मत्स्य विकास योजनाओं का उठाएं लाभ
मित्रो, झारखंड मछली उत्पादन में अभी पीछे है, जबकि राज्य का कोई इलाका ऐसा नहीं है, जहां इसके लिए परंपरागत आधारभूत संरचना न हो. पश्चिम बंगाल की सीमा से सटे होने के कारण भी राज्य के बहुत बड़े हिस्से में मछली पालन की विशेष परंपरा रही है. तालाब निर्माण भी इन इलाकों में बहुत बड़ी […]
मित्रो,
झारखंड मछली उत्पादन में अभी पीछे है, जबकि राज्य का कोई इलाका ऐसा नहीं है, जहां इसके लिए परंपरागत आधारभूत संरचना न हो. पश्चिम बंगाल की सीमा से सटे होने के कारण भी राज्य के बहुत बड़े हिस्से में मछली पालन की विशेष परंपरा रही है. तालाब निर्माण भी इन इलाकों में बहुत बड़ी संख्या में पीढ़ियों से कराया जाता रहा है. पाकुड़ का नामकरण की पुकुर (पोखर) के आधार पर हुआ. वहां पुकुर यानी पोखरों की संख्या बहुत थी. आदिवासी संस्कृति में भी मछली खाने-खिलाने का रिवाज प्रमुख रहा है.
इन सब के बावजूद झारखंड मछली उत्पादन और उत्पादकता की दृष्टि से राष्ट्रीय औसत से करीब 26 फीसदी पीछे है. दस साल पहले झारखंड राष्ट्रीय औसत से करीब 60 फीसदी पीछे था. राज्य में पहले करीब 74,200 हेक्टेयर जमीन में तालाब, बांध, झरना और जलाशय थे, जो ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में थे. अब इस तसवीर में थोड़ा सुधार हुआ है.
अब 1,55,00 हेक्टेयर जमीन में तालाब, जलाशय, बांध और झरना हैं. राज्य में 11765 तालाब सरकारी हैं, जबकि 3030 तालाब विभाग के अधीन और 85000 तालाब निजी हैं. 252 जलाशयों और 1260 चेक डैम हैं, जिनमें मछली पालन हो रहा है. मछली उत्पादन की राष्ट्रीय औसत दर 2150 किलो प्रति हेक्टेयर प्रतिवर्ष है. झारखंड में यह 1600 किलो प्रति हेक्टेयर है. सरकार ने इसे 2500 किलो प्रति हेक्टेयर प्रतिवर्ष करने का लक्ष्य बनाया. जलाशयों में पांच किलो प्रति हेक्टेयर प्रतिवर्ष की दर से मछली का उत्पादन हो रहा है. इसे 20-25 किलो प्रति हेक्टेयर करने का लक्ष्य रखा गया.
सरकार ने प्रतिवर्ष 1000 मैट्रिक टन मछली उत्पादन की क्षमता प्राप्त करने का लक्ष्य बनाया. इसके लिए कई योजनाएं शुरू की गयीं. इसमें पुराने जलाशयों, तलाबों और बांधों का जीर्णोद्धार, नये तालाबों का निर्माण, मछली पालन की नयी तकनीकों का विस्तार, मत्स्य जीवियों को विशेष प्रशिक्षण, सहायता और अनुदान, मत्स्य जीवी समितियों का सशक्तीकरण तथा उनके खुद के जीवन स्तर पर सुधार जैसे कार्यक्रम शामिल हैं. इस कार्यक्रमों पर हर वर्ष करोड़ों रुपये खर्च किये गये. ये कार्यक्रम अब भी चल रहे हैं और उन पर खर्च अब भी हो रहे हैं. अगर आप मछली पालन व्यवसाय से जुड़े हुए हैं या जुड़ना चाहते हैं, तो इन कार्यक्रमों का लाभ ले सकते हैं. आप इस कार्यक्रमों पर उन पर होने वाले खर्च का हिसाब-किताब भी मत्स्य विभाग से मांगें. कार्यक्रमों का लाभ पाना और खर्च का हिसाब-किताब मांगना दोनों आपका अधिकार है. आप इस अधिकार का इस्तेमाल करें. हम इस अंक में मत्स्य विभाग की योजनाओं के बारे में बता रहे हैं. यह भी बता रहे हैं कि आप कैसे और किस से खर्च का ब्योरा मांगें.
आरके नीरद ( मो – 9431177865)
योजनाएं सभी के लिए
राज्य में मत्स्य विकास की तीन तरह की योजनाएं चल रही हैं. पहली योजनाएं वैसी हैं, जो केंद्र प्रायोजित हैं. दूसरी वैसी योजनाएं हैं, जिन्हें राज्य सरकार चला रही है. तीसरी श्रेणी में वैसी योजनाएं हैं, जिन्हें सरकार ने हाल में शुरू किया है. इन सभी योजनाओं के समान लक्ष्य है – राज्य में मछली उत्पादन एवं उत्पादकता को बढ़ाना, मछली पालकों को रोजगार मुहैया करना, उनकी आर्थिक व सामाजिक दशा में सुधार करना तथा मछली और मछली के बीज के मामले में राज्य को आत्मनिर्भर बनाना है. इसमें परंपरागत मछुआरों के अलावा गैर परंपरागत मछली पालकों को भी शामिल किया गया है. सरकार की योजना में दोनों वर्ग शामिल हैं. अब यह आपको तय करना है कि आप कैसे इन योजनाओं का लाभ ले सकते हैं.
