बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने जमात के शीर्ष नेता की मौत की सजा बरकरार रखी

ढाका : बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने पाकिस्तान के विरुद्ध 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान युद्ध अपराध करने के जुर्म में आज कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी के दूसरे सबसे बडे नेता की मौत की सजा बरकरार रखी. बुद्धिजीवियों को भारत का एजेंट बताकर उनका नरसंहार कराने में उनका हाथ था. प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति सुरेन्द्र कुमार सिन्हा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 16, 2015 4:46 PM

ढाका : बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने पाकिस्तान के विरुद्ध 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान युद्ध अपराध करने के जुर्म में आज कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी के दूसरे सबसे बडे नेता की मौत की सजा बरकरार रखी. बुद्धिजीवियों को भारत का एजेंट बताकर उनका नरसंहार कराने में उनका हाथ था. प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति सुरेन्द्र कुमार सिन्हा की चार सदस्यीय पीठ ने जमात-ए-इस्लामी के महासचिव और अल-बद्र के पूर्व कमांडर 67 वर्षीय अली अहसन मुहम्मद मुजाहिद की मौत की सजा की पुष्टि की.

पाकिस्तान ने बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम को कुचलने के लिए अल-बद्र नामक मिलिशिया संगठन बनाया था. बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण द्वारा मौत की सजा सुनाये जाने के खिलाफ अपील पर लगभग तीन सप्ताह की सुनवाई के बाद प्रधान न्यायाधीश सिन्हा ने मौत की सजा को बरकरार रखने की घोषणा की. इस फैसले पर मिश्रित प्रतिक्रिया आयी है. जहां कई लोगों ने इसकी सराहना की वहीं जमात ने सुनवाई को हास्यास्पद करार दिया और कल के लिए हडताल का आह्वान किया है.

पार्टी के कार्यकारी प्रमुख मकबूल अहमद ने बुधवार सुबह छह बजे से बृहस्पततिवार छह बजे तक के लिए राष्ट्रव्यापी बंद का आह्वान किया. मुजाहिद ने बांग्लादेश की आजादी की लडाई को कुचलने के लिए ‘अल बद्र’ मिलिशिया जैसे कुख्यात गेस्टापो का नेतृत्व किया था जो पाकिस्तानी सैनिकों का एक सहायक बल था. उसे सात आरोपों में से पांच में दोषी पाया गया था.

बडे आरोपों में से एक यह था कि 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के आत्मसमर्पण से मात्र दो दिन पहले मुजाहिद ने अल बद्र के जरिए वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों और पत्रकारों सहित दर्जनों शीर्ष बांग्लादेशी बुद्धिजीवियों का नरसंहार कराया था. अटॉर्नी जनरल महबूब ए आलम ने फैसले के बाद संवाददाताओं से कहा, ‘अदालत ने पाया कि मुजाहिद के नेतृत्व में अल बद्र बुद्धिजीवियों का नरसंहार कर रही थी जबकि पाकिस्तानी सैनिक समर्पण की तैयारियों में व्यस्त थे.’

मुजाहिद ने देश के अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण-2 द्वारा सुनायी गयी मौत की सजा के विरुद्ध पिछले साल 11 अगस्त को अपील दायर की थी. न्यायाधिकरण ने कहा था कि उसने पाया कि मुजाहिद ने मुक्ति समर्थक बंगालियों को भारत का एजेंट करार देकर अलबद्र को उन्हें समाप्त कर देने के लिए प्रोत्साहित करने में अहम भूमिका निभायी थी. वह 2001-2006 में बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी की अगुवाई वाली चार दलों की गठबंधन सरकार में मंत्री था. जमात उसका अहम घटक था.

सुप्रीम कोर्ट के एक पिछले फैसले के तहत वह 15 दिनों में इस शीर्ष अदालत से उसके खुद के फैसले की समीक्षा की मांग करते हुए याचिका दायर कर सकता है. फांसी के फंदे से बचने के लिए उसके पास अब यही अंतिम औजार बचा है. मुजाहिद के वकीलों ने कहा कि उन्होंने याचिका दायर करने की योजना बनायी है.

मुजाहिद की 2008 में की गई इस टिप्पणी के बाद कि ‘मुक्तिसंग्राम विरोधी कोई ताकत थी ही नहीं और 1971 में जमात की कोई भूमिका भी नहीं थी’, युद्ध अपराधियों पर सुनवाई की मांग एक बार फिर उठी.जमात ए इस्लामी ने मुक्ति संग्राम को गृहयुद्ध बताया था जिससे लोग और नाराज हो गए तथा यह मांग और तेज हो गयी.

Next Article

Exit mobile version