डिग्री है, पर नौकरी नहीं

-आर्थिक मंदी से बढ़ती बेरोजगारी-2- देश आर्थिक मंदी से जूझ रहा है. सरकार ने इससे निबटने के उपाय के रूप में अपने खर्चो में कटौती का एलान किया है. इसमें कहा गया है कि अगले एक साल तक केंद्र सरकार कोई नयी नियुक्ति नहीं करेगी. यानी एक तरफ रोजगार छिन रहे हैं, दूसरी ओर रोजगार […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 26, 2013 5:08 AM

-आर्थिक मंदी से बढ़ती बेरोजगारी-2-

देश आर्थिक मंदी से जूझ रहा है. सरकार ने इससे निबटने के उपाय के रूप में अपने खर्चो में कटौती का एलान किया है. इसमें कहा गया है कि अगले एक साल तक केंद्र सरकार कोई नयी नियुक्ति नहीं करेगी. यानी एक तरफ रोजगार छिन रहे हैं, दूसरी ओर रोजगार के नये अवसरों पर भी फिलहाल विराम लग गया है.

।।सेंट्रल डेस्क।।
अगले साल लोकसभा के चुनाव होने वाले हैं. यह समय सरकार के लिए लोकलुभावन घोषणाएं करने का है. लेकिन, इसके उलट केंद्र सरकार ने सख्त कदम उठाते हुए नयी नौकरियों पर पूरी तरह रोक लगा दी है.

यहां तक कि भारतीय रेलवे जो सर्वाधिक रोजगार प्रदान करता है, उसकी भरतियों पर भी यह रोक रहेगी. आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार, मध्यम वर्ग के लोग पहले से ही महंगाई और बढ़ी ब्याज दरों से जूझ रहे हैं, अब उन्हें सरकारी क्षेत्र में मिलनेवाली नौकरियों से भी फिलहाल वंचित रहना पड़ेगा. वित्त मंत्रलय ने चार पन्नों के ज्ञापन में स्पष्ट किया है कि जो सीट एक साल से अधिक समय से खाली पड़ी है, उस पर नियुक्ति नहीं होगी, सिवाय इसके कि मामला बहुत असाधारण न हो.

यानी सरकार का मंतव्य यह है कि जब तक अर्थव्यवस्था पटरी पर नहीं आ जाती, तब तक सरकार नयी नियुक्तियों से अपना आर्थिक बोझ नहीं बढ़ायेगी. सरकार आर्थिक संकट से निबटने के लिए क्या तैयारी कर रही है, उसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि गैर योजना खर्च में कटौती की गयी है. अधिकारियों को निर्देश दिये गये हैं कि वे अपने खर्चो में कमी लायें. स्पष्ट है कि स्थिति गंभीर है.

सरकार किसी भी सूरत में राजस्व घाटा बढ़ने नहीं देना चाहती. इस पूरे आर्थिक परिदृश्य को समझने के लिए हमें इसकी गहराई से पड़ताल करनी होगी. कुछ समय पहले फिक्की और ‘अर्नस्ट एंड यंग’ द्वारा किये गये एक संयुक्त सर्वे के अनुसार, रोजगार नियोजन कार्यालयों में लगभग चार करोड़ लोग पंजीकृत हैं, पर महज दो लाख लोगों को ही हर साल रोजगार मिल पाता है. हर साल इंजीनियरिंग कॉलेजों से हजारों की संख्या में इंजीनियर निकल रहे हैं,

पर उन्हें नौकरी नहीं मिल रही है. भोपाल के रहनेवाले अंकित दूबे ने पटेल कॉलेज ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी से इलेक्ट्रॉनिक एंड कम्युनिकेशंस इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन किया है. अप्रैल में वह बेंगलुरु में एक बड़ी वैश्विक फर्म में इंटरव्यू के लिए गये. वहां उन्होंने देखा कि वॉक-इन-इंटरव्यू किसी ऑफिस में नहीं, बल्कि एक बड़े हॉल में रखा गया है. हॉल में एक हजार से अधिक इंजीनियर उम्मीदवार थे.

दूबे बताते हैं कि उन्हें ऐसा लगा जैसे वह किसी विवाह समारोह में आये हों. वह कहते हैं कि केवल भोपाल में ही सौ से ऊपर इंजीनियरिंग कॉलेज हैं. अगर आइआइटी और दूसरे प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेजों को छोड़ दिया जाये, तो प्लेसमेंट की दर काफी कम है. ‘इंस्टीटय़ूट ऑफ एप्लाइड मैनपावर रिसर्च’ ने अपनी एक रिपोर्ट ‘जॉबलेसनेस एंड इंफॉर्मलाइेजशन, चैलेंजेज टू इन्क्लूसिव ग्रोथ इन इंडिया’ में बताया कि जहां कंपनियां बेहतर प्रतिभाओं की तलाश में रहती हैं, वहीं उम्मीदवार भी उपयुक्त नौकरी की खोज में रहते हैं. पर आर्थिक मंदी ने दोनों पक्षों पर कुठाराघात किया है. कंपनियों का उत्पादन प्रभावित हुआ है, उनका कारोबार घटा है, इसलिए वे कर्मचारियों की छंटनी कर रही हैं.

रेलवे में भी नहीं होगी नयी भरतियां

वित्त मंत्रालय ने जो ज्ञापन जारी किया है, उसके अनुसार भारतीय रेलवे में भी नयी भरतियां नहीं होंगी. इसका सीधा असर रेलवे परीक्षाओं में शामिल होने वाले परीक्षार्थियों पर पड़ेगा. केवल 2012-13 में भारतीय रेलवे ने एक लाख 56 हजार नयी नियुक्तियां की थीं. इसमें ग्रुप ए के साढ़े आठ हजार अफसर भी शामिल हैं, जिसकी परीक्षा यूपीएससी द्वारा ली जाती है. भारतीय रेलवे देश का सबसे बड़ी नियोक्ता है, जिसके पास वर्तमान में 14 लाख कर्मचारी हैं.

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