राज्य में मत्स्य विकास की तीन तरह की योजनाएं चल रही हैं. पहली योजनाएं ऐसी हैं, जो पूरी तरह केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित हैं. दूसरी श्रेणी की योजनाओं में केंद्र का 75 प्रतिशत और राज्य कर 25 प्रतिशत हिस्सा है. यानी तीन चौथाई पैसा केंद्र सरकार देती है और एक चौथाई पैसा राज्य सरकार लगाती है. तीसरी श्रेणी की योजनाएं राज्य सरकार द्वारा प्रायोजित हैं.
मछली पालकों को अनुदान
अगर आप मछली पालक हैं या मछली पालन करना चाहते हैं, तो सरकार आपको मदद देती है. विभाग से आप अनुदान प्राप्त कर सकते हैं. यह अनुदान मछली के बीज, तालाब के निर्माण, उसके जीर्णोद्धार तथा अन्य जरूरतों के लिए दिया जाता है. मछली पालन के विकास के लिए सरकार सभी स्तर पर किसानों को मदद करती है. सबसे बड़ी जरूरत अभी मछली के बीज की स्थानीय स्तर पर उपलब्धता सुनिश्चित करना है. इसके लिए सरकार बीज हैचरी को विकसित कर रही है. अगर आप हैचरी बनाना चाहते हैं, तो उसके लिए भी आप अनुदान प्राप्त कर सकते हैं. इसके लिए आप मत्स्य विभाग के अधिकारी से मिलें.
घरेलू बाजार की सुविधा
मछली उत्पादन को बढ़ावा देने के साथ-साथ उसके स्थानीय बाजार को बढ़ाने की भी सरकार की योजना है. आप इसका लाभ ले सकते हैं. स्थानीय बाजार विकसित करने के लिए सरकार मछली पालकों और विक्रेताओं को आर्थिक सहायता देती है. इसके तहत उन्हें मछली की बड़े पैमाने पर खरीद के लिए पूंजी देती है. स्थानीय बाजार में मछली के स्टॉक को सुरक्षित रखना बड़ी जरूरत होती है, ताकि लोगों को स्वस्थ और ताजी मछली मिल सके. इसके लिए लाभुक को फ्रिज और अन्य उपकरण दिये जाते हैं. थोक विक्रेताओं के साथ-साथ खुदरा विक्रेताओं को भी सरकार मदद देती है. उन्हें वर्दी और पहचान-पत्र देने की भी योजना है, ताकि बाजार में वे अपनी अलग पहचान बना सकें. अब भी झारखंड के स्थानीय बाजारों में आंध्र प्रदेश और दूसरे राज्यों से मछली आती है. मछली की कुल मांग के अनुपात में यहां उत्पादन कम है. ऐसे में मछली के कारोबारियों के लिए पूंजी और तकनीक दोनों की जरूरत होती है. इस जरूरत को पूरा करने में सरकार उनकी मदद करती है.
मत्स्य उत्पादन के तालाब
सरकारी तालाब : 11765 : 9613 हे.
विभागीय तालाब : 3030 : 4843 हे.
निजी तालाब :85000 : 40500 हे.
जलाशय : 252 : 115000 हे.
चेक डैम : 1260 : 4570 हे.
मत्स्य विकास शाखा का ढांचा
निदेशालय स्तर
निदेशक
सहायक निदेशक
जिला स्तर
जिला मत्स्य पदाधिकारी
मत्स्य विकास पदाधिकारी
मत्स्य निरीक्षक
मत्स्य विस्तार पर्यवेक्षक
प्रशिक्षण के साथ कई सुविधाएं भी
मत्स्य बीज तालाब सुदृढ़ीकरण
यह केंद्र प्रायोजित योजना है. इसके तहत शहरी क्षेत्र के मत्स्य पालकों को मछली के बीज का बैंक तैयार करने के लिए सरकार आर्थिक मदद देती है. इसके तहत आप मछली बीज टैंक बना सकते हैं. आप एक्वा पार्क भी बना सकते हैं. टैंक और एक्वा पार्क बनाने में पुराने तालाबों को सुदृढ़ करने की जरूरत होगी. उस पर होने वाले खर्च में सरकार आपकी मदद करती है. आप इस योजना का लाभ लेकर अच्छी कमाई कर सकते हैं. साथ ही मछली के बीज के मामले में राज्य को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में बड़ा योगदान कर सकते हैं.
