की मौत हुई. अन्य देशों में भी हजारों लोगों की मौत हुई. आइआइटी बंबई के शोध दल के अलावा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 13, 2015 9:56 AM

हालांकि कई राज्यों में मॉनसून दस्तक दे चुका है. कई राज्यों में मॉनसून से पहले की फुहारें पड़ने लगी हैं. लेकिन, इससे पहले दुनिया ने गरमी का तांडव देखा. सिर्फ भारत में 2,300 से अधिक लोगों की मौत हुई. अन्य देशों में भी हजारों लोगों की मौत हुई. आइआइटी बंबई के शोध दल के अलावा भारतीय मौसम विज्ञान और आइपीसीसी के वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि ग्लोबल वार्मिग से निबटने के प्रयास अभी से शुरू नहीं किये गये, तो आनेवाली पीढ़ी हमें माफ नहीं करेगी.

मिथिलेश झा

हाल के दिनों में दुनिया भर के देशों ने भीषण गरमी का प्रकोप ङोला. भारत के सिर्फ दो राज्यों में 2,187 लोगों की मौत हुई. देश में यह आंकड़ा 2,300 को पार कर गया. सबसे ज्यादा मौतें आंध्रप्रदेश (1,636) और तेलंगाना (541) में हुईं. वैज्ञानिकों ने वर्ष 2015 को पांचवां सबसे गरम वर्ष बताया है. साथ ही कहा है कि अल नीनो का प्रभाव जिस तरह से बढ़ रहा है, यह वर्ष अब तक का सबसे गरम वर्ष भी साबित हो सकता है. वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अभी से नहीं चेते, तो वर्ष 2070 और उसके बाद गरमी का सबसे बुरा दौर देखने को मिलेगा. तब अप्रैल से ही भीषण गरमी का प्रकोप ङोलना होगा. भारत के बड़े भू-भाग पर भी इसका असर दिखेगा.

बड़ी आबादी मौत के मुंह में समा जायेगी. कई अध्ययन में इस बात की तसदीक की गयी है. वर्ष 1906 से 2005 के बीच के रिकॉर्ड के आधार पर इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आइपीसीसी) की वर्ष 2014 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक तापमान में 0.74 डिग्री वृद्धि हुई. 20वीं सदी में तापमान 0.9 डिग्री तक बढ़ गया है. भविष्य में मौसम संबंधी बड़े बदलाव दिखेंगे. आइआइटी बंबई के एक शोध दल ने भी आइपीसीसी की रिपोर्ट की तसदीक की है. ‘रिजनल इनवायरमेंटल चेंज’ पत्रिका में छपी इस शोध दल की रिपोर्ट में कहा गया है कि तापमान इसी तरह बढ़ता रहा, तो मानव जीवन के साथ-साथ पारिस्थितिकी तंत्र का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जायेगा. पहले से ही पेयजल, विद्युत और प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं का घोर अभाव झेल रहे भारत जैसे देश के लिए यह किसी अभिशाप से कम नहीं होगा.

शुक्रवार को अमेरिकी मौसम विभाग ने भी एलान कर दिया कि अल नीनो का प्रभाव बढ़ रहा है. प्रशांत क्षेत्र के साथ-साथ दुनिया के अन्य हिस्सों में भी इसका असर दिखेगा. इसके असर से वर्ष 2015 अब तक का सबसे गर्म वर्ष साबित हो सकता है.

कई अध्ययन एक परिणाम: बढ़ रही है गर्मी

आइपीसीसी और आइआइटी बंबई के बाद लांग रेंज फोरकास्टिंग डिवीजन और नेशनल क्लाइमेट सेंटर के प्रमुख डॉ डीएस पाइ ने भी कहा है कि गर्मी बढ़ रही है. मौसम विभाग के अपने सहयोगियों के साथ 103 स्टेशन के आंकड़ों के आधार पर 1961-2010 (50 वर्ष) के मौसम के अध्ययन में उन्होंने पाया कि पिछले चार दशक में 2001-2010 सबसे गर्म दशक रहा. डॉ पाइ और उनके साथियों ने पाया कि गर्म हवाओं का संबंध अल नीनो से है, जिसकी वजह से समुद्र के तापमान में वृद्धि होती है और दुनिया भर में इसका असर देखा जाता है. अल नीनो (गर्म) के असर से गर्मी अपने शबाब पर होती है.

भविष्य के लिए अभी से करनी होगी पुख्ता तैयारी

बढ़ती गर्मी और बदले मौसम के असर से बचने के लिए मौसम वैज्ञानिक इस बात पर जोर दे रहे हैं कि सटीक भविष्यवाणी के लिए लगातार शोध किये जायें. कमल कुमार मुरारी कहते हैं कि सरकार की प्राथमिकता में अभी यह शामिल नहीं है. कहा कि आनेवाली त्रसदी से निबटने के लिए अभी से पुख्ता तैयारी करनी होगी.

395 केंद्र के 40 वर्ष के आंकड़े का अध्ययन

आइआइटी बंबई के शोध के प्रमुख लेखक कमल कुमार मुरारी और उनके साथियों ने भारत के 395 मौसम केंद्र में उपलब्ध 40 वर्षो के डाटा और ग्लोबल वार्मिग से जुड़े वातावरण, समुद्र, जमीन, बर्फ और जीव मंडल पर अध्ययन करनेवाले सात अर्थ सिस्टम मॉडल (इएसएम) के आंकड़ों का अध्ययन और विश्लेषण किया. साथ ही अद्र्रता और गर्मी के विश्लेषण से जुड़े यूएस नेशनल सेंटर फॉर ऐट्मसफेरिक रिसर्च के अंकड़ों और भारत के गृह मंत्रलय से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर भविष्य में गर्मी के असर और उससे होनेवाली मौतों का एक अनुमान भी पेश किया है. इसमें कहा गया है कि आनेवाले दिन भयावह हो सकते हैं.

अछूते नहीं रहेंगे पूर्वी, पश्चिमी तट

आइआइटी बंबई के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर और शोध दल के सदस्य सुबिमल घोष कहते हैं कि हालांकि, इस वर्ष की गर्मी को अभी ग्लोबल वार्मिग से जोड़ना ठीक नहीं होगा, लेकिन बहुत अधिक संभावना है कि वैश्विक जलवायु परिवर्तन के गंभीर परिणाम देखने को मिलें. इसका असर यह हो सकता है कि अब तक गर्मी से अछूते रहे दक्षिण भारत के पूर्वी और पश्चिमी दोनों तटों को भविष्य में भीषण गर्मी की मार ङोलनी पड़े.

मॉनसून से गर्मी का संबंध

मौसम विभाग की टीम ने सूर्य के सालाना पथ समेत गर्म हवाओं की गतिकी, भारत में अद्र्रता के वितरण और सागर से इसके प्रभावित होने के अलावा मॉनसून के आगमन से जुड़े कारकों का पता लगाने के लिए एक अध्ययन किया. उन्होंने पाया कि उत्तर भारत में मॉनसून का आगमन गर्मी के मौसम का अंत माना जाता है. वर्ष 1998 और 2002 में मॉनसून में देरी की वजह से गर्मी का प्रकोप अपने चरम पर था. दोनों ही वर्ष बड़ी संख्या में लोग काल के गाल में समा गये थे.

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