हो सकता है दर्शक मुङो चांटा मारें : रणबीर

रणबीर कभी ‘बर्फी’ की तरह मीठे बन जाते हैं, तो कभी बदतमीज और ’बेशरम’. फिलवक्त बॉलीवुड के वे नये सुपरस्टार हैं, जिन्हें लगभग हर वर्ग के दर्शक पसंद कर रहे हैं. इस बार वे कॉमेडी के साथ दर्शकों से रूबरू हो रहे हैं. फिल्म बेशरम व निजी जिंदगी के कई पहलुओं पर उन्होंने अनुप्रिया से […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 27, 2013 10:28 AM

रणबीर कभी ‘बर्फी’ की तरह मीठे बन जाते हैं, तो कभी बदतमीज और ’बेशरम’. फिलवक्त बॉलीवुड के वे नये सुपरस्टार हैं, जिन्हें लगभग हर वर्ग के दर्शक पसंद कर रहे हैं. इस बार वे कॉमेडी के साथ दर्शकों से रूबरू हो रहे हैं. फिल्म बेशरम व निजी जिंदगी के कई पहलुओं पर उन्होंने अनुप्रिया से बातचीत की.

रणबीर कभी बदतमीज तो कभी बेशरम..क्या आपने कोई खास स्ट्रैटजी तैयार की है?
नहीं, ये तो बिल्कुल इत्तेफाक की बात है. फिल्म ये जवानी है दीवानी में ‘बदतमीज दिल’ गाना पॉपुलर हो गया और इसके तुरंत बाद अब बेशरम फिल्म आ रही है. ऐसा नहीं है कि फिल्म में हम कपड़े उतार कर दिखाना चाहते हैं कि देखो, ये बेशरम है. यह फिल्म बताना चाहती है कि सुनो सबकी, मगर करो अपने मन की. आपके अंदर क्या सही है, और क्या गलत है, यह सिर्फ आपको पता होना चाहिए. यह कभी मत सोचो कि ये करूंगा, तो लोग क्या सोचेंगे. पर्सनली मुङो इस तरह के फिल्मों के टाइटल बहुत पसंद हैं. कुछ साल के बाद लोग एक्टर को तो भूल जाते हैं, लेकिन उन्हें टाइटल याद रहता है. जैसे अमिताभ बच्चन को शंहशाह, शाहरुख खान को बादशाह और सलमान खान को दबंग खान कहा जाता है. ऐसे ही अगर लोग मुङो बेशरम रणबीर कपूर कहे, तो मुङो कोई परेशानी नहीं है.

बेशरम से जुड़ने की सबसे खास वजह क्या रही?फिल्म के निर्देशक अभिनव मेरे पास स्क्रिप्ट लेकर आये थे. उन्होंने मुङो साफ-साफ बता दिया था कि वह फिल्म के माध्यम से कोई प्रवचन नहीं देना चाहते. यह हल्की-फुल्की एंटरटेनमेंट फिल्म है. मुङो सिंपल और फन लविंग स्क्रिप्ट लगी, तो मैंने चुन लिया. मैंने अब तक जितने कैरेक्टर किये हैं, उससे यह अलग था. बेशरम का कैरेक्टर लाउड है, वल्गर है. मैंने एक्सपेरिमेंट किया है, जैसे मैंने बर्फी में किया था. हो सकता है कि ऑडियंस इस फिल्म को देख कर मुङो चांटे भी लगाये लेकिन अगर मैं ट्राइ नहीं करूंगा, तो मुङो आडियंस का टेस्ट पता कैसे चलेगा.

क्या रणबीर रियल लाइफ में भी बेशरम हैं?
रियल लाइफ में तो मुङो बहुत शर्म आती है. मुङो कैमरे के सामने ही मौका मिलता है, कि मैं कुछ बेशरमी कर पाऊं. मैंने अपनी पहली फिल्म में ही अपना टॉवल गिरा दिया था. इससे बड़ा कोई बेशरम हो ही नहीं सकता. मेरे ख्याल से एक्टर का बेशरम होना बेहद जरूरी है. आपके निजी जवीन में दर्द है, खुशी है मगर यह बहुत जरूरी है कि आप बेशरम बन कर सब कुछ भूल कर एक्ट करो. वरना कैमरा सबकुछ पकड़ता है.

बचपन में कभी चोरी की है आपने?
जब मैं छोटा था, तो मैंने चॉकलेट चोरी की थी. बहुत डांट पड़ी थी. उसके बाद कभी चोरी नहीं की.

