।।संजय पारिख।।
(याचिकाकर्ता पीयूसीएल के उपाध्यक्ष)
सुप्रीम कोर्ट के एक ऐतिहासिक फैसले से दागी या अनचाहे उम्मीदवारों के खिलाफ मतदाताओं को एक बड़ा हथियार मिल गया है. उम्मीदवारों को नकारने का मतदाताओं को मिला अधिकार चुनाव सुधार की राह में मील का पत्थर साबित होगा. फैसला राजनीतिक दलों के लिए एक चेतावनी है कि वे दागी उम्मीदवारों को चुनाव में न उतारें. इस फैसले में राजनीतिक दलों के लिए यही संदेश है कि वे स्वच्छ छवि के नेताओं का उम्मीदवार के तौर पर चयन करें.
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सिर्फ भारत ही नहीं, दूसरे लोकतांत्रिक देशों में भी बदलाव का एक बड़ा वाहक साबित होगा. शीर्ष अदालत के फैसले से मतदाताओं को अब बगैर किसी डर-भय के अपराधिक चरित्र या धनाढय़ उम्मीदवारों को नकारने का अवसर मिलेगा. अब मतदाता बगैर अपनी पहचान का खुलासा किये दागी चरित्र के उम्मीदवारों को इवीएम में महज एक बटन दबा कर नकार सकते हैं. इससे पहले मतदाताओं को अगर सभी उम्मीदवार नापसंद भी होते थे, तो उनके पास मतदान के दिन घर बैठे रहने के सिवा कोई दूसरा विकल्प नहीं होता था.
पहले के प्रावधानों के अनुसार, जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 49 (0) में मतदातओं के लिए मतदान करने से इनकार और इसे दर्ज कराने की व्यवस्था थी. लेकिन इसके लिए मतदातओं को मतदान केंद्र पर तैनात प्रिजाइडिंग ऑफिसर को अपना मंतव्य बताना पड़ता था और इसे निर्धारित पुस्तिका में दर्ज कराना होता था.इससे संविधान की धारा 19(1) यानी अभिव्यक्ति की आजादी के साथ ही गुप्त मतदान के प्रावधानों का भी उल्लंघन होता था. दागी चरित्र के उम्मीदवारों को मत देने से लोकतंत्र सबल नहीं, बल्कि निर्बल होता है. हालिया चुनावों में गांवों से पानी, बिजली या सड़क की समस्याओं के कारण मतदान बहिष्कार की कई खबरें पढ़ने-देखने को मिली.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार चुनावों में इवीएम में उम्मीदवारों के नाम के बटन के अलावा एक बटन ‘इनमें से कोई नहीं’ भी जोड़ा जायेगा. सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला गुड-गवर्नेस की दिशा में एक बड़ा उदाहरण साबित होगा. अब मुख्य सवाल यह है कि फैसले के बाद आगे क्या होगा? सबसे पहले इसका असर चुनावों के दौरान पड़ना स्वभाविक है. राजनीतिक दल दागी नेताओं को चुनाव में उम्मीदवार बनाने से कुछ हद तक परहेज करेंगे. ऐसे में अपराधिक व धनाढय़ उम्मीदवारों की संख्या में देर-सबेर कमी आयेगी.
अगर चुनाव के दौरान किसी निर्वाचन क्षेत्र में सबसे ज्यादा मतदाता ‘इनमें से कोई नहीं’ बटन का इस्तेमाल करते हैं, तो एक बार फिर आगे की कानूनी लड़ाई लड़नी होगी कि ऐसी स्थिति में चुनाव का निर्णय क्या हो. सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल उम्मीदवारों को नकारने की व्यवस्था दी है. लेकिन आने वाले दिनों में कानून में निश्चित तौर पर बदलाव होगा और बेहतर और प्रमाणिक नतीजे सामने आयेंगे. कई तरह के विकल्प पर विचार किया जा सकता है. मसलन, यदि किसी निर्वाचन क्षेत्र में सबसे ज्यादा मतदाता ‘इनमें से कोई नहीं’ बटन का इस्तेमाल करते हैं, तो उस क्षेत्र का चुनाव रद्द कर नये सिरे से नये उम्मीदवारों के लिए चुनाव आयोजित करने की मांग की जा सकती है. बदलाव ऐसे ही आते हैं. डंडे मार कर बदलाव नहीं आते.
(कमलेश कुमार सिंह से बातचीत पर आधारित)