मछली किसान विकास एजेंसी
यह केंद्र और राज्य सरकार की संयुक्त योजना है. इसमें 75 प्रतिशत राशि केंद्र सरकार और 25 प्रतिशत राशि राज्य सरकार देती है. मछली किसान विकास एजेंसी बनाने का मकसद मत्स्य विकास की आधारभूत संरचना को विकसित करना है. इसमें तहत आप तालाब की मरम्मत कर जल संग्रहण की क्षमता बढ़ा सकते हैं. इस योजना में मछली पालकों को मत्स्य पालन संबंधी जरूरी सामग्री मुहैया करायी जाती है. जैसे बीज, खाद अन्य तकनीकी सुविधा आदि. इसमें किसानों को जरूरी प्रशिक्षण भी मिलता है और कारोबार को बढ़ाने के लिए बैंक से कर्ज भी दिलाया जाता है.
मछुआरों के लिए आवास योजना
सरकार मछुआरों के जीवन स्तर में सुधार के लिए इस कार्यक्रम को चला रही है. इसका उद्देश्य यह भी है कि इस परंपरागत पेशे से जुड़े लोग दूसरे रोजगार क्षेत्र में पलायन के लिए मजबूर नहीं हों. उन्हें अपने ही पेशे में लगाये रखने तथा उनकी दक्षता का लाभ राज्य में मछली उत्पादन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकार कल्याणकारी कार्यक्रम के तहत इस योजना को चला रही है. इसमें 50 प्रतिशत राशि केंद्र सरकार की और 50 प्रतिशत राशि राज्य सरकार की है. सरकार मत्स्य विभाग के माध्यम से मछुआरों को पक्का आवास देती है. इसके लिए हर साल लक्ष्य तय किया जाता है और उस लक्ष्य के अनुसार मछुआ परिवारों को इस योजना का लाभ देने के लिए चुना जाता है. इसके तहत मछुआरों के गांव को बुनियादी सुविधाओं से जोड़ने की योजना है. आप इस योजना का लाभ ले सकते हैं, अगर आप मछुआ हैं व शर्ते पूरी करते हैं.
सक्रिय मछुआरों की ग्रुप बीमा योजना
मछुआरों के सामूहिक जीवन बीमा के लिए भी सरकार की योजना है. यह केंद्र और राज्य सरकार की साझा योजना है. इसमें आधी-आधी राशि दोनों सरकारें देती हैं. इसका लाभ उन मछुआरों को मिलना है, तो वास्तव में इस पेशे से जुड़े हुए हैं. जिन मछुआरों को लाइसेंस मिला हुआ है या जिनके पास पहचान-पत्र है या फिर जो राज्य सरकार की सूची में शामिल हैं, उन सभी को विभाग इस योजना को लाभ देने के लिए बाध्य है. अगर आप इस योजना से नहीं जुड़े हैं, तो अपना दावा विभाग के स्थानीय अधिकारी या मछुआ समिति से मिल कर करें.
मत्स्य प्रशिक्षण एवं विस्तार योजना
यह मछली पालकों के लिए यह बड़ी उपयोगी योजना है. यह योजना उन्हें व्यावसायिक क्षमता बढ़ाने, उन्नत विधि से मछली का उत्पादन करने तथा बाजार के अनुरूप दक्ष बनाने की है. इस पर केंद्र सरकार 80 प्रतिशत और राज्य सरकार 20 प्रतिशत धन खर्च करती है. मत्स्य पालकों को प्रशिक्षण देने के अलावा उनके व्यावहारिक ज्ञान को बढ़ाने के भी उपाय इसमें शामिल हैं. उन्हें आंध्र प्रदेश, ओड़िशा और पश्चिम बंगाल के उन इलाकों का भ्रमण कराया जाता है.
मत्स्य पालन विस्तार योजना
यह राज्य प्रायोजित योजना है. इसका उद्देश्य मछली बीज के लिए तालाबों का सर्वेक्षण, सेमिनार, कार्यशाला, फिल्म प्रदर्शन आदि किया जाता है. किसानों को इन माध्यमों से मछली और मछली के बीज के उत्पादन, परिवहन, संग्रहण आदि के बारे में बताया जाता है. इसका लाभ मछुआ समूह और व्यक्तिगत दोनों ही रूप में प्राप्त कर सकते हैं.
मत्स्य अनुसंधान योजना
मत्स्य पालन और उत्पादन को बढ़ाने के लिए सरकार लगातार अनुसंधान कार्यक्रम चलाती है, ताकि अलग-अलग जलवायु और मिट्टी में ज्यादा-से-ज्यादा मछली का सफल उत्पादन हो सके. इस योजना के तहत मछली पालकों के तालाबों की मिट्टी और पानी आदि का विेषण किया जाता है और यह सुझाव दिया जाता है कि कहां किस तरह के और किस तरह से मछली का पालन ज्यादा लाभकारी होगा.
जनजातीय उपयोजना
राज्य में जनजातीय उपयोजना के तहत भी मछली पालन को बढ़ावा देने के कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं. इसका लाभ मछली पालन, तालाब निर्माण और बाजार विस्तार के लिए हासिल किया जा सकता है.
जलाशय विकास योजना
सरकार की योजना उन जलाशयों के विकास की भी है, जहां मछली पालन होता है या जहां इसकी संभावना है. इसके लिए इलाकों के सक्रिय मछली पालकों को सरकार सहायता देती है.