आपकी वास्तविक जिंदगी में कभी किसी ने आपको बेशरम की उपाधि दी है?
हां, दी है न! मेरी टीचर और मॉम ने. मैं जब बहुत छोटा था, तो मुङो मेरी क्लास टीचर बहुत अच्छी लगती थी. मैं हमेशा उन्हें निहारता रहता था. क्लास टीचर ने मॉम से इस बात की शिकायत करते हुए कहा था कि आपका आपका बेटा बहुत बेशरम है. वह क्लास में पढ़ने के बजय दिनभर मुङो निहारता रहता है. उस वक्त मां से खूब डांट पड़ी थी. मां ने गुस्से में कहा था- ‘बेशरम ऐसी हरकत फिर मत करना’.

इस फिल्म में आपने मम्मी-पापा (ऋषि व नीतू कपूर) के साथ अभिनय किया है. कैसा एक्सपीरियंस रहा?
बहुत अच्छा एक्सपीरियंस रहा. पापा मेरे सबसे फेवरिट एक्टर हैं. मैं तो हमेशा उन्हें कॉपी करता आया हूं, कभी उनके गाने, तो कभी कपड़े. इस फिल्म में मैंने उन्हें बतौर एक्टर गालियां भी दी है, मोटू कहा है. मम्मी-पापा की आदत है, वह काम को घर और घर को काम पर हावी नहीं होने देते. सेट पर हम प्रोफेशनल तरीके से काम करते थे. हां, पापा यह जरूर बताते थे कि पहले लोग कैसे सेट पर काम किया करते थे. क्या माहौल था. गाने कैसे होते थे. सभी एक्टर्स कैसे दोस्त होते थे. उन्होंने फिल्म अमर अकबर एंथनी की शूटिंग से जुड़े किस्से भी खूब सुनाये.

इस फिल्म की कौन-सी यादें हैं, जो आपके साथ हमेशा रहेंगी?
एक रिश्ता जो अभिनव के साथ बना. पहली फिल्म जिसमें पापा (ऋषि कपूर) के साथ एक्ट करने का मौका मिला. शायद दस साल बाद जब मेरे बच्चे होंगे, तो मैं उन्हें गर्व से यह फिल्म दिखाऊंगा. वे भी अपने पापा और दादा-दादी को साथ में देखकर खुश होंगे.

आपके लिए सुपरस्टार की क्या परिभाषा है? आप खुद को किस मुकाम पर देखना चाहते हैं?
मेरी दादी मुङो दादाजी यानी राज कपूर और नरगिस आंटी की फिल्म आवारा से जुड़ा एक किस्सा सुनाती हैं. वे बताती हैं कि जब रूस के एक थियेटर से राजकपूर व नरगिस ‘आवारा’ देखकर बाहर निकले तो फैंस ने उन्हें घेर लिया. उनके साथ हाथ मिलाया, खूब बातें की. दादी ने बताया कि जब वे लोग गाड़ी में बैठे, तो रशियन फैंस ने मिलकर गाड़ी को अपनी हाथों से उठा लिया और चल कर होटल तक ले गये. स्टारडम ऐसा होता है. इसी तरह एक और वाकया है. जब मैं एक्टर नहीं था तो एक कॉफी शॉप में बैठा था. तभी वहां से लता मंगेशकर जी गुजर रही थीं. मैंने देखा कि कॉफी शॉप में बैठे सभी लोग खड़े हो गये. कुछ कहा नहीं, बस रिसपेक्ट के के नाते सिर झुका लिया. मैं ऐसा ही मुकाम हासिल करना चाहता हूं.

क्या आपको लगता है कि आज के दौर में ऐसा स्टारडम मुमकिन है?
हां, मैं मानता हूं, ये मुमकिन है. लास्ट स्टारडम का दौर खानों ने देखा है. अमिताभ बच्चन को भी खूब स्टारडम मिली है. मैं भी मेहनत कर रहा हूं. देखते हैं, क्या होता है. हां, यह जरूर है कि उस वक्त का स्टारडम अलग तरह का स्टारडम होगा.

ऐसे कुछ किरदार जिसे करने की अब भी आपकी इच्छा बाकी है?
हां, मैं निगेटिव किरदार निभाना चाहता हूं. मुङो अच्छा लगता है, कि मैं नेगेटिव किरदार में भी नजर आऊं.

खाली समय में क्या करना पसंद है?
मुङो फुटबॉल खेलना पसंद है. मैं फिल्में देखना पसंद करता ह्रूं, वीडियोगेम खेलता हूं. मगर सबसे ज्यादा अच्छा तब लगता है, जब मैं फिल्म के सेट पर होता हूं. अच्छे डायरेक्टर्स के साथ काम कर रहा होता हूं.

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